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उपाकर्म व अवनी अवित्तम एवम हयाग्रिवा जयंती 2022, विधि

उपाकर्म व अवनी अवित्तम एवम हयाग्रिवा जयंती 2022, विधि (Upakarma Avani Avittam Hayagriva Jayanti vidhi in hindi)

सावन महीने की पूर्णिमा के दिन दक्षिण के कुछ हिस्सों में उपाकर्म मनाया जाता है. यह मुख्य रूप से कर्नाटक, आंध्रप्रदेश व उड़ीसा के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है. इसे तमिल में अवनी अवित्तम  कहते हैं, जिनका पहला उपाकर्म होता है, उनके लिए ये थलाई अवनी अवित्तम  कहलाता है. अवनि एक तमिल कैलेंडर के महीने का नाम है, एवं अवित्तम 27 नक्षत्र में से एक है. कन्नड़ में जनिवरादा हुन्निम एवं उड़ीसा में गम्हा पूर्णिमा  कहते है. इसे श्रावणी भी कहा जाता है. यह एक वैदिक अनुष्ठान है जो मुख्य रूप से हिन्दुओं की ब्राह्मण जाति के द्वारा मनाया जाता है. इसे कई जगह क्षत्रीय एवं वैश्य लोग भी मानते है.

उपाकर्म का अर्थ होता है, शुरुवात, किसी चीज का आरम्भ. यह दिन वेद सीखने के कर्मकांडों की शुरुआत करने का दिन होता है.

उपाकर्म कब मनाया जाता है (Upakarma date 2022)–

उपाकर्म साल में एक बार आता है. ये सावन महीने में आता है, तमिल कैलेंडर के अनुसार ये धनिष्ठा नक्षत्र के दिन आता है. हमारे चार वेदों में ब्राह्मण समुदाय अलग अलग तरीके से उसे मानता है. तो ऋग्वेद मानने वाले ब्राह्मण सावन माह की पूर्णिमा के एक दिन पहले, मतलब शुक्ल पक्ष के श्रावण नक्षत्र में इसे मनाते है, इसे ऋग्वेद उपाकर्म भी कहते है. यजुर्वेद मानने वाले ब्राह्मण इसे सावन महीने की पूर्णिमा के दिन मनाते है. इसे यजुर्वेद उपाकर्म कहते है. इसके अगले दिन गायत्री जप कर संकल्प लिया जाता है. गायत्री जयंती और मन्त्र के बारे में जानने के लिए पढ़े. सामवेद को मानने वाले ब्राह्मण सावन माह की अमावस्या के दुसरे दिन मतलब भाद्रपद की हस्ता नक्षत्र को इसे मनाते है. इसे सामवेद उपाकर्म कहते है. उपाकर्म को उपनयनं एवं उपनायाना भी कहते है.

ऋग्वेद उपाकर्म11 अगस्त यजुर्वेद उपाकर्म12 अगस्तगायत्री जापं13 अगस्त सामवेद उपाकर्म14 अगस्त

उपाकर्म का महत्व (Significance of upakarma) –

उपाकर्म के दिन ब्राह्मण जो धागा पहनते है, जिसे जनेऊ, जध्यामु, जनिवारा कहते है, उसे बदला जाता है. उपाकर्म का मुख्य उद्देश्य उन ऋषिमुनि और गुरुओं का धन्यवाद करना है, जिन्होंने इन वेद के बारे में मानवजाति को ज्ञान दिया, और वेद को हम सब के सामने लेकर आये है.

उपाकर्म व अवनी अवित्तम से जुड़ी कहानी (Avani Avittam /hayagreeva  story) –

भगवान् विष्णु के अवतार हयाग्रिवा ने जिस दिन धरती पर अवतार लिया था, उस दिन को हयाग्रिवा जयंती के रूप में मनाते है. हयाग्रिवा भगवान् विष्णु का एक अद्भुत अवतार है. उनका सर घोड़े का होता है, लेकिन धड़ (शरीर) मानव जैसा होता है. असुरों से वेदों को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने ये अवतार लिया था. इसी दिन को ब्राह्मण उपाकर्म या अवनि अवित्तम के रूप में मनाते है.

हयाग्रिवा अवतार / जयंती (Hayagriva avatar / jayanti) –

भगवन विष्णु ने सावन माह की पूर्णिमा के दिन घोड़े के रूप में अवतार लिया था. असुरी शक्ति मधु और कैताभा ने वेद को भगवान् ब्रम्हा से चुरा लिया था. इसे बचाने के लिए विष्णु ने अवतार लिया था.

भगवान् विष्णु ने जब भगवान् ब्रह्मा जी को बनाया था, तब उन्होंने उन्हें सारे वेद पुराण का ज्ञान अच्छे से दिया था. जब ब्रह्मा जी को इन सब का अच्छे से ज्ञान हो जाता है तो उन्हें लगता है वे ही केवल इकाई है. वे गर्व से भर जाते है उन्हें लगता है, सभी अनन्त और पवित्र वेदों का ज्ञान केवल उन्हें ही है. जब भगवान् विष्णु को ये पता चलता है तो वे कमल के फूल की दो पानी की बूंदों से असुर मधु और कैताभा को जन्म देते है. फिर विष्णु उन असुरों को बोलते है कि वे जाकर  ब्रम्हा से उन वेदों को चुरा लें और कहीं छुपा दें. वेद चोरी हो जाने के बाद ब्रह्मा अपने आप को इसका ज़िम्मेदार समझते है, उन्हें लगता है कि दुनिया की सबसे पवित्र, अनमोल चीज को बचा नहीं पाए, जिसके बाद वे भगवान् विष्णु से मदद के लिए प्रार्थना करते है. भगवान विष्णु हयाग्रिवा या हयावदाना का अवतार लेते है, और सभी वेदों को बचा लेते है. इस प्रकार ब्रह्मा का गर्व भी नष्ट हो जाता है. इस प्रकार हयाग्रिवा की उत्पत्ति का दिन हयाग्रिवा जयंती और उपाकर्म के रूप में मनाया जाता है.

जिस तरह वेद को बचाकर भगवान् विष्णु ने नयी रचना की थी, उपाकर्म को भी मनाने का यही उद्देश्य है, नयी रचना, नया आरम्भ. असम के हाजो में हयाग्रिवा माधव मंदिर है, जहाँ भगवान् हयाग्रिवा की पूजा अर्चना की जाती है. हयाग्रिवा अवतार को महाभारत एवं पुराण में शांति पर्व के रूप में व्याखित किया गया है. यह भगवान विष्णु के कम प्रसिद्ध अवतारों में से एक है. कुछ क्षेत्रों में, हयाग्रीवा को वेदों का संरक्षक देवता कहा जाता है।

उपाकर्म विधि (Upakarma procedure) –

सावन महीने में आने वाले उपाकर्म से ब्राह्मण वेदों के बारे में पढना शुरू करते है. इसे अगर वे चाहे तो मकर्म (मलयालम कैलेंडर का महिना) के दिन उत्सर्जना रिवाज के हिसाब से बीच में छोड़ सकते है. और फिर वापस अगले सावन से शुरू कर सकते है.इतने बड़े महान वेदों का ज्ञान सिर्फ 6 महीनों में अर्जित नहीं किया जा सकता है, तो अब ब्राह्मण मकर्म में इसे नहीं छोड़ते है और साल के 12 महीने वेदों का ज्ञान अर्जित करते है.पुराने जनेऊ को उतारा जाता है, नए को धारण किया जाता है. उपाकर्म का कार्यक्रम किसी पवित्र नदी या कुंड में होता है. इस दिन अपनी पहचान के सभी आदमी, रिश्तेदार दोस्तों को बुलाया जाता है.इसके बाद वेद को आरम्भ किया जाता है.इसके बाद वे वेद के अग्रदूत नवा कांदा ऋषि की पूजा करते है.किसी का अगर उपाकर्म का पहला साल है तो नंदी पूजा भी की जाती है.जो शादीशुदा नहीं होते है एवं जो ब्रह्मचारी होते है, वे अग्नि कार्य और सम्हीदा दानं भी करते है.इस दिन का प्रसाद के लिए सतवाडा हित्तु बनता है. जिसमें केला, अमरुद, अंगूर, सेव, दूध, घी, तिल, गुड़, मेवे व चावल का आटा होता है. ये बूढ़े ऋषिमुनि, जिनके दांत नहीं होते है, वे भी आसानी से खा लेते है.

यजुर्वेद उपाकर्म विधि (Yajur veda upakarma procedure) –

सबसे पहले ऋषिमुनि थर्पनाम को पढ़ते है, और प्राचीन ऋषियों की आराधना करते है.बेचलर ब्राह्मण संकल्प के बाद समिथा दान देते है और कमो कर्षित जाप करते है.फिर परिवार के किसी बड़े या पंडित के द्वारा कांदा ऋषि थर्पनाम की पूजा होती है.रिवाज के अनुसार सभी आदमी लोग रात को हल्का भोजन ग्रहण करते है.अगले दिन नहाने के बाद, गायत्री मन्त्र का जाप सभी के द्वारा किया जाता है. इसे 108 या 1008 बार किया जाता है.इसके बाद भोजन में अप्पम एवं इडली सभी को परोसी जाती है.नैवेध्य के रूप में, होमं के लिए हरा चना एवं ढाल सभी को दी जाती है.होमं घर में या मंदिर में होता है. सभी के जाने के बाद आरती की जाती है.इस दिन प्रसाद के तौर पर पायसम, वडा, चावल, दही पचडी, कोसुमल्ली करी, कूटू, छाछ, रसम, सूप, चिप्स सभी को परोसा जाता है.

ऋग्वेद उपाकर्म विधि (Rig veda upakarma procedure) –

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