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क्या फेल हुआ लोकल पुलिस का इंटेलिजेंस या बवाल के सियासी रंग को नही भांप पाई, हिंसा के पैटर्न को समझने में चूक गई पुलिस

लखनऊ: कानपुर में तीन जून को हुई हिंसा के बाद एक बार फिर 10 जून यानी शुक्रवार को जुमे की पहली नमाज हुई। नमाज के बाद यूपी के तमाम शहरों और खासकर प्रयागराज, मुरादाबाद और सहारनपुर में नमाजियों ने सड़क पर उतरकर हिंसा फैलाई औऱ यूपी पुलिस इसे रोकन में नाकाम साबित हुई।आखिर इतना बड़ा बवाल कैसे हुआ? सवाल यह भी है कि जब पहले से ऐसी घटनाओं का अंदेशा था तो फिर पुलिस कैसे चूक गई? इसका जिम्मेदार कौन है और पुलिस प्रशासन के इस फेल्योर की वजहें क्या है? इस तामम सवालों के जवाब तलाशने के लिए हमने यूपी के पूर्व DGP विक्रम सिंह और एके जैन के साथ ही इंटेलिजेंस के कुछ पूर्व अधिकारियों से भी बात की। जो वजहें सामने आई है, वो अब आपके सामने है..1. फेल हुआ लोकल पुलिस का इंटेलिजेंसकानपुर में हुई घटना के बाद हुई कार्रवाई से कुछ जिलों की पुलिस आश्वस्त थी कि अब ऐसी घटना नही होगी। इसीलिए शायद पुलिस ने वो तैयारियां नही की जो लखनऊ, वाराणसी, कानपुर और मेरठ जैसे जिलों में हुई। इन जिलों में पुलिस और प्रशासन के अफसरों ने मुस्लिम धर्मगुरुओं के साथ बैठकें की। सभी बड़े बाजारों में पुलिस बल तैनात किया। मुजफ्फरनगर में तो पुलिस ने जुमे की नमाज शांति से निपटे इसके लिए बाकायदा मॉक ड्रिल की। बडे अधिकारी सड़को पर उतरे ।मेरठ और लखनऊ में ड्रोन कैमरे तैनात किए गए। हर जगह नजर रखी गई।पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह कहते है कि पुलिस अधिकारियों को अपने एसी कमरों से निकल कर ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए पहले से पूरी तैयारी करनी चाहिए थी। हर जिले में दंगा नियंत्रण योजना के तहत दंगा नियंत्रण का पूर्वाभ्यास करना चाहिए। अपने लोकल इंटेलिजेंस को और मजबूत करने की जरुर होती है। हालांकि हर तैयारी 100 फीसदी परिणाम नही देती, फिर भी पुलिस को पहले से ही तैयार रहना चाहिए।2. कुछ धर्मगुरुओं के भरोसे रही पुलिसजिन जिलों में प्रदर्शन उग्र और हिंसात्मक हुए, वहां पुलिस पुलिस कुछ धर्मगुरुओं के भरोसे रह गई। प्रशासन धर्मगुरुओं की तरफ से हिंसा न होने के आश्वासन के भरोसे था। सहारनपुर में जामा मस्जिद से निकले ‘नारा-ए-तकबीर’, ‘अल्लाह-हू-अकबर’ के नारे ने लोगों को सड़क पर ला दिया। मस्जिद में संख्या से ज्यादा भीड़ को देखकर भी जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन बवाल की मंशा को समझ नहीं सका।पूर्व डीडीपी एके जैन कहते है कि कुछ जगहों पर प्रशासन को धोखे में रख कर यह हिंसा की गई। पुलिस और प्रशासन इन धर्मगुरुओं के भरोसे पर रहा। विक्रम सिंह भी कहते है कि पुलिस को पहले से ही शांति कमेटियों के जरिए समाज के लोगों तक अपनी बात पहुंचानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा अब नही हो रहा।3. बवाल के सियासी रंग को नही भांप पाई पुलिसजिलों के अधिकारी धर्मगुरुओं या शहर काजी के साथ बैठक करते रहे। लेकिन इसका नतीजा नही निकला। क्योंकि इनका अपने समुदाय पर असर अब कम हो रहा है। राजनीतिक लोग हावी हो रहे हैं। इंटेलिजेंस के एक पूर्व अधिकारी ने बताया कि इस बवाल के पीछे कुए ऐसे चेहरे भी थे, जिनके बारें में चर्चा नही होती। मौजूदा सरकार में पुलिस-प्रशासन की मुस्लिम समुदाय के प्रभावी लोगों से दूरी हो गई। ऐसे में इस तरह के उपद्रव की जानकारी या इसे नियंत्रित करने में दिक्क्त आती है।4. हिंसा के पैटर्न को नही समझ पाई पुलिसपिछले जुमे को कानपुर में हिंसा हुई थी। लेकिन इस बार वहां कुछ नहीं हुआ। वाराणसी में ज्ञानवापी वाला इश्यू चल रहा है। इसके बावजूद वहां शांति रही। इस बार की हिंसा प्रयागराज ,सहासरनपुर और मुरादाबाद जैसे शहरों में हुई। पुलिस इस पैटर्न को नी भांप पाई। दरअसल, जिन जिलों में सुरक्षा कम वहां हिंसा हुई। पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह कहते है कि, ‘यह पैटर्न हमेशा से रहता है।’ जुमें के दिन बड़ी संख्या मे समुदाय विशेष के लोग एक जगह इकट्ठे होते है। इसकी तैयारी पहले से होती है। कोई बी मस्जिद में नमाज पढ़ने पत्थर लेकर नही जाता। जाहिर है कि इसकी तैयारी पहले से थी। इस तैयारी के पीछे कौन है, उसकी पहचान जरुरी है।5. PFI जैसे संगठन की कमर नही तोड़ पाई पुलिसप्रयागराज में PFI की भूमिका की जांच शुरु हो गई है। सहारनपुर में नीली टोपी और काले कपड़े पहने लोग हिंसा के दिन नजर आए। कुछ मुस्लिम बाहुल इलाकों में बारत बंद के पोस्टर लगाए गए। पूर्व डीडीपी ऐके जैन कहते है कि PFI, ISI और अलकायदा जैसे संगठन नही चाहते कि देश में स्थिरता हो, लिहाजा ऐसे मौकों की तलाश में रहते है। इस तरह के पोस्टर के पीछे कौन है? ये पोस्टर कहां बने और किसने बनवाए। अब इनकी जांच ज़रुरी है। जांच में साफ होगा कि आखिर इस तरह की हिंसा के पीछे कौन-कौन से चेहरे है।

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