वार्ड 61 लाइव:अल्पसंख्यक और सोनकर समाज के वोट निर्धारित करेंगे जीत,15 साल से कांग्रेस का काबिज इस बार किसकी होंगी जीत..?
नगर निगम के आगामी चुनावों के लिए फिलहाल 15 साल से काबिज जमाए बैठे पार्षद अभय वर्मा की सीट अब वार्ड आरक्षण में महिला सीट हो चुकी है। फिलहाल वर्मा ने अपनी और से चुनावी मैदान में उतरने का इशारा नहीं किया है। वर्मा समर्थक वार्ड 54से उनकी दावेदारी की और संकेत दे रहे है। जिस से एक भी कांग्रेस का उम्मीदवार वार्ड से दावेदारी में नजर आ नही रहा है।
टिकट के असमंजस से फिलहाल दावेदार मैदान में उतरे नहीं है लेकिन जनता नजरे जमाए हुए है। भविष्य के पार्षद को चुनाव से पहले मैदान में देखना चाहती है। वार्ड 61 में काम काज के नजरिए से देखे तो काफी कुछ काम ऐसे है जो दस्तावेजों में पास हुए है लेकिन जमीनी हकीकत फिलहाल इनकी कुछ और है। यहां 1983 में सबसे पहले कांग्रेस से सज्जन वर्मा ने नारायण धनोरा के खिलाफ चुनाव लड़ा था जिसमे वर्मा की जीत हुई थी। समय निकलते गया वर्मा समर्थक अपनी चुनाव लड़ने की जिद पर अड़े रहे। लिहाजा कांग्रेस से कमजोर उम्मीदवार आने के बाद बीजेपी से लक्ष्मी वर्मा ने चुनाव जीता था। इसके बाद फिर सज्जन वर्मा के भतीजे अभय वर्मा ने इस सीट से चुनाव जीता था। अभय ने इसी सीट पर लगातार तीन जीत दर्ज कराई थी। 15 साल का कार्यकाल पूरा होते ही इस बार वार्ड महिला आरक्षित हो चुका है। ऐसे में अभय वर्मा फिलहाल चुनाव से परहेज कर रहे है। ऐसे में कांग्रेस से वर्मा खेमे के सचिन वर्मा वार्ड में सक्रियता दिखा रहे है। विधानसभा 3 में भव्य चुनरी यात्रा से वार्ड की जनता को एकजुट कर चुके वर्मा अपनी पत्नी सीपीका वर्मा के लिए टिकट की जुगत में लग चुके है। सोनकर होने के नाते जातिगत समीकरण में सटीक बैठ रहे है। वार्ड में सक्रियता दिखा रहे है। क्षेत्र की जनता से मिल रहे है। चुनरी यात्रा के संम्पर्क भी चुनाव में काम आ रहे है। चुनावी दौर में अपने पोस्टर से सज्जन वर्मा, अभय वर्मा, अश्विन जोशी, पिंटू जोशी को साध चुके है। लिहाजा टिकट मिलता है तो बेहतर परिणाम दे सकते है।
जातिगत समीकरण
पिछले आकड़ों के मुताबिक 3800 मुस्लिम समाज के वोटर, 4000 सोनकर समाज के वोटर, 1700 अहिरवार, जाटव समाज के वोटर1100 भाट समाज के वोटर, 450 माली समाज के वोटर, 700 धानुक समाज के वोटर शामिल है। बाकी के मराठा समाज सहित सिंधी समाज और सिख समाज के वोटर भी शामिल है। जिसमें करीब 65 प्रतिशत ही वोटिंग यहां होती है। जातिगत समीकरण के आधार पर कांग्रेस की जीत की राह आसान है।
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