खेल की कक्षा शुरू हुई तो एक दुबली-पतली अपंग लड़की किसी तरह अपनी जगह से उठी। वह खेलों के प्रति जिज्ञासा प्रकट करते हुए शिक्षक से ओलिंपिक रेकॉर्ड्स के बारे में सवाल पूछने लगी। इस पर सभी छात्र हंस पड़े। शिक्षक ने भी व्यंग्य किया- तुम खेलों के बारे में जानकर क्या करोगी। अपने ऊपर कभी नजर डाली है? तुम तो ठीक से खड़ी भी नहीं हो सकती, फिर ओलिंपिक से तुम्हें क्या मतलब है? तुम्हें कौन सा खेलना है जो यह सब जानोगी। चुपचाप बैठकर सुनो।
रुआंसी लड़की कुछ कह न सकी। सारी क्लास उस पर हंसती रही। अगले दिन जब खेल पीरियड में उसे बाकी बच्चों से अलग बिठाया गया तो उसने कुछ सोचकर बैसाखियां संभालीं और दृढ़ निश्चय के साथ बोली-सर याद रखिएगा। अगर लगन सच्ची हो और इरादे बुलंद हों तो सब कुछ संभव है। आप देखना एक दिन यही लड़की हवा से बातें करके दिखाएगी। उसकी इस बात से भी ठहाका गूंज उठा। सबने इसे मजाक के रूप में लिया। लेकिन वह लड़की तेज चलने के अभ्यास में जुट गई। वह अच्छी और पौष्टिक खुराक लेने लगी, फिर वह कुछ दिनों में दौड़ने भी लगी। कुछ दिनों के बाद उसने छोटी-मोटी दौड़ में भाग लेना भी शुरू कर दिया। उसे दौड़ते देख लोग दांतों तले उंगली दबा लेते थे। फिर कई लोग उसकी मदद को आगे आए। सबने उसका उत्साह बढ़ाया। उसके हौसले बुलंद होने लगे। फिर उसने 1960 के ओलिंपिक में हिस्सा लिया और तीन स्वर्ण पदक जीतकर सबको हतप्रभ कर दिया। ओलिंपिक में इतिहास रचने वाली वह थी अमेरिकी धाविका विल्मा रुडोल्फ।
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