रायपुर: कोरोनाकाल के दो साल में प्रदेश में प्राइवेट एंबुलेंस की संख्या 19 गुना बढ़ गई है। प्रदेश में 2019 में सिर्फ 127 प्राइवेट एंबुलेंस परिवहन विभाग से रजिस्टर्ड थे। ढाई साल में ही 23 से ज्यादा प्राइवेट एंबुलेंस रजिस्टर्ड हो चुकी हैं। भास्कर ने प्राइवेट एंबुलेंस के पड़ताल की तो खुलासा हुआ कि ज्यादातर मानकों के अनुसार नहीं हैं। एक बेसिक लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस में 23 से ज्यादा उपकरण और इन्हें चलाने के लिए विशेषज्ञ तकनीकी स्टाफ होना चाहिए।हकीकत ये है कि ये एंबुलेंस गंभीर मरीजों को टूटे फूटे स्ट्रेचर से एंबुलेंस अस्पताल तक लेकर आ रही हैं। प्राइवेट एंबुलेंस संचालक छोटी गाड़ियों को इसके लिए रजिस्टर्ड करवा रहे हैं, फिर दिखावे के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर रखते हैं। दुर्घटना, हार्ट-अटैक, यहां तक कि कोरोना के दौरान सांस की दिक्कत वाले गंभीर मरीजों से जुड़े ब्रॉड डेथ के अधिकांश मामलों में ये बड़ी वजह बनकर उभरा है।सुविधा का ऑडिट नहीं, रेट मर्जी काप्रदेश में थोक में इस तरह की एंबुलेंस मरीजों के साथ धोखाधड़ी क्यों कर पा रही है? भास्कर ने इसकी पड़ताल की तो सामने आया कि प्राइवेट एंबुलेंस की रुटीन ऑडिट, फिटनेस चैकअप के लिए कोई नियामक नहीं है। स्वास्थ्य विभाग में 108 और महतारी जतन की 102 एंबुलेंस के नोडल अफसरों ने बताया कि वे केवल सरकारी एंबुलेंस की ऑडिट करते हैं। निजी एंबुलेंस का ऑडिट नहीं होने से ये बिना मानक गंभीर मरीजों को बेरोकटोक लेकर आ जा रही हैं। इतना ही नहीं, रेट भी फिक्स नहीं है। निजी एंबुलेंस मरीज को लाने-ले जाने का 12 रुपए से 25 रुपए किमी चार्ज कर रही है।ऐसी स्थिति इसलिए… सरकारी एंबुलेंस में देरी से पहुंच रहे कॉलप्रदेश में 108 एंबुलेंस की संख्या 330 से ज्यादा है। इनमें 30 से अधिक एएलएस यानी एडवांस लाइफ सपोर्ट वाली एंबुलेंस भी हैं। वहीं महतारी जतन सेवा 102 की एंबुलेंस जो गर्भवती और एक साल की उम्र तक के बच्चों के लिए निर्धारित है, उसकी संख्या 324 से ज्यादा है।भास्कर ने डेढ़ हफ्ते से ज्यादा समय तक जब हर पहलू की पड़ताल की तो पता चला कि सरकारी एंबुलेंस तक कॉल वक्त पर नहीं पहुंच पाता। जैसे… एक्सीडेंट या आपात स्थिति में मरीज का गोल्डन टाइम यानी शुरुआती 40-45 मिनट घटनास्थल पर बर्बाद हो जाते हैं। फिर, कॉल राउटिंग में देरी से सरकारी एंबुलेंस में देर होती है। पता यह भी चला कि रात के वक्त महतारी जतन एंबुलेंस (102) नहीं आती, क्योंकि ड्राइवर के फोन बंद मिलते हैं।23 सौ से ज्यादा रजिस्ट्रेशनमरीजों की श्रेणी के आधार पर एंबुलेंस की श्रेणियां हैं। एक बाइक भी एंबुलेंस हो सकती है, पर इससे किसी गंभीर मरीज का परिवहन नहीं किया जा सकता है। बीते ढ़ाई साल में 23 सौ से ज्यादा रजिस्ट्रेशन हुए हैं। -शैलाभ साहू, आरटीओ, रायपुरअभनपुर से नहीं आ पाई जीवितकेस-1 32 साल की एक महिला की अभनपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मे डिलीवरी हुई। प्रसव के दौरान बहुत अधिक ब्लीडिंग हुई। महिला को एक निजी एंबुलेंस से अंबेडकर अस्पताल लाया गया, रास्ते में उसकी मौत हो गई। वजह थी ब्लीडिंग जैसे स्थिति से निपटने एंबुलेंस में पर्याप्त व्यवस्था नहीं होना।ऑक्सीजन नहीं थी इसलिए मौतकेस-2 इस साल फरवरी में रायपुर के होम आइसोलेशन के एक करोना मरीज को सांस लेने में तकलीफ होने के बाद परिजनों ने निजी एंबुलेंस से एम्स रायपुर में शिफ्ट करवाया। वहां उसे ले जाते वक्त एंबुलेंस में ऑक्सीजन सिलेंडर तो था लेकिन इसे लगाने पर्याप्त उपकरण नहीं थे। मरीज ने आधे रास्ते में ही दम तोड़ दिया।एंबुलेंस में ये गड़बड़ियांअधिकतर में लाइफ सपोर्ट सिस्टम नहींऑक्सीजन सिलेंडर के अटैचमेंट नहींस्ट्रेचर हैं लेकिन कुछ टूटे, कुछ खराबडायबिटीज, बीपी के जांच उपकरण नहींगर्भवती महिलाओं के लिए सीट ही नहींबेसिक लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस में ये सब जरूरीपोर्टेबल ग्लूकोमीटर, ग्लूकोमीटर स्ट्रिप, इलेक्ट्रिक नेबोलाइजर, सक्शन डिवाइस (मैनुवल-इलेक्ट्रिक), लैरिंगोस्कोप विथ ब्लेड, बीपी इंस्ट्रूमेंट, स्टेथोस्कोप, मैनुअल ब्रीथिंग यूनिट (एडल्ट-चाइल्ड), हेड इमोबिलाइजर, एयर स्पीलिंट्स, सरवाइकल कॉलर, क्लोस्पिबल स्ट्रैचर, स्कूप स्ट्रैचर, स्पिन बोर्ड, कैनवास स्ट्रैचर (फोल्डिंग), गॉज कटर, आर्टरी फोरसेप, मैगलिस फोरसेप, ऑक्सीजन सिलेंडर (बी और टाइप)पर ये हाल…एंबुलेंस में फोटोकॉपी शाॅप, स्ट्रेचर से मरीज का सिर बाहर1 राजधानी के सबसे बड़े सरकारी सुपरस्पेशलिटी अस्पताल डीकेएस के बाहर दर्जनभर से ज्यादा प्राइवेट एंबुलेंस हैं। एक निजी एंबुलेंस में फोटो कॉपी की दुकान चल रही थी। संचालक ने बताया कि अस्पताल के मरीजों के दस्तावेज यहां फोटो कॉपी किए जाते हैं। अगर मरीज मिल गया तो दुकान बंद कर एंबुलेंस से उसे ले जाते हैं। फोटोकाॅपी मशीन के बाद इस एंबुलेंस में मरीज के लायक जगह कम थी।2 डॉ. भीमराव अंबेडकर अस्पताल के सामने मरीज को उतारकर लौटी एंबुलेंस के चालक ने स्वीकार किया कि मरीज के सिर पर चोट थी। स्ट्रेचर का साइज ऐसा था कि उसका सिर वाला हिस्सा गाड़ी के फ्लोर को छू रहा था, पैर वाला हिस्सा काफी ऊंचा था। सिर पर चोट वाले मरीज को लाते समय कितने झटके लगे होंगे, यह समझा जा सकता था। यही नहीं, ऑक्सीजन सिलेंडर थे पर अटैचमेंट नहीं दिखा।निजी एंबुलेंस के लिए नियामक संस्था की जरूरत है। रेट तय होने चाहिए। सरकारी और प्राइवेट के कलर कोड भी अलग रहना चाहिए।-डॉ. कमलेश जैन, नोडल अधिकारी-108रजिस्ट्रेशन से पहले मानकों के आधार पर जांच हो। नर्सिंग होम एक्ट की तरह प्राइवेट एंबुलेंस के लिए भी नियम कायदे होने चाहिए।-डॉ. राकेश गुप्ता, अध्यक्ष, हॉस्पिटल बोर्डगंभीर मरीजों के लिए एंबुलेंस में क्रिटिकल केयर सुविधाएं होनी चाहिए। ऐसा हो तो मरीज के अस्पताल में ठीक होने के चांस बढ़ते हैं।
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