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हनुमान चालीसा पाठ कब और कैसा करना होता है सबसे ज्यादा लाभकारी

ऐसी मान्यता है कि भगवान हनुमान आज भी इस पृथ्वी पर मौजूद हैं क्योंकि उनको अमरता का वरदान प्राप्त है। भगवान हनुमान को कलयुग का देवता माना गया है।

सभी देवी-देवताओं में हनुमानजी को सबसे अधिक पूजनीय देव माना गया है। भगवान हनुमान को संकटमोचक,साहस,पराक्रम और असीम शक्ति के रूप में मानकर पूजा-उपासना की जाती है। मंगलवार के दिन सबसे ज्यादा हनुमानजी के दर्शन और उपासना होती है क्योंकि मंगलवार का दिन बजरंगबली को समर्पित होता है। हनुमान को प्रसन्न करने और उनकी कृपा पाने के लिए हनुमान चालीसा का पाठ करना सबसे आसान उपाय है। हनुमान चालीसा में हनुमान जी की स्तुति और उनके साहस व पराक्रम के बारे में गोस्वामी तुलसीदास जी ने सम्पूर्ण रूप से वर्णन किया है। मान्यता है कि हनुमान चालीसा का नियमित पाठ करने से सभी तरह के कष्ट फौरन ही दूर हो जाते हैं और सभी मनोकामनाएं भी जल्द पूरी हो जाती हैं। हनुमान चालीसा के पाठ करने के कई फायदे हैं और इसके कुछ नियम भी हैं जिसे अपनाकर भगवान हनुमान को प्रसन्न किया जा सकता है।

हनुमान चालीसा पाठ कब करें
शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान हनुमान को जल्द प्रसन्न करने के लिए सुबह और शाम के वक्त हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए।
सुबह स्नान करने के बाद भगवान राम और हनुमानजी का स्मरण करते हुए हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए।
शाम के समय हनुमान चालीसा का पाठ करते समय साफ-सफाई का विशेष ध्यान देना चाहिए।
हनुमान चालीसा का पाठ करते समय मन में कभी भी बुरे ख्याल नहीं लाना चाहिए।

हनुमान चालीसा पाठ के फायदे
नियमित रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करने से मन से भय दूर होता है। बुरे सपने नहीं आते हैं और नकारात्मक शक्तियां दूर रहती हैं।
हनुमान चालीसा का पाठ करने पर जीवन में आने वाली रूकावटें दूर हो जाती हैं।
प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करने से तनाव दूर होता है।
दुर्घटना होने पर अगर हनुमान चालीसा का पाठ किया जाय तो भक्तों के कष्ट जल्द ही दूर हो जाते हैं।
जातक की कुंडली में अगर शनि संबंधी दोष है तो शनिवार के दिन हनुमान चालीसा का पाठ करने से कम हो जाता है।
नौकरी में परेशानी या व्यापार में नुकसान होने पर भी हनुमान चालीसा का पाठ करने से संकट टल जाते हैं।
हनुमान जी को प्रसन्न के लिए हनुमान चालीसा के अलावा बजरंग बाण और संकटमोचन अष्टक पाठ करना भी लाभदायक होता है।
दोहा

श्रीगुरु चरन सरोज रज निजमनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।

चौपाई

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।। रामदूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।

महावीर विक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।। कंचन वरन विराज सुवेसा। कानन कुण्डल कुंचित केसा।।

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै। शंकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग वन्दन।।

विद्यावान गुणी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।। प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। विकट रूप धरि लंक जरावा।। भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचंद्र के काज संवारे।।

लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।। रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।। सनकादिक ब्रह्मादि मुनीशा। नारद सारद सहित अहीसा।।

जम कुबेर दिगपाल जहां ते। कवि कोविद कहि सके कहाँ ते।। तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

तुम्हरो मंत्र विभीषन माना। लंकेश्वर भये सब जग जाना।। जुग सहस्र योजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।। दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।। सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डरना।।

आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै।। भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।

नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा।। संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम वचन ध्यान जो लावै।।

सब पर राम तपस्वी राजा। तिनके काज सकल तुम साजा। और मनोरथ जो कोई लावै। सोई अमित जीवन फल पावै।।

चारों युग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।। साधु-संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे।।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस वर दीन जानकी माता।। राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।।

तुम्हरे भजन राम को भावै। जनम-जनम के दुख बिसरावै।। अन्त काल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई।।

और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेई सर्व सुख करई।। संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

जै जै जै हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।। जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहिं बंदि महा सुख होई।।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा।। तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा।।

दोहा
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप। राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।

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