12 दिन तक चले ईरान-इजरायल युद्ध को भले ही अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने थामा हो, लेकिन पर्दे के पीछे से इस आग को बुझाने में कतर ने सबसे बड़ी भूमिका निभाई है। दरअसल ईरान और इजरायल के बीच जैसे ही लड़ाई तेज हुई, अमेरिका ने अपनी डिप्लोमैटिक ताकतों को एक्टिव किया और मध्यस्थता के लिए कतर का सहारा लिया। कतर के प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद बिन अब्दुल रहमान अल थानी ने न सिर्फ तेहरान से बात की, बल्कि ईरान के सुप्रीम लीडर अली खामेनेई से सीधी बातचीत कर युद्ध रोकने के लिए सहमति भी हासिल की।
वहीं मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो, जब ट्रंप और अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने कतर के अमीर से संपर्क किया तो उन्होंने तुरंत अपने प्रधानमंत्री को जिम्मा सौंपा। ट्रंप ने पहले ही इजरायल को युद्धविराम के लिए राजी कर लिया था। इसके बाद कतर के प्रधानमंत्री ने तेहरान से संपर्क कर ईरान को बातचीत के लिए तैयार किया।
12 दिन की तबाही के बाद आया ये विराम
दरअसल ईरानी अधिकारियों ने यह माना है कि कतर की पहल के बाद ही उन्होंने युद्धविराम को मंजूरी दी। खास बात यह रही कि कतर ने यह पहल तब की जब ईरान ने वहां स्थित अमेरिकी एयरबेस पर मिसाइल हमला कर दिया था। बावजूद इसके, कतर ने शांति की पहल से खुद को एक जिम्मेदार और ताकतवर डिप्लोमैटिक खिलाड़ी के रूप में पेश किया। इस संघर्ष की शुरुआत 13 जून को हुई थी जब इजरायल ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हवाई हमला कर दिया। जवाब में ईरान ने भी इजरायल के शहरों को निशाना बनाते हुए मिसाइलें दागीं। 22 जून को अमेरिका ने भी हस्तक्षेप करते हुए ईरान के सैन्य अड्डों पर बंकर बस्टर बम गिराए। जवाबी कार्रवाई में ईरान ने कतर में अमेरिका के अल उदीद एयरबेस को निशाना बनाया, जिससे हालात और तनावपूर्ण हो गए। लेकिन इसके बाद ही ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका ने कतर को मध्यस्थता के लिए आगे किया और यह शांति वार्ता सफल भी रही।
कतर की भूमिका ने दिया अंतरराष्ट्रीय संदेश
वहीं कतर की इस पहल ने उसे सिर्फ खाड़ी देशों में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में एक प्रभावशाली शांति दूत के तौर पर स्थापित कर दिया है। अमेरिका और ईरान जैसे दो कट्टर विरोधी देशों के बीच संवाद स्थापित करना किसी भी देश के लिए आसान नहीं होता। लेकिन कतर ने दिखाया कि अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति और रणनीतिक सोच हो, तो बातचीत से किसी भी युद्ध को रोका जा सकता है।

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