खजूर की खेती कैसे शुरू करें (How to Start date Palm Tree farming Business in hindi)
अरब में खजूर का उत्पादन और उपभोग सबसे ज्यादा होता हैं. कुरान में इसे पवित्र फल माना गया हैं, विश्व भर में रमजान के दौरान इसका उपयोग किया जाता हैं. इसमें बहुत से पोषक तत्व जैसे शुगर, कैल्शियम, निकोटिनिक एसिड, पोटाशियम और आयरन होते हैं. खजूर पाम फैमिली का सदस्य हैं, और ये ट्रॉपिकल क्लाइमेटिक कंडीशन में ही उगता हैं. वैसे ये मरुस्थलीय क्षेत्र की भी सबसे महत्वपूर्ण फसल हैं, लेकिन इसे सामान्य कृषि के अंतर्गत भी उगाया जा सकता हैं और अब भारत में भी इसका औद्योगिक उत्पादन होने लगा हैं.
खजूर का विवरण
खजूर उत्पादन विश्व कृषि उद्योग का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, इसका सबसे ज्यादा उत्पादन दक्षिण एशिया और उत्तरी अफ्रीका के गर्म इलाकों में किया जाता हैं, वहाँ से दुनिया भर के विभिन्न देशों में इसका विक्रय किया जाता हैं. भारत में मुख्यतया राजस्थान, गुजरात और दक्षिण भारत के तमिलनाडु और केरला में इसका उत्पादन होता हैं.
खजूर के प्रकार (Type of dates)
हालांकि दुनिया भर में कई तरह की खजूर की किस्में मिलती हैं, लेकिन भारत में 1000 से ज्यादा प्रकार की खजूर मिलती हैं, जिनमें बढ़ी (barhee), मेद्जूल (medjool), शमरण (Shamran), खादर्वे (khadarway), हलवी (Halawy), ज़हीदी (Zahidi), खलास (khalas), वाइल्ड डेट पाम शामिल हैं. इजराइल में 7 प्रकार की खजूर उगाई जाती हैं, जिनके नाम बढ़ी, डेग्लेट नूर, हलावी, खाद्रव्य (khadrawy),थूरी (Thoory) और ज़हीदी डेट्स मुख्य हैं.
खजूर उत्पादन के तरीके (Growing process)
डेट पाम की खेती किसी पेड़ के आधार से निकलते हुए तने (सकर्स) से, बीज (सीड्स) से या ऊतक (टिश्यू) कल्चर से की जा सकती हैं. इसके लिये किसानों को सिर्फ बीजों पर निर्भर रहना जरूरी नहीं होता, वैसे भी बीजो से खराब गुणवता के फलों के उत्पादन की संभावना बढ़ जाती है.
मदर पाम ट्री की उम्र 4 से 5 वर्ष होने के बाद ही उसे, उसके पेड़ के आधार के तने (सकर्स) को अलग करना चहिये. इस प्रक्रिया में पेड़ के जीवन काल के 4थे और 10वे साल में 9 से 15 किलो तक के, 9 से लेकर 20 बार तक पेड़ के आधार से तने (सकर्स) प्राप्त किये जा सकते हैं, इस कारण ये बहुत समय लेने वाला और मेहनत का तरीका हैं. टिश्यू कल्चर तकनीक ही खजूर उत्पादन के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त तकनीक हैं, लेकिन अभी इसका औद्योगिक उपयोग इतना किफायती और प्रचलन में नहीं हैं.
खजूर के बनने में कितना समय लगता हैं? (How long does it take for a date palm to produce? (मेग्जूल)
ज्यादातर खजूर के पेड़ अपने पैरेंट ट्री के ऑफशूट जिन्हें पप्स (pups) कहते है, से ही उगाये जाते हैं, पप को ट्रांसप्लांट करने लायक बनाने के लिए लगभग 6 से 8 वर्ष लगते हैं और उसके बाद 6 से 7 वर्ष इन्हें फल देने में लगते हैं.
आवश्यक क्लाइमेट (Climate required)
खजूर के बेहतर उत्पादन के लिए कम आद्रता और पर्याप्त रोशनी होनी चाहिये, इसके लिए बहुत धुप वाले लम्बे दिन होने चाहिए और रात का तापमान भी कम होना चाहिए. इसके लिए किसी तरह की वर्षा की आवश्यकता नहीं होती, विशेषकर फल और फूल के सीजन में.
खजूर उत्पादन के लिए 120 डिग्री का तापमान और 3 इंच की प्रति वर्ष बारिश पर्याप्त होती हैं, इसी कारण इन्हें मरुस्थल में भी उगाया जा सकता हैं.
डेट ट्री के पास एक विशेष प्रकार का बोर्डर खोदा जाता हैं ये बार्डर उस पानी को एकत्र करता हैं जिससे डेट की जड़ों को पर्याप्त पानी मिलता रहे, प्रत्येक पेड़ की जड़ों को प्रति वर्ष लगभग 60,000 गैलन तक पानी की आवश्यकता होती हैं. ये बार्डर जल संरक्षित करने और वीड (जंगली घास) को उगने से रोकता हैं.
अगस्त के आस-पास खजूर के गुच्छे (बंच) को काट लिया जाता हैं, इसमें मुख्य तने (मेन स्टॉक) की मोटाई का विशेष ध्यान रखा जाता हैं.
आवश्यक मृदा (Which type of soil required)
खजूर उत्पादन के लिए वेल-ड्रेन डीप लोम मिटटी की आवश्यकता होती है, जिसका pH8 से pH10 केे मध्य होना चाहिए, मिटटी में नमी सोखने की क्षमता होनी चाहिए. खजूर को सलाइन (लवणीय) और एल्कलाइन मिटटी में भी उगाया जा सकता हैं. मिट्टी कैल्शियम कार्बोनेट मुक्त होनी चाहिए और जड़ों को विकसित करने के लिए 2.5 मीटर तक किसी तरह की कठोरता नहीं होनी चाहिए.
कटाई (Harvesting)
डेट के प्लांटिंग के 6 से 7 वर्ष बाद ही खजूर कटाई के योग्य हो पाते हैं. इसकी कटाई मुख्यतया इसकी वेरायटी पर निर्भर करती हैं ,भारत में खजूर के फल को “डोका” स्टेज में निकाला जाता हैं.
इस तरह मुख्य प्रकार के खजूरों को हार्वेस्ट करने के लिए अपनाए जाने वाले अलग-अलग तरीके मुख्यतया निम्न हैं-
बढ़ी (Barhee)
खजूर के इस किस्म की कटाई खुले हुए पीले स्तर पर (जिसे खलल कहते हैं) की जाती हैं. यह फल मार्केट में ब्रांचेज पर मिलता हैं और ये ब्रांचेज ही कार्डबोर्ड बॉक्स में एक्सपोर्ट की जाती हैं. इस तरह की मार्केटिंग और उपभोग के लिए ही इसे खलल के रूप में काटना जरुरी होता हैं,वरना ये खराब हो जाते हैं.
साथ ही इसमें फल मीठा होना भी जरुरी होता हैं इसलिए बढ़ी की कटाई करने के समय का ध्यान रखना बहुत महत्वपूर्ण हैं जिससे कि ये ग्राहकों तक बिना खुले (अनराइप स्थिति में) ही पहुच सके. गुच्छे (बंच) की कटाई एक विशेष चाक़ू से की जाती हैं,लगभ 20 किलो भारी बंच को सीधे जमीन पर रखा जाता हैं या किसी विशेष हेंगर में लटकाया जाता हैं और सीधे पैकिंगहाउस को ट्रांसफर कर दिया जाता हैं. कटाई की प्रक्रिया 3 से 5 राउंड में की जाती हैं और केवल उपयुक्त अवस्था में मिलने वाले गुच्छे (बंच) को ही काटा जाता हैं.
डेगलेट नौर (Deglet Nour)
डेगलेट नौर का 2 तरीकों से उपयोग किया जाता है,एक तो बशाखाओं पर लगे फल के साथ ही और दूसरा शाखा से अलग हुए फल के रूप में,इसलिए कटाई के समय विशेष तौर पर ये ध्यान रखा जाता हैं कि फ्रूट अपनी मौलिक स्थिति बनाये रखे.
शाखाओं पर से फल की कटाई करना
अल्जीरिया,ट्यूनीशिया और इजराइल में कई टनों में फल की कटाई की जाती हैं ,जहां से इसे फ़्रांस,स्पेन और इटली एक्सपोर्ट किया जाता हैं. गुच्छों (बंचेज) को तब हार्वेस्ट किया जाता हैं जब ज्यादातर फल पकी अवस्था में हो,इससे पहले कि वो खराब हो, कुछ खलल के साथ इन्हें काटकर अलग कर लिया जाता हैं.
गुच्छो(बन्चेज) को कंटेनर या किसी अन्य उपकरण में सावधानी से रखा जाता हैं और पैकेजिंग हाउस को ट्रांसपोर्ट किया जाता हैं, ज्यादातर जगह गुच्छों (बंचेज) को कीड़ो (पेस्ट्स) या पक्षियों से बचाने के लिए नेट में रखा जाता हैं, या फिर वैक्स पेपर या नाइलोन स्लीव में रखकर भी वर्षा से बचाया जाता हैं. गुच्छों (बन्चेज) से फल को झड़ने से बचाने के लिए ये जरुरी हैं कि उन्हें सुरक्षित रखा जाए और हिलाया ना जाए.
5 से 7 दिनों के अन्तराल से 3 से 5 बार तक कटाई की जाती हैं,जब तक कि सारे गुच्छे (बन्चेज) पाम से कट ना जाए.
जिन गुच्छों (बन्चेज) पर कम फल होते हैं लेकिन मार्केटिंग के योग्य होते हैं उन्हें अलग तरीके से बंच से हटाकर एक अलग तरीके से मार्केट में ले जाया जाता हैं.
अलग हुए फलों की कटाई ( Harvesting loose fruits to be sold unattached)
पेड़ की स्थिति के अनुसार कटाई की जाती हैं,इसके लिए फल का पकी अवस्था में होना जरुरी हैं. इस फल को हाइड्रेशन ट्रीटमेंट दिया जाता हैं इसलिए इसे तब तक पाम पर लगाया रखा जा सकता हैं जब तक कि इस अवस्था के सभी फल पककर सुख ना जाए. जब कटाई की जाती हैं तब फल को वर्षा से बचाना जरुरी होता हैं क्योंकि वर्षा के कारण फल में फर्मेंटेशन या अपघटन हो जाता हैं,या कीड़े भी लग सकते हैं.
मेग्जुल
बहुत से किसान कटाई के दौरान खजूर तक पहुंचने के लिए सीढ़ी (लेडर्स) का उपयोग करते हैं,तो कुछ फोर्कलिफ्ट पर यू- शेप के बास्केट की सहायता से भी खजूर तक पहुचते हैं,क्योंकि इस तकनीक से 40 फीट उंचाई तक के पेड़ों की शाखाओं से खजूर तोड़े जा सकते हैं. इसके लिए तोड़ने वाला व्यक्ति हाथ में ट्रे लेकर उपर चढ़ते हैं और ट्रे के पूरा भर जाने पर वापिस नीचे भेज दिया जाता हैं और बड़ी ट्रे में डालकर इन्हें प्रोसेसिंग एरिया में भेजा जाता हैं. इनमे ज्यादातर खजूर तो पके हुए भूरे रंग के ही होते हैं लेकिन कुछ पीले भी होते हैं,इन पीले खजूरों को पकने के लिए धुप में सुखा दिया जाता हैं.
पैकिंग (Packing)
बढ़ी (Barhee)
बढ़ी को पैक करने के लिए उपयुक्त तापमान की आवश्यकता होती हैं,साथ ही ये जरुरी होता हैं कि इसे खलल अवस्था में बनाये रखने और इसकी नमी को भी बनाये रखने के लिए कम से कम समय में पैकिंग करते हैं. जोर्डन,इजरायल,यूएसए और सऊदी अरब में 5 किलो के कार्डबोर्ड के बोक्सेज में फल को ब्रांच समेत पैक किया जाता हैं. हरे या पके हुए खजूर को ब्रांचेज से हटाया जाता हैं और केवल स्मूथ,साफ़,पीले खजूर को पैक करते हैं.
डेगलेट नौर (Packing Deglet Nour on branches)
पहले केवल यूरोप ही इसकी पैकिंग करने में एक्सपर्ट था लेकिन बाद में उन सभी देशों में इसकी पैकिंग की जाने लगी जहां इसकी पैदावार होती हैं. इसके लिए टेलीस्कोपिक कार्डबोर्ड बॉक्स का उपयोग होता हैं जिसमें एक बॉटम और लीड होता हैं इसका वजन लगभग 5 किलो होता है, पैकेज को खजूर के पेड़ या डेगलेट नौर की पिक्चर्स से सजाया जाता हैं. फ्रूट्स को छाया में ही हैंगिंग फ्रेम से लटकाया जाता हैं. मार्केटिंग के लिए उपयुक्त ब्रांचेज को काटकर एक लाइन में व्यवस्थित करके कार्डबॉक्स में जमाया जाता हैं. बॉक्स की साइज़ समान्यतया 50 ×30 सेमी की होती हैं,और यह बॉक्स इस तरह से बना होता हैं कि इसमें 120×100 सेमी के स्टैण्डर्ड पेलेट को जमाया जा सके. इन फलों के उपर पारदर्शी (ट्रांसपेरेंट) सेलफोन की शीट लगाई जाती हैं और लीड को दबाकर बंद किया जाता हैं जिससे नमी बनी रहे.
इसका फल सॉफ्ट,ज्यूसी और हल्के रंग का और पारदर्शी होना चाहिए. एक अच्छे डेगलेट नौर के बीज (सीड) को लाईट में देख सकते हैं,फल ब्रांच से जुड़ा हुआ और क्लीन होना चाहिए,इसकी नमी 26% से ज्यादा नहीं होनी चाहिए, प्रत्येक ब्रांच 10 सेमी लम्बी होनी चाहिए और इस लम्बाई पर 5 खजूर लगे होने चाहिए. ब्रांच पर 1% से ज्यादा हरे फल और अधपके फल (खलल अवस्था) नहीं होने चाहिए. बिना काम के,सूखे, और खुले हुए फलों को ब्रांचेज से हटा दिया जाता हैं.जिन्दा कीड़े दिख जाए तो उन्हें भी हटाया जाता हैं,फल को पैक करने से पहले मिथाइल ब्रोमाइड का धुँआ दिया जाता हैं.फल पर धूल ना लगी हो इसका विशेष ध्यान रखा जाता हैं. एक बॉक्स में 3% से ज्यादा अलग हुए फल ना हो,इस बात का ध्यान रखा जाता हैं. वैसे कोई स्टैण्डर्ड साइज नहीं हैं लेकिन प्रत्येक फल का वजन कम से कम 8.50 ग्राम होना चहिये.
ब्रांचेज पर डेगलेट नौर को 2 तरीकों से पैक किया जा सकता हैं (Deglet Nour on branches offers two alternative packages)
गुच्छे: फलों को एक लम्बे कार्ड बॉक्स में 2 गुच्छों में पैक किया जाता हैं, इसका कुल वजन 10 किलो होता हैं, इसकी क्वालिटी 5 किलो बॉक्स में पैक किये जाने वाले फ्रूट जैसी होती हैं.बुकेट(Bouquets): कार्डबोर्ड ट्रे के एक सेलफोन बैग में 3 से 5 गुच्छों को पैक किया जाता हैं,ब्रांचेज को उनके बेस से बांधा जाता हैं. इस पैक का वजन 200 से 400 ग्राम का होता हैं, और इसमें लेबर की बहुत जरूरत होती हैं.
डेगलेट नौर को pack करते समय इसकी क्वालिटी का ध्यान रखना (Quality considerations in packing Deglet Nour)
इस फ्रूट के सॉफ्ट और ज्युसी टेकश्चर को बनाये रखने के लिए ये ध्यान रखना बहुत जरुरी हैं कि इस पर धुल-मिटटी ना लगे, इसके अलावा वजन भी सही होना चाहिए, पैकिंग के दौरान,स्टोरेज और शिपिंग कंडीशन भी अनुकूल रखनी जरुरी हैं,वरना ये फल जल्द ही खराब हो सकते हैं.
मेग्जुल
कटाई के बाद आई खजूरों की ट्रे को शेकर टेबल पर खाली किया जाता हैं. इस टेबल पर टेरीक्लॉथ का कपड़ा लगा होता हैं,जैसे-जैसे खजूर इस टेबल से धीरे-धीरे निकलते हैं,वो इस गीले तौलिये से साफ़ होते चले जाते हैं. ये तौलिया दिन में 2 से 3 बार बदला जाता हैं. इसके बाद खजूरों को कन्वेयर बेल्ट (conveyor belt) पर रोल किया जाता हैं जहां पर उन्हें साइज और क्वालिटी के आधार पर अलग किया जाता हैं,और फिर पैक करते हैं.
इस तरह खजूर की विभिन्न वेरायटी को पैक करने के तरीके भी अलग-अलग होते हैं.
स्टोरेज और रेफ्रिजरेशन ( Storage and refrigeration)
मेग्जुल खजूर को बेचने तक कोल्ड स्टोरेज में सुरक्षित रखा जाता हैं. डेगलेट नौर को भी 0- 4oC के तापमान पर रखना आवश्यक हैं, फ्रीजिंग से फल गहरे रंग का हो जाता हैं.
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