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जंगल कटाई पर राहुल बोले- मुझे जानकारी है, सामाजिक कार्यकर्ता बोले- आप संज्ञान लें

रायपुर: राहुल गांधी भातर जोड़ो यात्रा निकाल रहे हैं। इस यात्रा में वो जल, जंगल जमीन को बचाने की बात करते देखे जाते हैं। इस बार हसदेव का मामला उनतक पहुंचा है। सरगुजा के हसदेव जंगलों को काटकर कोल खदानें बनाई जाएंगी। सामाजिक कार्यकर्ता और स्थानीय लोग इसका विरोध कर रहे हैं। विरोध की आवाज अब भारत जोड़ो यात्रा के जरिए राहुल गांधी तक पहुंची है।सामाजिक कार्यकर्ता आलोक शुक्ला भी भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुए। यात्रा में उन्होंने राहुल गांधी से मुलाकात की। चलते-चलते कहा कि छत्तीसगढ़ के हसदेव इलाके में कोल प्रोजेक्टस की वजह से जंगलों को बड़ा नुकसान हो रहा है। आप इस मामले में संज्ञान लें। लोग 250 दिनों से धरना दे रहे हैं, कोई राहत अब तक नहीं मिली है। इसके बाद राहुल गांधी ने कहा- ये मामला मेरी जानकारी में है, मैं इसे देख रहा हूं। आलोक की राहुल गांधी से ये मुलाकात एमपी के आगर इलाके में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान हुई।लंदन में भी छात्र हसदेव पर पूछ चुके हैं राहुल से सवालकरीब 6 महीने पहले सरगुजा, सूरजपुर और कोरबा जिलों में फैले हसदेव अरण्य में कोयला खनन का मुद्दा लंदन की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में उठा था। वहां पहुंचे राहुल गांधी से स्टूडेंट ने इसके बारे में सवाल किया। जवाब में राहुल गांधी ने कहा, वे इस मुद्दे पर पार्टी के भीतर बात कर रहे हैं। जल्दी ही इसका नतीजा दिखेगा। राहुल गांधी पिछले चार दिन लंदन में रहे । वे वहां कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में आयोजित संवाद में हिस्सा लेने पहुंचे । उन्होंने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के “कॉर्पस क्रिस्टी कॉलेज’ में आयोजित “इंडिया@75′ कार्यक्रम में स्टूडेंट्स के साथ बातचीत की थी। इन छात्रों में अधिकतर भारतीय मूल के थे।8 हजार पेड़ कट चुके अब तकहसदेव मामले में आंदोलनरत सामाजिक कार्यकर्ता आलोक शुक्ला ने बताया कि लोगों के विरोध के बाद भी हसदेव इलाके में पेड़ों की कटाई हुई। करीब 8 हजार पेड़ काट दिए गए। सितंबर के महीने में ये सब कुछ हुआ। विरोध बढ़ा मामला अदालत में पहुंचा तो कटाई पर रोक लगी। विवाद अब भी जारी है।दो सप्ताह बाद बड़ा कार्यक्रमहसदेव इलाके में बीते 250 दिनों से ग्रामीणों का आंदोलन जारी है। आलोक ने बताया कि दिसंबर के आगामी सप्ताह में इस इलाके में बड़ा आंदोलन करने जा रहे हैं। पूरे प्रदेश से लोग जुटेंगे, आंदोलन को लेकर रणनीति बनाई जाएगी। क्योंकि खनन से जुड़े कॉर्पोरेट घराना सक्रिय होकर खदानें शुरू करने की कोशिश में हैं।सुप्रीम कोर्ट भी गया है मामलाहसदेव मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है। उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार से भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद-ICFRE की अध्ययन रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया था। ICFRE ने दो भागों की इस रिपोर्ट में हसदेव अरण्य की वन पारिस्थितिकी और खनन का उसपर प्रभाव का अध्ययन किया है।हसदेव अरण्य में हजारों पेड़ों की कटाई के बाद केंद्र सरकार और राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम ने वादा किया है कि वे अगली सुनवाई तक कोई पेड़ नहीं काटेंगे। यह वादा उच्चतम न्यायालय में न्यायमूर्ति डी.वाई चंद्रचूड़ और हिमा कोहली की बेंच के सामने किया गया। यह बेंच हसदेव में कोयला खदानों के लिए वन भूमि आवंटन को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई कर रही है।इन मांगों पर आंदोलनहसदेव अरण्य क्षेत्र की समस्त कोयला खनन परियोजना निरस्त किया जाए।बिना ग्रामसभा की सहमति के हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोल बेयरिंग एक्ट के तहत किए गए भूमि अधिग्रहण को तत्काल निरस्त किया जाए।पांचवी अनुसूची क्षेत्र में किसी भी कानून से भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया के पूर्व ग्रामसभा से अनिवार्य सहमति के प्रावधान लागू किए जाएं।परसा कोल ब्लाक के लिए ग्राम सभा फर्जी प्रस्ताव बनाकर हासिल की गई वन स्वीकृति को तत्काल निरस्त किया जाए और ऐसा करने वाले अधिकारी और कम्पनी पर FIR दर्ज हो।घाटबर्रा गांव के निरस्त सामुदायिक वन अधिकार को बहाल करते हुए सभी गांवों में सामुदायिक वन अधिकार और व्यक्तिगत वन अधिकारों को मान्यता दी जाए।अनुसूचित क्षेत्रों में पेसा कानून का पालन कराया जाए।ऐसा है हसदेव अरण्य का संकट2010 में नो-गो क्षेत्र घोषित होने के बाद कुछ समय के लिए यहां हालात सामान्य रहे। केंद्र में सरकार बदली तो इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर कोयला खदानों का आवंटन शुरू हुआ। ग्रामीण इसके विरोध में आंदोलन करने लगे। 2015 में राहुल गांधी इस क्षेत्र में पहुंचे और उन्होंने ग्रामीणों का समर्थन किया। कहा था – इस क्षेत्र में खनन नहीं होने देंगे। छत्तीसगढ़ में सरकार बदली लेकिन इस क्षेत्र में खनन गतिविधियों पर रोक नहीं लग पाई। हाल ही में भारतीय वानिकी अनुसंधान परिषद (ICFRE) ने एक अध्ययन रिपोर्ट जारी की है। इसके मुताबिक हसदेव अरण्य क्षेत्र को कोयला खनन से अपरिवर्तनीय क्षति होगी जिसकी भरपाई कर पाना कठिन है। इस अध्ययन में हसदेव के पारिस्थितिक महत्व और खनन से हाथी मानव द्वंद के बढ़ने का भी उल्लेख है।

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