पुरी की पवित्र धरती पर हर साल निकलने वाली जगन्नाथ रथयात्रा सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि आस्था का महासागर होती है। लाखों श्रद्धालु इस दिन भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने के लिए उमड़ते हैं। रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा गुंडिचा मंदिर जाते हैं, जिसे देवी गुंडिचा का घर माना जाता है।
इस यात्रा का विशेष महत्व है क्योंकि इसे भगवान का अपनी मौसी के घर जाना कहा जाता है। लेकिन सवाल ये उठता है कि कौन हैं देवी गुंडिचा? और क्यों उनका स्थान भगवान के लिए इतना खास है? आइए जानें इस अद्भुत कथा के पीछे की सच्चाई और आस्था का रहस्य।
देवी गुंडिचा की कथा और भगवान जगन्नाथ से उनका संबंध
1. देवी गुंडिचा कौन थीं और क्यों कहलाती हैं मौसी?
देवी गुंडिचा राजा इंद्रद्युम्न की पत्नी थीं, जिन्होंने पुरी में जगन्नाथ मंदिर का निर्माण करवाया था। उन्हें भगवान विष्णु की परम भक्त माना जाता है। यह भी माना जाता है कि भगवान ने स्वयं उनके आग्रह पर पुरी में अवतार लिया और वहां निवास किया।
किंवदंतियों के अनुसार, गुंडिचा देवी को भगवान जगन्नाथ की मौसी के रूप में मान्यता दी गई है। जब भगवान साल में एक बार रथ में सवार होकर उनके मंदिर पहुंचते हैं, तो इसे एक पारिवारिक यात्रा की तरह देखा जाता है, जैसे कोई भांजा अपनी मौसी के घर मेहमान बनकर जाता हो।
2. गुंडिचा मंदिर की विशेषता और रथयात्रा में इसका महत्व
पुरी स्थित गुंडिचा मंदिर पुरी के मुख्य श्रीमंदिर से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह वही स्थान है जहां भगवान जगन्नाथ रथयात्रा के दौरान सात दिन तक विश्राम करते हैं। इस मंदिर का वास्तुशिल्प सादगी भरा है, लेकिन इसकी आध्यात्मिक ऊर्जा अत्यंत शक्तिशाली मानी जाती है।
रथयात्रा के दौरान भगवान को जो रथों में बैठाकर ले जाया जाता है, वह गुंडिचा मंदिर तक ही यात्रा होती है। इसे ‘गुंडिचा यात्रा’ भी कहा जाता है। यह परंपरा सदियों पुरानी है और इसे देखने के लिए हर साल लाखों लोग पुरी आते हैं।
3. गुंडिचा यात्रा की कथा और इसकी आध्यात्मिक व्याख्या
धार्मिक मान्यता के अनुसार, रथयात्रा का उद्देश्य केवल भगवान का भ्रमण नहीं बल्कि भक्तों को यह सिखाना भी है कि ईश्वर अपने भक्तों के प्रेम के वश में होते हैं। देवी गुंडिचा का भक्ति-भाव इतना गहरा था कि भगवान हर साल स्वयं उनके घर जाते हैं और कुछ दिन वहां रुकते हैं।
इस यात्रा के पीछे एक और गहरा भाव छिपा है, यह निर्मलता और निष्कलंक सेवा का प्रतीक है। गुंडिचा मंदिर को यात्रा से पहले पूरी तरह साफ किया जाता है, जिसे गुंडिचा मरजना कहते हैं। यह दर्शाता है कि ईश्वर को आमंत्रित करने से पहले हमें अपने मन, शरीर और कर्म को भी शुद्ध करना चाहिए।
जगन्नाथ रथयात्रा और देवी गुंडिचा की आस्था का अद्वितीय संगम
जगन्नाथ रथयात्रा में गुंडिचा मंदिर की भूमिका सिर्फ एक गंतव्य की नहीं बल्कि आध्यात्मिक पुनर्जन्म की होती है। यह यात्रा सिखाती है कि ईश्वर की प्राप्ति के लिए भक्ति, सेवा और प्रेम ही सबसे बड़ा मार्ग है। देवी गुंडिचा, भगवान की मौसी होने के नाते, इस यात्रा की सबसे पवित्र कड़ी बन जाती हैं।
उनकी कथा और उनके मंदिर से जुड़ी परंपराएं न केवल धर्म का हिस्सा हैं बल्कि भारतीय संस्कृति की जीवित धरोहर भी हैं। यही कारण है कि आज भी लाखों लोग भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा में सम्मिलित होकर देवी गुंडिचा के इस अलौकिक सम्मान का साक्षी बनते हैं।
