गणेशोत्सव 31 अगस्त से 09 सितंबर तक चलेगा जहां पर पहले दिन यानी भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर घर-घर भगवान गणपति विराजेंगे।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान गणेश का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी को मध्याह्र काल में स्वाति नक्षत्र और सिंह लग्न में हुआ था।भाद्रपद गणेश चतुर्थी को विनाय चतुर्थी, कलंक चतु्र्थी और डण्डा चौथ के नाम से भी जाना जाता है।महाराष्ट्र में गणेश उत्सव को बड़े ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। यहां पर बड़े-बड़े पंडालों में भगवान गणेश की प्रतिमा को स्थापित किया जाता है।
स्थापना के नियम : भगवान गणेश को विध्नहर्ता और समृद्धि दाता देव माना गया है। घर पर भगवान गणेश की एक या दो ही मूर्तियां रखनी चाहिए। भूलकर भी तीन की संख्या में गणेश की मूर्ति की स्थापना नहीं करनी चाहिए। कभी भी खंडित गणेश प्रतिमा की स्थापना नहीं करनी चाहिए।
भगवान गणेश जल तत्व के देवता माने गए हैं और यह उन चार देवी-देवताओं में हैं जो दक्षिणमुखी हो सकते हैं। भगवान गणेश के अलावा हनुमानजी, भैरवजी और देवी मां की मूर्तियों का मुख ही दक्षिण दिशा में हो सकती है। इन चार देवताओं के अलावा अन्य किसी देवी या देवता की मूर्ति का मुख दक्षिण में नहीं होना चाहिए।
घर पर भगवान गणेश की प्रतिमा को स्थापित करने से पहले इस बात का विशेष ध्यान देना चाहिए कि मूर्ति में उनकी सूंड की दिशा किस ओर है।वास्तु के अनुसार दाहिनी तरफ सूंड वाले भगवान को सिद्धिविनायक जबकि बाईं ओर की सूंड वाले गणेशजी को वक्रतुंड कहा जाता है।ऐसे में अगर आप गणेश चतुर्थी पर अपने घर में भगवान गणेश की मूर्ति की स्थापना करने जा रहे हैं तो वक्रतुंड गणेश प्रतिमा करना ज्यादा शुभ होता है।क्योंकि वक्रतुंड गणेशजी की पूजा के नियम आसान और कम होते हैं।
भगवान गणेश को दूर्वा अति प्रिय होती है ऐसे में गणेश चतुर्थी पर भगवान गणपति की पूजा में दूर्वा घास को जरूर रखें। गणेशजी को दूर्वा की 11 या 21 गांठ चढ़ाना चाहिए।ऐसी मान्यता है कि दूर्वा से गणेशजी के पेट की जलन शांत हुई थी। इसी कारण से भगवान गणेश की पूजा-उपासना में उनको दूर्वा अर्पित करते हैं।
गणेशजी की पूजा उपासना में ऊँ गं गणपतयै नम: या श्री गणेशाय नम: मंत्र का जाप करना चाहिए।

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