Pradosh Vrat in July 2024: प्रदोष का व्रत देवों के देव महादेव को समर्पित है। इस दिन व्रत रख कर शाम के समय शिव भगवान समेत उनके पूरे परिवार की पूजा-अर्चना की जाती है। हिन्दू धर्म में प्रदोष व्रत का काफी महत्व माना जाता है। मान्यता है की प्रदोष का व्रत रख कर भोलेनाथ की उपासना करने से जातकी के सभी कष्ट दूर हो सकते हैं। हर महीने में 2 बार प्रदोष व्रत की तिथि आती है। आइए जानते हैं जुलाई के महीने में कब-कब पड़ेगा प्रदोष व्रत, पूजा-विधि, मुहूर्त और शिव जी की आरती-
कब-कब है प्रदोष व्रत?
आषाढ़ महीने की कृष्ण त्रयोदशी तिथि 3 जुलाई को प्रारम्भ हो रही है, जो 4 जुलाई की सुबह तक रहेगी। ऐसे में जुलाई का पहला कृष्ण प्रदोष व्रत 3 जुलाई को रखा जाएगा। वहीं, आषाढ़ महीने की शुक्ल त्रयोदशी तिथि 18 जुलाई को प्रारम्भ हो रही है, जो 19 जुलाई की शाम तक रहेगी। ऐसे में जुलाई का दूसरा शुक्ल प्रदोष व्रत 18 जुलाई को रखा जाएगा।
जुलाई प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त
- त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ – जुलाई 03, 2024 को 07:10 ए एम बजे
- त्रयोदशी तिथि समाप्त – जुलाई 04, 2024 को 05:54 ए एम बजे
- दिन का प्रदोष समय – 07:23 पी एम से 09:24 पी एम
- प्रदोष पूजा मुहूर्त – 07:23 पी एम से 09:24 पी एम
- अवधि – 02 घण्टे 01 मिनट
- त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ – जुलाई 18, 2024 को 08:44 पी एम बजे
- त्रयोदशी तिथि समाप्त – जुलाई 19, 2024 को 07:41 पी एम बजे
- दिन का प्रदोष समय – 07:20 पी एम से 09:23 पी एम
- प्रदोष पूजा मुहूर्त – 08:44 पी एम से 09:23 पी एम
- अवधि – 00 घण्टे 39 मिनट्स
पूजा-विधि
स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण कर लें। शिव परिवार सहित सभी देवी-देवताओं की विधिवत पूजा करें। अगर व्रत रखना है तो हाथ में पवित्र जल, फूल और अक्षत लेकर व्रत रखने का संकल्प लें। फिर संध्या के समय घर के मंदिर में गोधूलि बेला में दीपक जलाएं। फिर शिव मंदिर या घर में भगवान शिव का अभिषेक करें और शिव परिवार की विधिवत पूजा-अर्चना करें। अब प्रदोष व्रत की कथा सुनें। फिर घी के दीपक से पूरी श्रद्धा के साथ भगवान शिव की आरती करें। अंत में ॐ नमः शिवाय का मंत्र-जाप करें। अंत में क्षमा प्रार्थना भी करें।
शिव जी की आरती
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव…॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे॥ ॐ जय शिव…॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखता त्रिभुवन जन मोहे॥ ॐ जय शिव…॥
अक्षमाला बनमाला मुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी॥ ॐ जय शिव…॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥ ॐ जय शिव…॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥ ॐ जय शिव…॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका॥ ॐ जय शिव…॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी॥ ॐ जय शिव…॥
त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय शिव…॥
जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा|
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव ओंकारा…॥

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