वाराणसी: BHU कोर्ट की इसी बैठक 1939 की है। इसमें डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने हिस्सा लिया था।आज भाजपा के मातृ संस्थान कहे जाने वाले जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 69वीं पुण्यतिथि है। उनकी एक कहानी काशी हिंदू विश्वविद्यालय से भी जुड़ी है। 1939 में BHU के तात्कालीन कुलपति डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन अगर ब्रिटेन पढ़ाने चले जाते तो डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति होते। 33 साल की उम्र में कलकत्ता विश्वविद्यालय के वीसी बने डॉ. मुखर्जी को कुलपति बनाने की मुहर BHU की कार्यपरिषद ने लगा दी थी। दरअसल, डॉ. राधाकृष्णन उस दौरान BHU के साथ ही ब्रिटेन में भी अपनी सेवा दे रहे थे।डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी।दूसरा विश्वयुद्ध तब तक शुरू हो गया था। इस कारण से डॉ. राधाकृष्णन विदेश नहीं जा सके। जिसके बाद उन्होंने BHU वीसी बने रहने का विचार कर लिया। डॉ. राधाकृष्णन को जब बंगाल में थे तो महामना पंडित मदन मोहन मालवीय उन्हें कुलपति बनाने का प्रस्ताव देने पहुंचे थे। डॉ. राधाकृष्णन ने बड़ी मिन्नतों के बाद महज 6 महीने का कुलपति बनने के बात कही थी। BHU में प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. विनोद जायसवाल ने ये जानकारियां दी।रजत जयंती पर दी गई “डॉक्टर ऑफ लॉज” की मानद उपाधिडॉ. विनोद जायसवाल ने कहा कि BHU के इतिहास पुस्तक के अनुसार दूसरा किस्सा है 21 जनवरी 1942 का, जब BHU अपना रजत जयंती मना रहा था। उस समय मालवीय जी ने महात्मा गांधी, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, पं जवाहरलाल नेहरू, पं गोविंदवल्लभ पंत, हृदयनाथ कुंजरू, डॉ सम्पूर्णानन्द, श्री विजयलक्ष्मी पंडित, डॉ सचिदानंद सिन्हा, सर सी. वी. रमन, डॉ बीरबल साहनी, सेठ जुगल किशोर बिड़ला सहित डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को आमंत्रित कर सबके साथ मंच पर बैठाया। उस मंच पर उन्हें “डॉक्टर ऑफ लॉज” की मानद उपाधि दी गई। उनके साथ ही यह उपाधि मैसूर के महाराज जयचामराज वाडियार, मोरवी के महाराज लुखधीराजी और सी. विजयराघव चेरियार को भी दी गई थी।BHU में EC के सदस्य भी बने मुखर्जीडॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को 26 नवंबर 1939 को 15 समिति सदस्यों के EC यानी कि एक्जिक्यूटिव काउंसिल का सदस्य बनाया गया। इसके अध्यक्ष स्वयं मालवीय जी, कुलपति राधाकृष्णन, घनश्याम दास बिड़ला, डॉ शांतिस्वरूप भटनागर सरीखे लोग थे। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जनसंघ के संस्थापक के साथ ही हिंदू महासभा के अध्यक्ष, सांसद, स्वतंत्र भारत के पहले उद्योग मंत्री भी थे। उन्होंने कश्मीर को भारत मे विलय के लिए अपनी जान भी दे दी। उनका जन्म 6 जुलाई, 1901 को कोलकाता में हुआ था। भारत की आजादी के बाद भी कश्मीर में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान योजना के विरोध में मंत्री का पद त्याग दिया। यहां पर वह 44 दिन तक कश्मीर के निशातबाग जेल में रहते हुए उनकी रहस्यमयी तरीके से मृत्यु हो गई।

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