मध्य प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था की एक चौंकाने वाली तस्वीर सामने आई है, नीमच जिले के एक सरकारी स्कूल में केवल एक छात्रा पढ़ रही है, लेकिन उसके संचालन पर सरकार सालाना लगभग 25 लाख रुपये खर्च कर रही है। यह मामला सरकारी धन के उपयोग और शिक्षा तंत्र की प्रभावशीलता पर गंभीर सवाल खड़े करता है। एक तरफ सरकार “सर्व शिक्षा अभियान” और “शिक्षा का अधिकार” जैसी योजनाओं पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, वहीं दूसरी ओर छात्रों की कमी से जूझ रहे ऐसे स्कूल “सफेद हाथी” साबित हो रहे हैं।
नीमच जिले के ग्राम गुलाबखेड़ी में स्थित शासकीय प्राथमिक विद्यालय आज अपनी बदहाली की कहानी खुद बयां कर रहा है। इस स्कूल में कक्षा एक से पाँचवीं तक केवल एक छात्रा, तेजस्विनी पिता मांगू सिंह, नामांकित है, जो तीसरी कक्षा में पढ़ती है। इस एक बच्ची को पढ़ाने के लिए विद्यालय में दो शिक्षक नियुक्त हैं।
स्कूल का हाल: एक छात्रा, दो शिक्षक
आश्चर्य की बात यह है कि इस अकेली छात्रा की पढ़ाई पर सरकार का अनुमानित वार्षिक खर्च 24 से 25 लाख रुपये है। इस खर्च का एक बड़ा हिस्सा शिक्षकों के वेतन पर जाता है। विद्यालय में नियुक्त दो शिक्षकों का मासिक वेतन ही करीब 2 लाख रुपये बैठता है। इसके अतिरिक्त, स्कूल का रखरखाव, स्टेशनरी, पोषण आहार, बिजली-पानी और अन्य खर्चे अलग हैं। पिछले शैक्षणिक सत्र में यहाँ तीन छात्र थे, जिन्हें पढ़ाने के लिए तीन शिक्षक थे।
जिले में कई स्कूल इसी स्थिति में
गुलाबखेड़ी का यह स्कूल अकेला नहीं है। जिले में लगभग 25 से 30 सरकारी विद्यालय ऐसे हैं, जहाँ छात्रों की संख्या 10 से भी कम है। पूरे नीमच जिले में 537 प्राथमिक विद्यालय हैं, जिनमें लगभग 48,757 छात्र-छात्राएं पढ़ रहे हैं और उन्हें 1029 शिक्षक पढ़ा रहे हैं।
ये है पूर्व सरपंच की राय
पूर्व सरपंच, भोन सिंह चौहान का कहना है कि प्रशासन को स्कूल में संसाधनों की कमी को पूरा करना चाहिए, बेहतर शिक्षा व्यवस्था उपलब्ध करानी चाहिए और ग्रामीणों को अपने बच्चों को यहाँ भर्ती करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। शिक्षा के स्तर में सुधार अत्यंत आवश्यक है।
शिक्षक का ये है तर्क
शिक्षक धर्मेंद्र सिंह का कहना है- ज़्यादातर अभिभावक अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों या पास के सीएम राइज़ (सांदीपनि) विद्यालय में भेज रहे हैं। हमने नामांकन बढ़ाने के प्रयास किए, लेकिन सफलता नहीं मिली। सरकार की नीति के अनुसार 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को प्रवेश नहीं दिया जा सकता, जबकि प्राइवेट स्कूल 3 साल की उम्र में ही बच्चे को ले लेते हैं। इस कारण बच्चे शुरू से ही निजी स्कूलों से जुड़ जाते हैं।
DEO बोले अभी एडमिशन प्रक्रिया जारी है
जिला शिक्षा अधिकारी, एस.एम. मांगरिया कहते हैं जिले में इस तरह के 3-4 दर्जन स्कूल हैं जहाँ छात्र संख्या बहुत कम है। फिलहाल एडमिशन प्रक्रिया जारी है। इन स्कूलों को बंद करने या दूसरे स्कूलों में मर्ज करने के कोई निर्देश नहीं मिले हैं। हमारा लक्ष्य अधिक से अधिक नामांकन करवाना है। उन्होंने यह भी बताया कि प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक संवर्ग के शिक्षक का वेतन 38-40 हजार से लेकर सहायक शिक्षक का वेतन एक लाख रुपये से भी अधिक हो सकता है।
विरोधाभास: एक किलोमीटर दूर सफल स्कूल
सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि गुलाबखेड़ी से मात्र एक किलोमीटर दूर मुंडला गाँव का सरकारी स्कूल सफलता की मिसाल है। मुंडला के स्कूल में कक्षा 1 से 8 तक लगभग 110 बच्चे पढ़ते हैं और इसे ब्लॉक के सर्वश्रेष्ठ स्कूलों में गिना जाता है। यहाँ के छात्र अंग्रेजी में किताबें पढ़ते हैं और शिक्षा की गुणवत्ता काफी बेहतर है। गुलाबखेड़ी गाँव के कई बच्चे भी इसी स्कूल में पढ़ने जाते हैं।
निष्कर्ष: जवाबदेही की कमी
एक ओर प्रदेश सरकार पर लाखों करोड़ का कर्ज है, वहीं दूसरी ओर इस तरह के स्कूल सरकारी खजाने पर भारी बोझ बन रहे हैं। यह मामला केवल एक स्कूल का नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम में कहीं न कहीं मौजूद जवाबदेही की कमी को उजागर करता है। जरूरत इस बात की है कि शिक्षा पर खर्च होने वाले हर रुपये का सही उपयोग हो और यह सुनिश्चित किया जाए कि अधिक से अधिक छात्र इससे लाभान्वित हों, न कि यह केवल कुछ कर्मचारियों के वेतन का जरिया बनकर रह जाए।
नीमच से कमलेश सारड़ा की रिपोर्ट
