जयपुर: जयपुर में नगर निगम बनने के 28 साल बाद भी शहर की 20 प्रतिशत भूमि सिवाय चक के है।जयपुर में नगर निगम बनने के 28 साल बाद भी शहर की 20 प्रतिशत भूमि सिवाय चक, गैर मुमकिन आबादी, तत्कालीन राजस्व ग्राम या फिर सरकार के एक नंबर खाते में दर्ज है। नगर निगम के क्षेत्राधिकार में स्थित हाेने के बावजूद परंपरागत, पुरानी आबादी, पुरानी बसावट के नामांतरण नगर निगम के नाम दर्ज नहीं है। दाेनाें निगम, जेडीए कई जमीनों के लिए यह भी तय नहीं कर पाए कि इनके पट्टे काैन देगा?इस कारण लाेगाें काे प्रशासन शहराें के संग अभियान में भी पट्टे मिलने में परेशानी हाे रही है। पट्टा अभियान काे 10 महीने पूरे हाेने के बावजूद 20 प्रतिशत लाेगाें काे भी पट्टा जारी नहीं कर पाए हैं। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि दाेनाें निगमों ने मामलों काे सुलझाने के बजाय जिला प्रशासन पर डाल दिया। अब कलेक्टर प्रकाश राजपुरोहित ने राजस्व शाखा निगम के क्षेत्राधिकार के अनुसार नामांतरण जारी करने काे कहा है।30 हजार परिवारों काे मिल सकेगा पट्टाइस प्रक्रिया के बाद शहर के लगभग 30 हजार से अधिक परिवारों काे पट्टे का लाभ मिलेगा। कई परिवार पट्टों के लिए 1960 से तत्कालीन नगर परिषद और नगर निगम गठन के बाद 1994 से निगम के चक्कर लगा रहे हैं। शहर के इन इलाकों में पूरी तरह से आबादी बस चुकी है, लेकिन लाेगाें काे भूखंडों के पट्टे नहीं दिए गए।ऐसे अटकते गए पट्टेसिवाय चक, गैर मुमकिन आबादी, तत्कालीन राजस्व ग्राम या फिर सरकार के एक नंबर खाते में दर्ज सैकड़ाें जमीनों पर पट्टा लेने के लिए लाेगाें ने निगम में फाइल लगाई है। पीटी सर्वे, पटवारी माैका रिपोर्ट जैसे सभी काम हाेने के बाद निगम काे पता लगा कि ये जेडीए का एरिया है। निगम अफसरों ने जेडीए काे पत्र लिखकर एनओसी मांगी कि ये जमीन आपके एरिया में आती है लेकिन हमने माैका मुआयना सहित अन्य प्रक्रिया पूरी कर ली है। इसके बाद दाेनाें निगम-जेडीए ने कलेक्टर काे पत्र लिखकर पट्टे अटकने का कारण बताया हैं।”शहर के दाेनाें निगम क्षेत्र में निगम के नाम दर्ज होने योग्य भूमियों की स्पष्ट पहचान कर नामातंरण खाेलने की प्रक्रिया जल्द शुरू की जाएगी।”

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