- आज के दौर में बड़ों से लेकर बच्चों तक का मानसिक रूप से स्ट्रेस में रहना बड़ी ही आम बात हो गई है। एक पेरेंट के तौर पर आप अपने बच्चे की मदद कर सकते हैं यहां उसी के कुछ तरीके बताए गए हैं।
बच्चों में मानसिक तनाव
आज के समय में माहौल काफी बदल गया है। जिंदगी में भागदौड़ बढ़ गई है। किसी के पास किसी के लिए वक्त नहीं हैं। अकेलापन बढ़ गया है। इसके साथ ही दुनिया में कॉम्पिटिशन भी काफी बढ़ा है। यही वजह है आज के इस बदले हुए दौर में बड़ों के साथ-साथ छोटे बच्चे भी एंजाइटी का शिकार हो रहे हैं। बच्चों के बीच भी मानसिक तनाव, स्ट्रेस और एंजाइटी जैसी चीजें आजकल आम हो गई हैं। पढ़ाई का दवाब, अपने साथियों से पीछे न छूट जाने की चिंता काफी कुछ है जो बच्चों को मानसिक स्तर पर परेशान कर सकता है। ऐसे में एक पेरेंट के तौर पर आपकी जिम्मेदारी बन जाती है कि अपने बच्चे को उस स्थिति से बाहर निकलने में मदद करें। यहां डाँटने और समझाने भर से काम नहीं चलेगा बल्कि इस पूरी स्थिति को गहराई से समझना होगा।
बच्चे के प्वाइंट ऑफ व्यू को समझने की कोशिश करें
बच्चों से बातचीत कर के उनके स्ट्रेस और एंजायटी की समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है। पेरेंट्स को चाहिए कि वो अपने बच्चे से बैठकर बात करें। उनकी समस्या को समझने का प्रयास करें। उन्हें समझाए कि सिचुएशन कैसी भी हो आप उनके साथ हैं। आपकी बातों से मिली ये तसल्ली आपके बच्चे को काफी हद तक हीलिंग देगी।
बच्चों की हरकतों पर दें ध्यान
बच्चों में स्ट्रेस या एंजायटी के लेवल का पता लगाने के लिए उनकी हरकतों पर नजर रखना बेहद जरूरी है। बच्चों में अगर लगातार चिड़चिड़ापन दिखाई दे, बच्चे जरूरत से ज्यादा शांत लगने लगे या अपनी मनपसंद चीजों से भी दूरी बनाने लगे तो पेरेंट्स को समझ जाना चाहिए कि बच्चा स्ट्रेस या एंजाइटी से गुजर रहा है। ऐसे में सतर्क हो जाए और बच्चों पर ध्यान देना शुरू कर दें।
ध्यान से सुनें बच्चे की बात
बच्चों में इनिशियल स्टेज पर स्ट्रेस या एंजायटी होने पर वो किसी न किसी से अपनी समस्या शेयर करने की कोशिश करते हैं। ऐसी कंडीशन में अपने बच्चे के लिए वो सदस्य आप बनें। आप बच्चों को वो माहौल दें कि वो खुलकर अपनी बातों को आपसे शेयर कर सकें। जब बच्चे आपके सामने कोई समस्या रखें तो ध्यान से उनकी बातें ध्यान से सुनें और उनकी समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करें।
मोटिवेशन से करें हील
बच्चे छोटी- छोटी बातों पर परेशान हो जाते हैं। छोटी सी समस्या उनके लिए एक बड़ी प्रॉब्लम होती है। कभी कभी छोटी सी गलती होने पर बच्चे डर-सहम जाते हैं। ऐसे में ये बेहद जरूरी हो जाता है कि बच्चों को छोटी गलतियों पर डांटने के बजाय उन्हें प्यार से समझाने का प्रयास करें। इसके अलावा बच्चों को एप्रिशिएट करना शुरू करें। अगर बच्चा आपके सामने अपनी गलतियों को स्वीकार करे तो भी उसे एप्रिशिएट करें। इससे आगे चलकर बच्चा अपनी छोटी-छोटी बातों को आपके सामने रखने में हिचकिचाएगा नहीं।

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