डिजिटल दुनिया के खतरे से बच्चों को बचाने के टिप्स
कुछ समय पहले एक मामला सामने आया था, जिसमें एक बच्चा ऑनलाइन गेम खेल रहा था। इस खेल में पैसों का लेनदेन शामिल था। दुर्भाग्यवश बच्चा खेल की शुरुआत में ही पैसे हार गया। पैसे के भुगतान के लिए बच्चे ने चोरी से अपने पिता का डेबिट कार्ड इस्तेमाल किया और फिर खेल को तब तक खेलता रहा, जब तक पिता के बैंक खाते के सारे पैसे नहीं खत्म हो गए। पिता को करीब तीन लाख रुपए का नुकसान हुआ।
केस-2
एक 13 साल के बच्चे ने इंस्टाग्राम अकाउंट बनाया और अपनी तसवीर पोस्ट की। तसवीर पर कम लाइक आने और नकारात्मक कमेंट के कारण वह बच्चा धीरे-धीरे अवसाद में जाने लगा। तीन महीने की काउंर्संलग के बाद उसे इस स्थिति से उबारा गया।
मामले कई हैं और खास बात यह है कि इस तरह की घटना का शिकार बच्चे हो रहे हैं या उन्हें बड़ी घटनाओं में मोहरे की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। साइबर ठगी या इंटरनेट से संबंधी किसी भी तरह का अपराध आज भौतिक अपराध से ज्यादा पैर पसार रहा है। और यहां भी महिलाओं और बच्चों को प्रमुख रूप से शिकार बनाया जा रहा है। महिला सुरक्षा अपने आप में एक बहुत बड़ा मुद्दा है, लेकिन फिलहाल हम बात कर रहे हैं 10 से 18 साल के बच्चों की। यह किशोरावस्था है, जिसमें जिज्ञासा, हठ, बगावत, प्रदर्शन, प्रतिस्पर्धा जैसे भाव चरम पर देखने के लिए मिलते हैं। ऐसे में बच्चों के हाथ में मोबाइल थमाना और उन्हें भौतिक जगत से डिजिटल जगत में प्रवेश कराना बंदर के हाथ में तलवार पकड़ाने जैसा हो सकता है।
किस तरह बच्चों को बनाते हैं निशाना?
बच्चे हमेशा से ही अपराधियों के आसान शिकार होते हैं। बच्चों से संबंधी मामलों में साइबर बुलीईंग, ऑनलाइन र्गेंमग के जरिए ठगी, पोर्नोग्राफी, र्डेंटग स्कैम खासतौर पर देखने को मिलते हैं। इससे बचने के लिए सबसे पहले तो खुद माता-पिता को इनके बारे में बेहतर तरीके से पता होना चाहिए। इसके बाद जरूरत है, बच्चों को सही और गलत का फर्क समझाने और उन पर नजर बनाए रखने की। साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट सचिन गुप्ता कहते हैं कि फोन और इंटरनेट आज बच्चों की जरूरत में शामिल हो चुका है। इस दुनिया में कदम रखने पर उन्हें इसके काले सच के बारे में भी पता होना चाहिए। आइए जानें कि किस तरह से बच्चों को निशाना बनाया जाता है:
• फेक सोशल मीडिया अकाउंट: बच्चे के परिवार के किसी भी सदस्य का फेक सोशल मीडिया अकाउंट बनाकर और बच्चे को उस अकाउंट से जोड़कर बच्चे से घर के भेद जाने जा सकते हैं।
• मॉर्फिंग : बच्चे की ऑनलाइन तसवीर से छेड़छाड़ करके उसे ऑनलाइन मैसेज भेजकर परेशान व ब्लैकमेल किया जा सकता है। यह काम र्डेंटग ऐप से भी किया जाता है।
• ऑनलाइन बुलीईंग: बच्चे के दोस्त अपनी निजी खुन्नस को ऑनलाइन माध्यम से निकाल सकते हैं। ऐसे में बच्चे की ऑनलाइन बुलीईंग की जा सकती है।
• ऑनलाइन र्गेंमग: बच्चों को साइबर क्राइम का निशाना बनाने का यह सबसे आसान तरीका है। इसमें उन्हें कुछ गेम खेलने की सुविधा देने के बाद गेम की लत लगाई जाती है और फिर हार जाने पर उन्हें पैसों का भुगतान करना होता है।
• लुभावने विज्ञापन: र्गेंमग ऐप या वीडियो ऐप में बच्चों को लुभावने विज्ञापन दिखाकर फंसाया जाता है और लिंक भेजकर उनसे पैसों की ठगी की जाती है। बच्चों को डिजिटल दुनिया के खतरे के बारे में बताना बेहद जरूरी है। साथ ही आपको इस बात की निगरानी भी बनाए रखनी है कि कहीं बच्चे छुप कर इंटरनेट का गलत इस्तेमाल न कर रहे हों। याद रखिए कि बच्चे ज्यादा होशियार होते हैं और टेक्नोलॉजी की जानकारी उन्हें पिछली पीढ़ी से ज्यादा ही होती है। बस बात है विवेकपूर्ण इस्तेमाल की। इसके लिए सचिन कुछ तरीके बताते हैं:
पेरेंटल कंट्रोल बनाए रखें
आपको बच्चे को तब ही फोन देना चाहिए, जब वाकई उन्हें इसकी जरूरत हो। इस बात का भी ख्याल रखना होगा कि वे केवल इसका जरूरत पर ही उपयोग करें। आप बच्चे के फोन को अपने गूगल अकाउंट से लिंक कर सकती हैं। इससे आपको पता चलता रहेगा कि बच्चा इंटरनेट पर क्या सर्च करता है और कितना समय बिताता है। साथ ही आप यूट्यूब किड्स जैसे ऐप इंस्टॉल करें, जिससे बच्चा अनचाहे वीडियो नहीं देख पाएगा। साथ ही गूगल लिंक के कारण आपको अपने फोन पर पता चलता रहेगा कि बच्चा किस तरह के वीडियो देख रहा है।
सोशल मीडिया पर रखें निगरानी
बच्चों को सोशल मीडिया से दूर रखना ही बेहतर होता है। कई बार सिर्फ चमक-दमक की दुनिया के कारण माता-पिता बच्चों को सोशल मीडिया पर ले आते हैं। ऐसे कुछ मामले दर्ज किए गए हैं जिसमें बच्चों को मॉडल बनाने के चक्कर में माता-पिता से लाखों की ठगी की गई है। अगर बच्चा सोशल मीडिया पर है, तो भी आपको उससे जुड़ना जरूरी है ताकि आपको पता रहे कि वह किस तरह के कमेंट करता है या कैसे पोस्ट शेयर करता है। साथ ही उसे सिर्फ परिवार वालों से ही जुड़े रहने को कहें। सप्ताह में एक बार बच्चे की चैट पढ़ें।
भौतिक जगत से जोड़ें
आज बच्चे वे सभी काम इंटरनेट पर करना पसंद करते हैं, जिन्हें आराम से भौतिक रूप में किया जा सकता है। इससे उन पर मानसिक और शारीरिक दोनों तरह का दुष्प्रभाव पड़ता है। कोशिश करें कि बच्चा ज्यादा से ज्यादा भौतिक जगत में अपना समय बिताए। इसके लिए आप उसकी दिनचर्या को व्यस्त कर सकती हैं। इसमें हॉबी क्लास आपके बेहद काम आ सकती हैं।
साइबर क्राइम के बारे में बात करें
बच्चे को साइबर क्राइम के बारे में बताना जरूरी है। उसे समझाएं कि घर के एक कमरे में बैठकर भी वह अपराध का शिकार बन सकता है। हालांकि इसमें आपको उसकी उम्र का ख्याल रखना होगा और उम्र आधारित बात ही करनी होगी। साथ ही आपको खुद भी टेक्नोलॉजी की जानकारी बनाए रखनी होगी।
डिजिटल बर्ताव सिखाएं
आपको बच्चे को यह बताना जरूरी है कि डिजिटल दुनिया कितनी सच और कितनी झूठ है। यहां हर चमकती चीज सोना नहीं होती है। और इस वजह से उसे भी अपने बर्ताव पर नियंत्रण रखना होगा। उसमें समझ विकसित करें कि उसे किस तरह के वीडियो देखने चाहिए और यह भी बताएं कि वह वीडियो पर कुछ भी कमेंट नहीं कर सकता। उन्हें डिजिटल दुनिया की ट्र्रोंलग से दूर रखें और यह भी समझाएं कि इस दुनिया में अपनी निजता को किस तरह से बनाए रखनी है। यानी हर बात लोगों को बताना या पोस्ट करना जरूरी नहीं है।
आंकड़ों की जुबानी
डिजिटल दुनिया कितनी खतरनाक है, इस बात को ये आंकड़े बंया करते हैं:
-अकेले केरल में दो महीनों के अंदर बच्चों से संबंधी साइबर क्राइम के 531 मामले दर्ज किए गए थे।
-एनसीआरबी के आकड़े बताते हैं कि बच्चों से संबंधी साइबर क्राइम के मामलों में 32% की बढ़त देखने को मिली।
-भारत में बीते चार महीनों में साइबर क्राइम के जरिए कुल 1750 करोड़ रुपए की ठगी की गई है।
-द इंडिया साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर के मुताबिक मई माह में हर रोज साइबर क्राइम से संबंधित करीब 7000 मामले दर्ज किए गए।

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