भारत कोई धर्मशाला नहीं…शरणार्थियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी, श्रीलंका के शख़्स की याचिका ख़ारिज
सुप्रीम कोर्ट ने एक श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसकी हिरासत को चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत कोई “धर्मशाला” नहीं है, जो दुनिया भर के शरणार्थियों को शरण दे सके। यह फैसला 19 मई 2025 को जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस के. विनोद चंद्रन के नेतृत्व में सुनवाई के दौरान आया।
कोर्ट ने कहा, “क्या भारत को दुनिया भर के शरणार्थियों को शरण देना चाहिए? हम 140 करोड़ की आबादी के साथ पहले ही जूझ रहे हैं। ये कोई धर्मशाला नहीं कि हम हर विदेशी नागरिक को शरण दें।” यह टिप्पणी जस्टिस दीपांकर दत्ता ने उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें एक श्रीलंकाई तमिल ने अपनी हिरासत और डिपोर्टेशन को चुनौती दी थी।
याचिका और कोर्ट का फैसला
याचिकाकर्ता एक श्रीलंकाई तमिल है, जो वीजा पर भारत आया था। उसने दावा किया कि वह 2009 में श्रीलंकाई युद्ध में LTTE का सदस्य था और अगर उसे वापस श्रीलंका भेजा गया, तो उसे गिरफ्तारी और यातना का सामना करना पड़ेगा। उसने यह भी बताया कि उसकी पत्नी कई बीमारियों से पीड़ित है और उसका बेटा जन्मजात हृदय रोग से ग्रस्त है। याचिकाकर्ता को UAPA के तहत 7 साल की सजा सुनाई गई थी, जिसे 2022 में मद्रास हाई कोर्ट ने बरकरार रखा और सजा पूरी होने के बाद उसे तुरंत भारत छोड़ने का आदेश दिया। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि उसे डिपोर्ट होने तक शरणार्थी कैंप में रहना होगा।
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता लगभग तीन साल से हिरासत में है और डिपोर्टेशन की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है। हालांकि, कोर्ट ने याचिकाकर्ता के परिवार की स्थिति पर सहानुभूति जताई, लेकिन कानूनी आधार पर हस्तक्षेप को उचित नहीं माना।
श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों का मुद्दा
श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों का मुद्दा भारत में लंबे समय से चर्चा में है। 1983 में श्रीलंका में तमिलों के खिलाफ जातीय हिंसा बढ़ने के बाद कई तमिल शरणार्थी भारत आए। मद्रास हाई कोर्ट ने 2019 में एक अहम फैसले में कहा था कि जो लोग अपने देश में उत्पीड़न के डर से भारत आए, उन्हें अवैध प्रवासी नहीं माना जा सकता और उनकी नागरिकता की अर्जी पर विचार किया जाना चाहिए।
हालांकि, केंद्र सरकार का रुख रहा है कि भारत ने शरणार्थी संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं और शरणार्थियों को कानूनी मान्यता नहीं दी जाती। सरकार के मुताबिक, केवल वैध और अवैध प्रवासी ही मान्य हैं। सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला भी इस रुख को मजबूत करता है, जिसमें भारत की जनसंख्या और संसाधनों की सीमाओं का जिक्र किया गया

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