युद्ध शुरू हो चुका है, वापस न आऊं तो गर्व करना, दुखी न होना…भाग्य वालों को मिलता है शहादत का मौका – Story Of Three Soldiers Of Sanauli Of Panipat Who Were Martyred In Kargil War

शहीद सुशील कुमार, शहीद ऋषिपाल त्यागी, शहीद रियासत अली।
– फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
विस्तार
कारगिल युद्ध में हरियाणा के पानीपत के सनौली क्षेत्र के तीन रणबांकुरों ऋषिपाल त्यागी, रियासत अली व सुशील कुमार ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। तीनों ने ही जंग से पहले परिवारों से बात करते हुए कहा था कि युद्ध शुरू हो चुका है, अगर वे न लौटें तो दुखी न होना। भाग्य वालों को शहादत का मौका मिलता है।
उनकी शहादत पर गर्व करना है। यह समय हिम्मत से काम लेने का है। तीनों रणबांकुरे पाकिस्तानी सेना से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे। इनकी बहादुरी की दास्तां पूरे क्षेत्र में सुनाई जाती है, लेकिन सरकार की अनदेखी से तीनों के ही परिवार दुखी है। देश के लिए सर्वाेच्च बलिदान देने के बाद भी इनकी उपेक्षा हुई है।
शहीद ऋषिपाल की पत्नी बोलीं- पति पर गर्व
सनौली खुर्द के ऋषिपाल त्यागी 28 मई 1999 को कारगिल जंग में शहीद हुए थे। उनकी पत्नी गीता बताती हैं कि उनकी पति से मई के पहले सप्ताह में ही बात हुई थी। उन्होंने कहा था कि एक सप्ताह बाद छुट्टी लेकर घर आएंगे, लेकिन इसी वक्त युद्ध शुरू हो गया। 28 मई को उन्हें गोली लगी और वह शहीद हो गए। उन्हें पति की शहादत पर गर्व तो है, लेकिन सरकार की ओर से शहादत की उपेक्षा हुई है। शहीदों के स्मारकों की देखभाल नहीं की गई। शहीद ऋषिपाल के नाम पर न तो किसी सड़क का निर्माण हुआ न ही किसी स्कूल का नाम रखा गया। उनके नाम पर जो पुस्तकालय खोला गया, आज तक उसमें किताबें नहीं आईं। उन्हें गुजर-बसर करने के लिए गैस एजेंसी या पेट्रोल पंप तक नहीं मिला। घोषणाएं सिर्फ घोषणा बनकर रह गईं।
सभी को नहीं मिलता शहादत का मौका : शकीला
अधमी गांव के शहीद रियासत अली की पत्नी शकीला बताती हैं कि जब उनके पति रियासत को युद्ध क्षेत्र में भेजा जा रहा था तो वह बहुत खुश थे। पहाड़ी पर जाने से पहले उनकी बात हुई थी। जब उन्होंने बताया कि वह लड़ाई में जा रहे हैं तो उनकी आंखों में आंसू आ गए। इस पर रियासत ने कहा था कि आज तो रो दी है, आगे कभी मत रोना। भाग्य वालों को ही शहादत का मौका मिलता है। उन्हें कई गोलियां लगीं और वह शहीद हो गए। उन्हें सरकार की ओर से पेट्रोल पंप तो मिला, लेकिन रियासत के नाम पर न तो सड़क का नाम रखा गया, न ही स्कूल का। अब वह अपने बेटे शाहरुख खान को फौज में भर्ती कराने की तैयारी कर रही हैं।
शासन-प्रशासन ने शहीद को भुला दिया
अतोलापुर गांव निवासी कारगिल शहीद सुशील कुमार के बड़े भाई जगदीश का कहना है कि सरकार ने शहीद होने पर अनेक घोषणाएं की थीं। सुशील की पत्नी ने सरकार से धनराशि व पेट्रोल पंप लेने के बाद दूसरी शादी कर ली। उनकी मां की बेटे सुशील के गम में मौत हो गई। ग्राम पंचायत ने सुशील की मूर्ति स्थापना के लिए थोड़ी सी जमीन दी थी। उस जमीन पर हमने अपने पैसों से शहीद सुशील कुमार की मूर्ति स्थापित की है। सरकार ने शहीद सुशील की उपेक्षा की है।

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