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राजनीतिक दलबदलुओं के बदलते रंग, इस वास्तविक गिरगिट द्वारा शानदार ढंग से चित्रित!

राजनीतिक दलबदलुओं के बदलते रंग, इस वास्तविक गिरगिट द्वारा शानदार ढंग से चित्रित! : दलबदल करने वाले विधायक और पार्टियां आज की राजनीति के प्रतीक हैं। वे सत्ता के लिए अपने संकीर्ण स्वार्थपूर्ण उद्देश्यों को पूरा करने हेतु अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता के खोखलेपन को उजागर करते हैं। वे वैचारिक और नैतिक मूल्य ध्यान में नहीं रखते। आने वाले दिनों में ऐसे अनेक राजनीतिक समीकरण देखने को मिलेंगे जिनमें षड्यंत्र, दोगलापन, पीठ पर छुरा घोंपने आदि के उदाहरण मिलेंगे। नि:संदेह आज दलबदल राजनीतिक नैतिकता का नया चलन बन गया है।प्रश्न उठता है कि क्या दलबदल एक संवैधानिक पाप है? बिल्कुल है। उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2017 में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत के मामले में ऐसा कहा था। आज राजनीतिक दलों की संख्या कुकुरमुत्तों की तरह बढ़ रही है। इसके चलते पार्टियों में विभाजन आम बात हो गई है और चुनाव लडऩे की बजाय विधायक खरीदना आसान हो गया है और ऐसे विधायक सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को अपनी राजनीतिक आत्मा बेच देते हैं और आज की राजनीतिक नौटंकी में किंगमेकर बन गए हैं। इन अल्पकालिक लाभों की दीर्घकालिक कीमत चुकानी पड़ती है।चुनावी मौसम में दलबदलू नेताओं पर बरसे थरूर के ‘गिरगिट’कांग्रेस नेता शशि थरूर ने शुक्रवार को रंग बदलने वाले गिरगिट का एक वीडियो साझा करके दलबदलू “स्नोलीगोस्टर” नेताओं पर कटाक्ष किया, क्योंकि यह एक बहुरंगी छड़ी पर चढ़ता है। “स्नॉलीगोस्टर” शब्द का शाब्दिक अर्थ है “एक चतुर, सिद्धांतहीन व्यक्ति, विशेष रूप से एक राजनीतिज्ञ” और यह कांग्रेस के दिग्गज द्वारा नवीनतम शब्द का हमला है, जिसने समय के साथ – एक शब्दकार के रूप में अपनी प्रतिष्ठा प्राप्त की है। “भारत में राजनीतिक दलबदलुओं के बदलते रंग, इस वास्तविक गिरगिट द्वारा शानदार ढंग से चित्रित किया गया!The changing colours of political defectors in India, brilliantly illustrated this actual chameleon! Snollygosters’ role model! pic.twitter.com/UiSL4DpGq4— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) November 18, 2022हैरान कर देगा दल-बदलू नेताओं का ये ऐतिहासिक रिकॉर्डदल-बदलुओं का इतिहास भारत ही नहीं पूरी दुनिया में बहुत पुराना है. अपने राजनीतिक और निजी हित के लिए नेताओं ने इस कदर राजनीतिक पार्टियां बदली हैं कि इसके अनूठे रिकॉर्ड बन गए हैं. दल-बदलुओं के इतिहास में साल 1967 कमाल का रहा. इस साल तो वर्ष में होने वाले 365 दिनों से ज्‍यादा मामले दल-बदल के आए. इस साल 430 बार सांसद/विधायक ने अपने दल बदले. इसमें हरियाणा के एक विधायक गयालाल के नाम भी एक रिकॉर्ड बना. उन्‍होंने 15 दिन में 3 बार पार्टी बदली और इतना ही नहीं एक दिन तो ऐसा रहा जिसमें उन्‍होंने 2 बार पार्टी बदल ली. वे पहले कांग्रेस से जनता पार्टी में गए. फिर वापस कांग्रेस में आए और 9 घंटे बाद फिर से जनता पार्टी में लौट गए. तभी से देश में ‘आया राम-गया राम’ का जुमला मशहूर हुआ. दल-बदल की ऐसी राजनीति के कारण 16 महीने में 16 राज्यों की सरकारें भी गिर गईं. जुलाई 1979 में तो ऐसी राजनीतिक घटना हुई जिसके कारण देश का प्रधानमंत्री ही बदल गया. जनता पार्टी में इतनी जबरदस्‍त दल-बदल हुई कि लोक दल पार्टी के चौधरी चरणसिंह प्रधानमंत्री की कुर्सी पर आसीन हो गए थे. वे पहले कांग्रेस में थे और बाद में उन्‍होंने अपनी पार्टी बनाई थी. दल-बदल के कारण कुर्सी मिलने की इस घटना की चलते उन्‍हें भारत का पहला ‘दल-बदलू प्रधानमंत्री’ कहा जाता है.बनाना पड़ा कानून दल-बदल की इन बढ़ती घटनाओं ने जब राजनीति में भारी उथल-पुथल मचा दी तो 1985 में 30 जनवरी को लोक सभा ने दल बदल विरोधी कानून पारित कर राजनीतिक दलबदलुओं के स्वत: अयोग्य होने का रास्ता साफ कर दिया. इस अधिनियम में कुछ ऐसे प्रावधान किए गए हैं, जिनके तहत दल-बदल करने वाले नेता की संसद/विधानसभा की सदस्यता समाप्त हो जाएगी. हालांकि इतने नियम-कानून बनाने के बाद भी दल-बदल की राजनीति कभी खत्‍म नहीं हो पाई. उल्‍टे चुनावों का समय आते ही इसमें भारी उछाल देखने को मिलता है.

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