विधवा मां की न्याय की गुहार, बेटे की मौत के लिए बताया प्रशासनिक प्रताड़ना को ज़िम्मेदार, वन विभाग का मामला
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव कर्मचारी हितैषी फैसले लेने के लिए जाने जाते हैं लेकिन उनके अधीनस्थ सरकारी मुलाजिम कैसे सरकार की साख पर बट्टा लगाते हैं, इसका उदाहरण वन विभाग नर्मदापुरम से सामने आया है, मामला गंभीर ही नहीं मार्मिक है, प्रताड़ना से जुड़ा है, खास बात ये है कि जिस कर्मचारी को अफसरों ने प्रताड़ित किया आखिरकार आज उसने दम तोड़ दिया, अब उसकी विधवा माँ न्याय की गुहार लगा रही है
क्या है पूरा मामला
मामला नर्मदापुरम में पदस्थ रहे वनरक्षक सौरभ मसीह से जुड़ा है, जिसके अनुसार 21 जुलाई 2019 को सौरभ मसीह के विरुद्ध वन अपराध दर्ज किया गया था, जिसकी जांच पूरी होने के बाद 13 दिसंबर 2019 को आरोप पत्र जारी हुआ। एक कर्मचारी को बिना किसी ठोस वजह के परेशान करने के बाद वरिष्ठ कर्मचारी नेता मधुकर चतुर्वेदी ने इसकी शिकायत की जिसपर जाँच समिति गठित की गई।
क्या कहा जांच समिति ने
2020 में वन विभाग की जांच समिति ने इस मामले में स्पष्ट निष्कर्ष दिया कि प्रकरण के संबंध में कोई पावती अभिलेख मौजूद नहीं है और न ही संबंधित क्षेत्र प्रभारी द्वारा सूचना पत्र प्रस्तुत करने से संबंधित कोई पंचनामा या अभिलेख उपलब्ध है। इसलिए जो अपराध सौरभ मसीह के विरुद्ध दर्ज किया गया वो उनपर बनता ही नहीं है, यह रिपोर्ट जुलाई 2020 में पेश की गई थी और जांच में सौरभ मसीह को क्लीन चिट दी गई और प्रकरण विधिवत रूप से समाप्त मान लिया गया था।
बड़ा सवाल : दोबारा जांच क्यों?
जिस मामले को वन विभाग के वरिष्ठ कर्मचारियों की चार सदस्यीय समिति ने जाँच के बाद समाप्त घोषित कर दिया था उस मामले को एक बार फिर 30 जून 2025 को डीएफओ नर्मदापुरम मयंक सिंह गुर्जर द्वारा ओपन किया गया जिसके अनुसार उसी पुराने प्रकरण की दोबारा जांच शुरू करने के निर्देश दिए गए। इस प्रकार सौरभ मसीह को एक बार फिर जाँच के दायरे में लाया गया।
हृदय रोगी का ट्रांसफर और मानसिक दबाव
सौरभ मसीह की प्रताड़ना का अंत यहीं नहीं थमा, वे हृदय रोगी थे जानकारी और गुहार के बावजूद उन्हें ऐसे स्थान पर ट्रांसफर कर दिया गया, जहाँ उन्हें अच्छा इलाज मिलना संभव नहीं था। कर्मचारी नेताओं का कहना है कि पुराने आरोपों को फिर से आधार बनाकर पुनः विभागीय कार्यवाही शुरू करना एक कर्मचारी के मानसिक उत्पीडन की श्रेणी में आता है और इसलिए यह अन्याय और प्रताड़ना है।
जांच रिपोर्टों में उजागर हुआ उत्पीड़न का प्रारंभिक चेहरा
27 जुलाई 2020 की रिपोर्ट में जांच समिति ने यह पाया कि अजय कुमार पांडे, तत्कालीन वनमंडल अधिकारी, द्वारा बिना किसी विवेचना या सक्षम जांच के आधार पर कार्यवाही की गई। इस जाँच में मधुकर चतुर्वेदी द्वारा की गई शिकायतें प्रमाणित पाई गईं। इससे यह स्पष्ट हुआ कि उत्पीड़न की नींव तत्कालीन वनमंडल अधिकारी अजय पांडे ने डाली थी, जिसे बाद में डीएफओ मयंक सिंह गुर्जर ने आगे बढ़ाया और कार्यवाही को पुनर्जीवित किया।
पूरे मामले को देखें तो सौरभ मसीह के विरुद्ध दर्ज प्रकरण वर्ष 2020 में ही समाप्त हो चुका था बावजूद इसके बिना किसी नए सबूत या कानूनी आधार के 2025 में उसी मामले में दोबारा जांच शुरू करना निश्चित तौर पर मानसिक उत्पीड़न की श्रेणी में आता है और इसलिए कहा जा सकता है कि ट्रांसफर, जांच का दबाव और स्वास्थ्य की अनदेखी मिलकर उनकी मृत्यु का अप्रत्यक्ष कारण बनीं।
मानवाधिकार आयोग में शिकायत
परजिनों के मुताबिक 25 जुलाई को हुई सौरभ मसीह की मौत एक सामान्य हृदय गति रुकने की घटना नहीं बल्कि प्रताड़ना का परिणाम है। परिजनों ने मांग करते हुए कहा कि इस प्रकरण में तत्कालीन तथा वर्तमान जिम्मेदार अधिकारियों पर निष्पक्ष और उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए और यदि यह प्रताड़ना साबित होती है, तो इसे प्रशासनिक हत्या के दायरे में लाया जाए और पीड़ित परिवार को न्याय और सम्मानजनक मुआवजा दिया जाए। सौरभ की माँ कृपा मसीह ने मानव अधिकार आयोग को पत्र लिखकर अजय पांडे और मयंक गुर्जर पर कठोर कार्रवाई करने की मांग की है।
