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शहर में न सड़कें बनी, न स्ट्रीट लाइटें जलीं; सीवरेज सिस्टम पूरी तरह से फेल

जालंधर: नगर निगम जालंधरजालंधर शहर कागजों में स्मार्ट हो रहा है। अन्यथा जमीनी स्तर पर यदि हकीकत देखें को शहर में अव्यवस्था का आलम है। गलियों में सीवरेज का पानी है, लोगों के घरों में बैक्टीरिया युक्त पानी आ रह है। जो सड़कें विभिन्न प्रोजेक्टों के लिए खोदी गई थीं वह अभी तक नहीं बनी है। स्ट्रीट लाइटों को लगाते-लगाते साढ़े चार साल गुजर गए, लेकिन शहर में अब भी अंधेरा कायम है।गली मे सीवकरेज का पानी होने के कारण लोग ईंटें रखकर घरों तक जाते हैंशहर के सीवरेज सिस्टम को दुरुस्त रखने के लिए लाखों रूपए की सुपर सक्शन मशीनें भी लाई गईं, लेकिन फिर भी लोगों को सीवरेज की समस्या से निजात नहीं मिली है। शहर में कई मोहल्ले तो ऐसे हैं, जहां पर पिछले करीब छह-सात महीने से गलियों में सीवरेज सफाई न होने के कारण ओवरफ्लो चल रहे हैं।इस का एक साइड इफेक्ट यह भी है कि सीवरेज के साथ ही नीचे पीने वाले पानी की पाइपें भी बिछाई गई हैं जिससे सीवरेज का बैक्टीरिया लोगों के घरों में पीने वाले पानी में भी आ रहा है। कई जगहों पर तो नगर निगम ने अपनी नाकामी को छिपाने के लिए वाटर सप्लाई पर ही कट लगा दिया है। न अब घरों में पानी आएगा और न ही सीवरेज की समस्या उत्पन्न होगी।शहर के गांधी कैंप वाले क्षेत्र से तो लोगों ने अब शिकायतें करने भी बंद कर दी हैं। लोगों का कहना है कि जब शिकायत पर कोई कार्रवाई ही नहीं होती तो फिर फिर शिकायत दर्ज करवाने का भी कोई फायदा नहीं है। पूर्व नगर निगम कमिश्नर के दफ्तर में पार्षद के साथ लोग गंदे पानी की बोतलें लेकर भी पहुंचे थे। लेकिन फिर भी सीवरेज की समस्या का हल नहीं निकला।सफेद हाथी साबित हो रहा 58 करोड़ का स्ट्रीट लाइट प्रोजेक्टशहर का अंधेरा दूर करने के लिए स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत 58 करोड़ से एलईडी लाइटें लगनी थीं, लेकिन पार्षदों से लेकर मेयर तक की लाख कोशिशों के बावजूद शहर के डार्क जोन अभी तक रोशन नहीं हो पाए हैं। साढ़े चार से ज्यादा का वक्त गुजर गया लेकिन प्रोजेक्ट के तहत जो लाइटें लगनी थी उसका काम पूरा नहीं हो पाया है। जो लाइटें लगाई भी थीं वह भी बहुत सारे स्थानों पर जवाब दे चुकी हैं, लेकिन उनकी रिपेयर तक नहीं हो पाई है।लाइटें लगाने वाली कंपनी ने दावा किया था कि एक ऐसा साफ्टवेयर तैयार करवाया जाएगा जो शहर में खराब होने वाली लाइटों की मॉनिटरिंग करेगा। लेकिन उस सॉफ्टवेयर और कहां से वह ऑपरेट होना था, कहां पर उसका कंट्रोल रूम बनना उसका भी अभी तक कोई अता-पता नहीं है। स्ट्रीट लाइट घोटाले को लेकर नगर निगम के पार्षद अपने स्तर पर प्रस्ताव पारित करके कमेटी बनाने के बाद जांच रिपोर्ट कमिश्नर को सौंप चुके हैं, यहां तक कि विजिलेंस भी इस घोटाले की जांच कर रही है लेकिन अभी तक किसी का भी कोई नतीजा सामने नहीं आया है।शहर की टूटी सड़केंटूटी सड़कों पर हिचकोलों के साथ धूल फांक रहे लोगशहर में विभिन्न प्रोजेक्टों के लिए तोड़ी गई सड़कों का निर्माण अभी तक नहीं हो पाया है। जबकि अब 15 नवंबर के बाद तापमान में गिरावट को देखते हुए नियमानुसार सड़कों के निर्माण पर पाबंदी लग जाएगी। अब यह पाबंदी फरवरी महीने के बाद ही खुलेगी। शहर में जो सड़कें टूटी हैं वहां पर लोगों को अभी और सब्र करना पड़ेगा।एक आंकड़े के अनुसार शहर में करीब 150 से ज्यादा सड़कों गलियों की हालत बद से बदतर है, लेकिन इनकी मरम्मत के लिए शिकायतों के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई। इनके निर्माण के लिए नगर निगम को 35 से 40 करोड़ रुपए के बजट की आवश्यकता लेकिन नगर निगम इसका अभी तक इंतजाम नहीं कर पाया है।

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