इस लेख में हम आपको शिवसेना का पूरा इतिहास (hory of shivsena in hindi) बताने वाले है।महराष्ट्र की सियासत में शिवसेना की एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है। क्षेत्रवाद और हिन्दुत्व को का अपना राजनैतिक हथियार बनाने वाली शिवसेना महाराष्ट्र की एक क्षेत्रिय पार्टी है। आज शिवसेना भले एक बड़े राजनैतिक सकंट से घिरी हुई नजर आती है। लेकिन एक जमाना ऐसा भी था जब शिवसेना की पूरी महाराष्ट्र की राजनीति पर मजबूत पकड़ हुआ करती है। महाराष्ट्र की सत्ता चाहे किसी भी पार्टी के पास हो लेकिन उस सत्ता का रिमोट शिवसेना प्रमुख बालासाहब ठाकरे के पास रहता है।वैसे तो बालासाहब ठाकरे एक कॉटुनिस्ट थे लेकिन महाराष्ट्र की पूरी सियासत उनकी हाथो की उगलियो पर नाचा करती थी। वो जितने ज्यादा विवादित नेता थे उतने ज्यादा ही लोग उनको पसन्द किया करते थे। बालासाहब ठाकरे ने शिवसेना कब और कैसे बनाई और शिवसेना का सियासी सफर कैसा रहा है। आज इस लेख में हम आपको शिवसेना के इतिहास के बारे में विस्तार से बताने वाले है।Hindutva kya hai | हिन्दू और हिन्दुत्व में क्या फर्क है hory of shivsena in hindihory of shivsena in hindi | मराठी मानुष के नाम पर खड़ी हुई शिवसेना बात 1960 के दशक की है। हिन्दुस्तान आजाद हो चुका था और राज्यो को भाषा के आधार पर बाटा जा रहा था। भाषा के आघार पर राज्यो के बटवारे का असर महाराष्ट्र में भी हुआ। तब महाराष्ट्र में गुजराती और तमिल भाषी लोगो का वर्चस्व था। गुजराती महाराष्ट्र के बड़े होटलो और कारोबारो के मालिक हुआ करते थे। तमिल भाषी महाराष्ट्र का महाराष्ट्र की सरकारी नौकरियो में वर्चस्व हुआ करता था। ऐसे में स्थानिय मराठियों के लिए नौकरी हासिल करना काफी मुश्किल था क्योकि प्राइवेट नौकरियो में गुजराती कारोबारी गुजरातियों को वरियता दिया करते थे।सरकारी नौकरियों में बड़े बड़े पदो पर तमिल थे तो वहा भी मराठियों को नौकरी हासिल करने के लिए जद्दोजहत करती पड़ती थी। इसी सिस्टम की वजह से मराठियों के अंदर एक असंतोष की भावना पैदा होनी लगी। शिवसेना की बुनियाद भी मराठियों के इसी असंतोष की वजह से पड़ी। एक काटुनिस्ट के तौर पर अपने कैरियर की शुरूआत करने वाले बालासाहब ठाकरे उर्फ बाल ठाकरे ने मराठियो के इस असंतोष को महसूस किया। उन्होने अपने कार्टूनो में मराठियो के इसी असंतोष को जगह दी। उन्होने कार्टून महाराष्ट्र क सिस्टम को लेकर कटाक्ष किया करते थे। धीरे धीरे उनके कार्टून मराठी लोगो के बीच फेमस होने लगे। Mithali raj ki kahani | Mithali raj biography in hindibal thackerayमराठियो को बालासाहब ठाकरे के रूप में एक ऐसा नेता मिल गया जो उनके मुद्दो पर ना केवल बात कर रहा था बल्कि सत्ता के कानो तक उनकी बात पहुचा रहा था। बालासाहब ठाकरे को मालुम चल गया था कि मराठियो को इकट्ठा करके एक बड़े आंदोलन की शुरूआत हो सकती है। यही सोचकर उन्होने 31 अक्टूबर 1963 को एक मराठी मैग्जीन मार्मिक की शुरूआत की। इस मैग्जीन में काम करने से पहले वो फ्री प्रेस जनरल में काम किया करते थे जहा उन्होने अपने हिसाब से काम करने की आजादी नही थ। मार्मिक में उन्होन मुखर तरीके से महाराष्ट्र के राजनैतिक सिस्टम को लेकर सवाल उठाने शुरू कर दिये जिसे उन्हे मराठियो को भारी सपोर्ट मिला। इस दौरान उन्होने मराठी मानुष और मराठी अस्मिता का मुद्दा उठाया जिसकी वजह से लाखो मराठियो ने उन्हे सपोर्ट करना शुरू कर दिया। इस तरह से एक आंदोलन की शुरूआत हुई जो बाद में एक राजनीति पार्टी के रूप में विकसित हो गया।शिवसेना की स्थापना कब हुई महाराष्ट्र में मराठो के साथ होने वाले भेदभाव को आधार बनाकर 19 जून 1966 को विजयदशमी के दिन बाला साहब ठाकरे ने शिवसेना की नींव रखी। शिवसेना का गठन करते हुए बालासाहब ठाकरे ने ये नारा दिया।अंशी टके समाजवाद, वीस टके राजकरण इस नारे का मतलब था कि 80 फीसदी समाज के लिए काम करना है और 20 फीसदी राजनीति करनी है। इस पार्टी का चुनाव चिन्ह धनुष बाण रखा गया। शिवसेना ने प्रतीक के आधार पर एक दहाड़ते शेर के चित्र को भी अपना सिम्बल बनाया। इस तरह से एक आदोलन के बाद महाराष्ट्र में एक ऐसी पार्टी का उदय हुआ जो अपनी क्षेत्रीयता को लेकर काफी मुखर थी। समय के साथ शिवसेना महाराष्ट्र में फेमस होती चली गई। इस पार्टी ने महाराष्ट्र में रहने वाले गरीब मराठियो को बहुत तेजी से अपनी तरफ आर्कषित किया। मराठी बोलने वाले बड़ी तादात में इस पार्टी को ज्वाइन करने लगे।अब उन मराठियो बालासाहब ठाकरे के रूप में एक ऐसा नेता और शिवसेना के रूप में एक ऐसी पार्टी मिल गई थी। जिसके बैनर तले एकजुठ होकर वो अपना विरोध दर्ज करा सकते थे। हुआ भी कुछ ऐसा ही। शिवसेना के गठन के कुछ दिनो बाद ही इस पार्टी के कार्यकर्ता महाराष्ट्र में काम करने वाले तमिलो और गुजरातियो के ऊपर हमले करने लगे। इस सबके बाद भी बाल ठाकरे मराठी मानुष की राजनीति को लेकर काफी ज्यादा मुखर रहे और मराठियो को लगातार अपनी पार्टी से जोड़ते रहे।Draupadi Murmu kaun hai | राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू कौन हैhory of shivsena in hindi : जब शिवसेना ने पहली बार चुनाव लड़ाबहुत कम समय में ही महाराष्ट्र में शिवसेना का अच्छा खासा जनाधार हो गया था। बालासाहेब ठाकरे की इस पार्टी ने अपने गठन के 5 साल बाद यानि कि 1971 में पहली बार चुनाव लडा। ये बीएमसी के चुनाव थे जिसमे शिवसेना को कोई सफलता नही मिली।लेकिन बालासाहेब ठाकरे और शिवसेना के मनोबल के ऊपर इस हार का कोई खास असर नही पड़ा। शिवसेना ने मराठियों के निजि स्थानिये मुद्दो का उठाना शुरू कर दिया। 1974 में इस पार्टी ने दोबारा बीएमसी का चुनाव लड़ा। इस चुनाव में शिवसेना को पहली बार राजनैतिक जीत मिली। पार्टी ने मुंबई की बीएमसी को अपने कब्जे में कर लिया। तब से ही शिवसेना का बीएमसी पर एकछत्र राज होना शुरू हो गया। 1985 के बाद ये पार्अी लगातार बीएमसी पर काबिज है। hory of shivsena in hindiशिवसेना ने अपनी पहली बड़ी राजैतिक सफलता तब मिली जब 1989 में इस पार्टी को लोकसभा चुनावो में जीत मिली। 1989 के लोकसभा चुनावो में शिवसेना का एक सांसद पद का उम्मीदवार चुनाव जीतने में कामयाब हो गया। शिवसेना की तरफ से बॉम्बे सेन्ट्रल सीट से द्याधर संभाजी गोखले को ये जीत नसीब हुई।शिवसेना ने महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव सबसे पहले 1990 में लड़ा। इन चुनावो में उन्हे इस पार्टी के 52 विधायक चुनकर महाराष्ट्र की विधानसभा पंहुचे।इसके बाद शिवसेना ने कभी पीछे मुड़कर नही देखा और ये पार्टी लगातार सत्ता की सीढिया चढ़ती गई। शिवसेना के दो नेता मनोहर जोशी और नारायण राणे महाराष्ट्र के मुख्यमंंत्री भी बने।मराठी मानुष के साथ हिन्दुत्व को लेकर भी मुखर रही है शिवसेना अपनी सियासत को महाराष्ट्र से निकालकर देश भर में ले जाने की लिए शिवसेना ने बाद में हिन्दुत्व को भी अपना लिया। धीरे-धीरे पार्टी मराठी मानुष के मुद्दे से हटकर हिन्दुत्व की राजनीति करने लगी। बाल ठाकरे ने यू तो कभी खुद चुनाव नही लड़ा लेकिन हिदुत्व के मुद्दे पर वो हमेशा ही मुखर रहे। बाद में इसी हिदुत्व की विचारधारा के चलते शिवसेना ने भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबन्धन कर लिया। शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी महाराष्ट्र में कई बार गठबन्धन की सरकार बना चुके है। बाल ठाकरे भले ही हमेशा किंगमेकर कीह भूमिका मे रहे हो लेकिन 2019 में उनका परिवार ही किंग बनने की भूमिका में आ गया। 2019 में बाल ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने और उनके पोते आदित्य ठाकरे चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंच गये। 2012 में बाल ठाकरे का निधन हो गया।इशात जैदी एक लेखक है। इन्होने पत्रकारिता की पढाई की है। इशात जैदी पिछले कई सालों से पत्रकारिता कर रहे है। पत्रकारिता के अलावा इनकी साहित्य में भी गहरी रूचि है।Related

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