हल षष्ठी का व्रत संतान की दीर्घायु की कामना लिए किया जाता है। जन्माष्टमी से पहले रखा जाने वाला यह व्रत खास है, क्योंकि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के भाई बलराम जी का जन्म हुआ था। बलरामजी का प्रमुख शस्त्र हल और मूसल है। इसलिए उन्हें हलधर कहते हैं। उन्हीं के नाम पर इस पर्व का नाम हलषष्ठी पड़ा। क्योंकि इस दिन हल के पूजन का विशेष महत्व है। इस बार शनिवार 24 अगस्त को हलषष्ठी है।
हलछठ पर क्या ना खाएं
स दिन माताएं व्रत रखती हैं और इस दिन हल से जुड़ी हुई चीजों का सेवन नहीं करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन भैंस के दूध और बिना हल से जुती हुई चीजें नहीं खा सकते हैं। ऐसा करने से व्रत पूर्णनहीं माना जाता है। इस बार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि सुबह 7.51 बजे से शुरू होकर अगले दिन 25 अगस्त को सुबह 5.31 बजे पर समाप्त होगी। षष्ठी तिथि पर वृद्धि योग, रवि योग और शिववास योग का संयोग बन रहा है।
हल षष्ठी की पूजा कैसे होती है
सके अलावा इस दिन माताएं संतान सुख प्राप्ति के लिए भी इस व्रत को करती हैं। मान्यता है कि इस व्रत करने से मनचाही संतान मिलती है। व्रत के दौरान आंगन में गोबर से छठी माता की पूजा की जाती है। दीवार पर पारंपरिक रूप से छठ माता का चित्र बनाती हैं। उसे रूई, सिंदूर आदि से सजाती हैं। उसके बाद श्री गणेश जी और माता गौरा की पूजा करती हैं। छठी माता की पूजा से पहले इन चीजों का भोग लगाया जाता है। इसके अलावा इस दिन माता का चना, जौ, गेहूं, धान, अरहर, मूंग, मक्का, महुआ से पूजन किया जाता है। परम्पराओं के अनुसार महिलाएं घर में ही एक छोटा सा तालाब बनाकर, उसमें झरबेरी, पलाश और कांसी के पेड़ लगाती हैं। हलषष्ठी की कथा सुनती हैं। मान्यता है कि व्रत और पूजा करने से भगवान हलधर उनकी संतानों को लंबी आयु प्रदान करते हैं।

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