खंडवा: खंडवा महापौर के चुनाव में कांग्रेस-बीजेपी ने उन महिला प्रत्याशियों को खड़ा किया, जिनके ससुर कभी विधानसभा का चुनाव आमने-सामने लड़े थे। बात 1998 के विधानसभा चुनाव की है, कांग्रेस प्रत्याशी आशा मिश्रा के ससुर बल्ली मिश्रा को टिकट न मिला तो वह बागी होकर निर्दलीय लड़े। नतीजा यह रहा कि, कांग्रेस प्रत्याशी अवधेश सिसौदिया को 71 वोट से हार मिली और चुनाव भाजपा की महापौर प्रत्याशी अमृता यादव के ससुर हुकुमचंद यादव के पक्ष में रहा। तबसे इस सीट पर कांग्रेस लगातार हारती आ रही है।अपनो से हाकर जीते सिसौदिया… सर्टिफिकेट यादव को मिला1998 का विधानसभा चुनाव प्रत्याशियों से लेकर वोटर्स के लिए बड़ा ही रोमांचक माना जाता है। इस चुनाव में कांग्रेस की हार कारण गुटबाजी थी। तब तनवंतसिंह कीर और शिवकुमारसिंह को बोलबाला हुआ करता था। कांग्रेस ने अवधेशसिंह सिसौदिया को टिकट दिया तो भाजपा ने 1997 का उपचुनाव जीते हुकुमचंद यादव को मैदान में उतारा। लेकिन इस बीच कांग्रेस के एक गुट ने बल्ली मिश्रा से निर्दलीय नामांकन भरवा दिया।हालांकि, नतीजे चौंकाने वाले थे, तब बैलेट पेपर से गिनती होती थी। अवधेश सिसौदिया 17 वोट से जीत गए लेकिन तत्कालीन कलेक्टर आरपी मंडल ने सिसौदिया को जीत का सर्टिफिकेट नहीं दिया। इस बीच सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों के वोट गिने गए, जिसके नतीजे आए तो हुकुमचंद यादव 71 वोट से चुनाव जीत गए। इधर, बताया जाता है कि कांग्रेस का एक धड़ा नहीं चाहता था कि सिसौदिया यह चुनाव जीते, इसीलिए बल्ली मिश्रा को निर्दलीय लड़ाया था। लेकिन मिश्रा ब्राह्मणवाद, मुस्लिमवाद और ग्रामीण क्षेत्र में पकड़ के बाद भी सिर्फ 6700 वोट ही ला पाएं।1993 में पाटू का टिकट काटकर मिश्रा को मिला1993 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने परमजीतसिंह नारंग का टिकट काटकर बल्ली मिश्रा को दिया था। लेकिन भाजपा के पूरणमल शर्मा के सामने वह चुनाव हार गए। पूरणमल शर्मा अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और उनका निधन हो गया। इस बीच 1997 में उपचुनाव हुए तो कांग्रेस ने बल्ली मिश्रा को टिकट न देते हुए मुनिश मिश्रा को टिकट दिया। यहां भाजपा ने हुकुमचंद यादव को उतारा था। यह उपचुनाव भी हुकुमचंद यादव ही जीते, तभी भाजपा ने उन पर भरोसा जताया और 1998 में फिर से टिकट दिया। यादव की एंट्री के बाद से कांग्रेस कभी भी चुनाव जीत न सकीं।

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