Mp High Court:राइट टू स्पीडी जस्टिस भी है पक्षकारों का मौलिक अधिकार, 25 मामले के निराकरण संबंधित याचिका खारिज – Mp High Court Right To Speedy Justice Is Also A Fundamental Right Of Parties Redressal Petition Rejected

जबलपुर हाईकोर्ट
– फोटो : सोशल मीडिया
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प्रशासनिक व्यवस्था के तहत जिला न्यायालय को निर्धारित समय अवधि में 25 प्रकरणों का निराकरण किए जाने के संबंध में हाईकोर्ट द्वारा जारी आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर की गई थी। हाईकोर्ट जस्टिस विवेक अग्रवाल तथा जस्टिस एके सिंह की युगलपीठ ने याचिकाओं को खारिज कर दिया। युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि प्रशासनिक तौर पर न्यायालयों को प्रकरणों के निराकरण संबंधित आदेश पारित किये जा सकते हैं।
ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन तथा अन्य की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि हाईकोर्ट के रजिस्टार जनरल ने समस्त जिला न्यायालय को तीन परिपत्र जारी किये थे। इसमें निर्धारित समय सीमा में 25 प्रकरणों का निराकरण करने के निर्देश जारी किये थे। याचिकाकर्ताओं की तरफ से तर्क दिया गया कि अपराधिक प्रकरणों को भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता 1973 में विहित नहीं किया गया है।
सर्वोच्च न्यायालय तथा हाईकोर्ट प्रशासनिक तौर पर इस तरफ के आदेश जारी नहीं कर सकते हैं। उक्त आदेश के कारण पक्षकारों को बचाव का मौका नहीं मिल रहा है। अधिवक्ता भी अपने पक्षकार का समुचित बचाव नहीं कर पा रहे हैं। जो संविधान में अनुच्छेद-21 के तहत प्राप्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। प्रकरणों के निराकरण के लिए समय सीमा निर्धारित करने का अधिकार सिर्फ संसद को है।
युगलपीठ ने याचिका को खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा है कि प्रशासनिक तौर पर प्रकरणों के निराकरण के संबंध में आदेश पारित किये जा सकते हैं। पक्षकारों के मौलिक अधिकार के संरक्षण के लिए अधिवक्ताओं की भूमिका होती है। पक्षकारों का राइट टू स्पीडी जस्टिस भी मौलिक अधिकार है।

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