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Post-riots :सांप्रदायिक दंगे छोड़ जाते हैं गम, दर्द और तकलीफ… दिल्ली के पीड़ित आज भी हैं परेशान – Communal Riots Leave Sorrow, Pain And Suffering


Communal riots leave sorrow, pain and suffering

delhi riots file pic
– फोटो : अमर उजाला

विस्तार

मेवात में सांप्रदायिक हिंसा ने दिल्ली दंगों की बुरी यादें ताजा कर दी हैं। पीड़ितों का कहना है कि दंगों से आज तक किसी को कुछ हासिल नहीं हुआ। थोड़ी सी देर के गुस्से और उकसावे का दंश लोगों को जिंदगीभर पछतावे का दर्द दे जाता है। 

फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली के कई इलाकों में हिंसा हुई थी। इसमें 53 लोगों की मौत और 581 लोग जख्मी हुए थे। सरकारी आंकड़े के मुताबिक, 900 से अधिक मकानों-दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया था। 400 से अधिक मामलों में 755 एफआईआर दर्ज कर 1850 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया था। आज भी पीड़ित दंगों को याद कर सिहर उठते हैं। पीड़ितों का कहना है कि दर्द, तकलीफ और गम के देने अलावा दंगों ने किसी को कुछ नहीं दिया। मेवात के लोगों से दिल्ली दंगों के पीड़ितों सौहार्द और शांति बनाए रखने की अपील की है।

24 फरवरी-20 को पति मुदस्सिर बेटी की फीस जमा कराने मौजपुर स्थित विक्टर पब्लिक स्कूल गए थे। मौजपुर के पास दंगाइयों ने पति को गोली मार दी। पति की मौत के बाद सब कुछ बर्बाद हो गया। नरेला में पति प्लास्टिक दाने की फैक्टरी चलाते थे। फैक्टरी बंद हो गई। घर में खाने के लाले पड़ गए। कुछ एनजीओ व दूसरे लोगों ने मदद की। अब किसी तरह आठ बेटियों को पाल रही हूं। दंगाइयों को अपने बच्चों और परिवार के बारे में जरूर सोचना चाहिए। देश में गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल दी जाती है। लोगों को उसे कायम रखना चाहिए। जब तक हम मिलकर नहीं रहेंगे, देश कभी भी तरक्की नहीं करेगा।  

– इमराना, मुस्तफाबाद

छोटे भाई आईबी अधिकारी अंकित शर्मा का शव चांदबाग पुलिया के पास नाले से मिला था। परिवार में पिता रविंदर कुमार, मां सुधा, बहन सोनम और मैं हूं। अंकित की मौत के बाद परिवार ने खजूरी का घर छोड़ दिया। इस घर से अंकित की यादें जुड़ी थीं। अब गाजियाबाद में किराये पर रह रहे हैं। परिवार को आज भी न्याय का इंतजार हैं। जो कुछ हुआ, उसने पूरे परिवार को बुरी तरह तोड़कर रख दिया। दंगे कभी भी समझदारी का काम नहीं है। दंगाइयों को समझदारी से काम लेकर भविष्य का सोचना चाहिए। 

– अंकुर शर्मा, अंकित के बड़े भाई

पति आस मोहम्मद की हत्या कर दी गई थी। दंगे की ऐसी सैकड़ों कहानियां हैं जिन्हें सुनकर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। दंगों के बाद जेलों में बंद दोनों ही समुदाय के परिजन आज भी परिवार को बचाने की जद्दोजहद में लगे हैं। बस थोड़ी सी देर की लड़ाई ने परिजनों की जिंदगी खत्म कर दी। ऐसे में दंगाइयों को सबक लेना चाहिए। 

–  साहेबा, मुस्तफाबाद



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