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Muharram Will Be Celebrated All Over The World Why Is Mourning Celebrated On Muharram? – Khandwa News


Muharram will be celebrated all over the world Why is mourning celebrated on Muharram?

मुहर्रम का जुलूस। (सांकेतिक तस्वीर)
– फोटो : amar ujala

विस्तार


देश ही नहीं दुनियाभर में मुहर्रम पर्व मनाया जा रहा है। आज बुधवार को एशिया रीजन में इस पर्व की 10 तारीख मनाई जा रही है। मुस्लिम इतिहास के अनुसार इस दिन इस्लाम के आखिरी पैगंबर हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के वंशजों को इराक के एक शहर कर्बला में शहीद किया गया था। जिसके बाद उनकी याद में ही दुनियाभर में बसने वाले मुस्लिम समाजजन मुहर्रम पर्व को मनाते आ रहे हैं। इस दौरान मुस्लिम समाज का एक पंथ शिया समुदाय इस पर्व को 10 दिनों तक चलने वाले मातम के त्योहार के रूप में मनाता है। वहीं, दूसरा पंथ सुन्नी समुदाय इस पर्व पर अधिक से अधिक इबादत और नेक कार्य करने पर जोर देता रहा है। पर्व के दौरान कई जगहों पर ताजिए बनाकर निकाले जाने, अखाड़े और अलम निकालने की भी परंपरा है।

बता दें कि मुस्लिम इतिहास के मुताबिक करीब चौदह सौ साल पहले जब इस्लामी सल्तनत की खिलाफत खलीफा हजरत मुआविया से उनके बेटे यजीद को मिली, उस समय उसने कई ऐसी बातें आम कर दीं जो इस्लामिक शरीयत कानून के मुताबिक हराम थीं।खलीफा यजीद उन्हें हलाल बताने की कोशिश करने लगा, जिनमें शराब पीना, नशा करना और यहां तक कि जिना करना शामिल था। इससे नाराज मुल्के शाम के लोगों ने मदीना शरीफ में नवासे रसूल इमाम हुसैन को खत भेजे और उन्हें कूफ़ा आने की दवात दी गई। जिस पर उन्होंने अपने चचाजात भाई मुस्लिम बिन अकील और उनके बच्चों को कूफा के हालात का जायजा लेने भेजा।

जंग से पहले किया था तीन दिन तक नजरबंद

कूफा पहुंचे मुस्लिम बिन अकील को हालात ठीक लगे तो उन्होंने ईमाम हुसैन को भी कूफा बुलवा लिया, लेकिन इसी बीच अचानक खलीफा यजीद को इस सब की भनक लग गई और हालात बदल गए। उसने इन सबको गिरफ्तार करने के लिए एक बड़ी फौज भेज दी। तब तक पैगम्बर साहब के वंशजों का काफिला मदीना से रेगिस्तान में चलते हुए करीब 1300 किलोमीटर दूर कर्बला के मैदान तक पहुंच चुका था। उनकी मंजिल अभी 100 किलोमीटर दूर बाकी थी। लेकिन, कर्बला के मैदान में उस समय के खलीफा यजीद की फौज और इमाम हुसैन के कुनबे का टकराव हुआ। फौज ने इस काफिले में शामिल बच्चे, बूढ़े और औरतों को तीन दिनों के लिए नजरबंद कर लिया। इस दौरान इन्हें नहरे फुरात के किनारे होने के बावजूद खाने और पीने का सामान लेने तक की इजाजत नहीं दी गई।  

यह हुआ था कर्बला के मैदान में

बताया जाता है कि इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक मुहर्रम की 10 तारीख थी, जब यजीद की फौज की तरफ से पहुंचे सिपाहियों ने कर्बला के मैदान में पैगंबर साहब के वंशजों को पहले तो खलीफा की तरफ शामिल होने के लिए माल ओ दौलत देने का लालच दिया, जब नहीं माने तो जंग की शुरुआत कर दी। इस दौरान यजीद की फौज की तरफ से लाखों की संख्या में सिपाही मौजूद थे। वहीं, पैगम्बर साहब के वंशजों में उनके नवासे इमाम हुसैन की तरफ से बच्चे, बूढ़े और बीमारों की तादाद मिलाकर कुल 72 की संख्या थी। मुहर्रम की दस तारीख की सुबह से शुरू हुई इस जंग में दोपहर बाद तक एक-एक कर इन सभी का कत्ल कर दिया गया, जिनमें दो साल के बच्चे भी शामिल थे।

इसलिए होता है सबील और लंगर का इंतजाम

कर्बला में हुई इसी जंग के गम में दुनियाभर में फैले शिया समुदाय के लोग मुहर्रम को गम के त्योहार के रूप में मनाते हैं। इस दिन मुस्लिम समाज के द्वारा सदका, खैरात और इबादतों का खास अहतेतमाम किया जाता है। बड़ी संख्या में ताजिए भी निकाले जाते हैं। ताजियों के चल समारोह में मुस्लिम समाज के लोग इकट्ठा होकर इमाम हुसैन को याद करते हैं और फिर अंत में इन ताजियों को पास ही की किसी नदी में ठंडा कर दिया जाता है। इस दौरान मुस्लिम समाज के द्वारा सबील और लंगर का भी इंतजाम किया जाता है। बताया जाता है कि कर्बला के शहीदों को भूखा और प्यासा शहीद किया गया था। यजीद की फौज ने उन पर खाने और पीने से पाबंदी लगा रखी थी। इसी याद में मुस्लिम समाज के द्वारा बड़ी संख्या में पानी और शरबत की सबील लगाई जाती है और खाने के लिए लंगरों का इंतजाम होता है। 



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