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अपने आसपास नजरें घुमाकर देखिए, घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाएं आपको दिख ही जाएंगी। वे भले ही खुद से इसके बारे में कुछ न कहें, पर इस हिंसा की निशानियां उन परेशानियों को बयां कर देती हैं, जिनसे वे बंद दरवाजों के पीछे लगातार जूझ रही होती हैं। चिंताजनक बात यह है कि अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता के अभाव में ज्यादातर महिलाएं इसके खिलाफ आवाज नहीं उठा पाती हैं या आवाज उठाने की हिम्मत नहीं कर पाती हैं।। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण द्वारा घरेलू हिंसा पर किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 29.3 फीसदी भारतीय महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन में इस प्रकार र्की हिंसा से लगातार त्रस्त रहती हैं। महिलाओं में अपने अधिकारों को लेकर जागरूकता की कमी, सामाजिक और पारिवारिक दबाव, ससुरालवालों के द्वारा लगातार दहेज की मांग, शिक्षा का अभाव, पितृसत्ता या अपने लिए आवाज उठा पाने का साहस ना जुटा पाना जैसे कारण घरेलू हिंसा को आमतौर पर हमारे समाज में बढ़ावा देते हैं। यदि अपने अधिकारों के प्रति जानकारी हो तो चुपचाप प्रताड़ित होने की बजाय अपने हक के लिए लड़ा जा सकता है। घरेलू हिंसा का सामना करने के लिए क्या हैं आपके अधिकार, आइए जानें:

घरेलू हिंसा का दायरा

घरेलू हिंसा के खिलाफ आपके क्या अधिकार हैं, ये जानने से पहले यह समझना जरूरी है कि किस प्रकार का व्यवहार घरेलू हिंसा के दायरे में आता है:

शारीरिक हिंसा: महिला के साथ मार-पिटाई करना, जबरन शराब पिलाना या नशीले पदार्थ लेने के लिए मजबूर करना, उसे भूखा रखना या जरूरत पड़ने पर डॉक्टरी इलाज उपलब्ध ना करवाना शारीरिक हिंसा का रूप है।

यौन हिंसा: किसी स्त्री के साथ बिना उसकी रजामंदी के जबरदस्ती करना या यौन अंगों पर चोट पहुंचाना यौर्न हिंसा है।

आर्थिक हिंसा: महिला को आर्थिक रूप से कमजोर बनाना या रुपए-पैसे सबंधी जरूरतों के लिए अपने ऊपर निर्भर बनाने की कोशिश आर्थिक हिंसा के दायरे में आता है।

भावनात्मर्क हिंसा: गाली-गलौज करना, अपशब्द बोल कर अपमानित करना, नीचा दिखाने का प्रयास करना या महिला के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने का प्रयास करना भावनात्मर्क हिंसा मानी जाती है।

कानून का साथ

घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 में पेश किया गया था। इस अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत घरेलू हिंसा की व्याख्या इस प्रकार से की गई है:

जान, सेहत और सुरक्षा के लिए शारीरिक, मानसिक, यौन खतरा, जिसमें मौखिक और आर्थिक शोषण भी शामिल है।

दहेज के लिए महिला को शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित करना।

आईपीसी की धारा 498-ए के अनुसार पति या ससुराल पक्ष द्वारा महिला के साथ किसी भी प्रकार की बदसलूकी अपराध की श्रेणी में आता है, जो गैर-जमानती होता है।

दहेज निषेध अधिनियम, 1961 का उद्देश्य दहेज जैसी कुप्रथा पर लगाम लगाना है। दहेज निषेध अधिनियम के अनुसार दहेज लेने के लिए लड़की के घरवालों से मांग करना या उनपर दबाव बनाना अपराध माना जाता है।



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