सेना और आईटीबीपी के जवानों का हौसला
– फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
उत्तराखंड में शुक्रवार को भारत-चीन (तिब्बत) सीमा क्षेत्र में माणा कैंप के पास भारी हिमस्खलन में फंसे मजदूरों की तलाश के लिए बचाव कार्य युद्ध स्तर पर जारी है। आठ फीट बर्फ और लगातार होती भारी बर्फबारी, तापमान माइनस जैसी विषम परिस्थितियों में सेना और आईटीबीपी के जवान हिमस्खलन में दबे मजदूरों को निकालने में जुटे हैं।
शुक्रवार को 11 घंटे से अधिक समय तक चले अभियान का परिणाम यह रहा कि देर शाम तक 32 मजदूरों को सुरक्षित निकाल लिया गया। और शनिवार सुबह से ही अन्य मजदूरों की तलाश में रेस्क्यू अभियान शुरू हो गया था। जिसके परिणाम स्वरूप अभी तक 50 मजूदूरों को निकाला गया। इनमें से चार मजदूरों की इलाज के दौरान मौत हो गई। अभी पांच की तलाश जारी है।
सेना और आईटीबीपी का यही जज्बा उन्हें हिमवीर बनाता है। अपनी जान की परवाह किए बिना जवान मजदूरों को बचाने के लिए हर प्रयास कर कर रहे हैं।
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रेस्क्यू में जुटे सेना और आईटीबीपी के जवान
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पूरे क्षेत्र में सात से आठ फीट तक बर्फ जमी हुई है, लेकिन जवान बिना रुके इस विषम परिस्थिति में रेस्क्यू अभियान कर रहे हैं।
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सेना और आईटीबीपी के जवान
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शुक्रवार को पूरा आपदा तंत्र इस आपदा से निपटने के लिए सेना और आईटीबीपी पर ही निर्भर रहा। बदरीनाथ हाईवे बर्फबारी के कारण बंद होने से आपदा प्रबंधन, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ की टीम देर शाम तक वहां नहीं पहुंच पाई थी।
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चमोली में हिमस्खलन
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जवानों का हर एक कदम वहां फंसे लोगों में जीवन की आस जगाने वाला रहा। जब तक यहां अंधेरा नहीं हो गया जवान मजदूरों को निकालने में जुटे रहे। और आज भी जवान मजदूरों की तलाश में जुटे हैं।
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जवानों ने मजदूरों का किया रेस्क्यू
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माणा कैंप के समीप हुए हिमस्खलन ने रैणी आपदा की घटना याद दिला दी। सात फरवरी 2021 को ऋषिगंगा के मुहाने पर हिमस्खलन होने से रैणी घाटी में भारी तबाही हो गई थी। इस आपदा को चार साल बीत गए लेकिन आज भी रैणी और तपोवन क्षेत्र के लोगों में इस आपदा का खौफनाक मंजर जिंदा है।
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