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आखिर क्या है गीता जयंती का सम्पूर्ण उद्देश्य, विस्तार एवं महत्व, यहाँ पढ़े

सनातन धर्म में गीता जयंती (Geeta Jayanti 2022) एक बड़ा ही पवित्र दिन माना जाता है, इसे मार्गशीर्ष माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है. हिंदू धर्म की सबसे पवित्र ग्रंथ श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagavad Geeta) में सम्पूर्ण सृष्टि एवं मानवजाति का बोध किया गया है, किसी भी समस्या से जूझ रहे मनुष्य को अपने जीवन व्यापन से आधारित कोई भी समाधान चाहिए तो अवश्य ही गीता का पाठ करे. गीता का संदेश महाभारत के समय श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया था. इस दौरान भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन के आधार पर कई बातें समझाईं जिससे उनको सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त हुआ और वो महाभारत में विजयी हुए. इस पवित्र ग्रन्थ में कुल मिलाकर अठारह अध्याय हैं, जिसमें सम्पूर्ण मानवजाति की व्याख्या की गई है.

अर्जुन को गीता का ज्ञान देकर कर्म का महत्त्व स्थापित किया गया था. इस प्रकार अनेक कार्यों को करते हुए एक महान युग प्रवर्तक के रूप में श्रीकृष्ण ने सभी का मार्गदर्शन किया. मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती के साथ-साथ मोक्षदा एकादशी भी कहा जाता है. मोक्षदा एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को एकादशी के नाम के अनुसार मोक्ष प्राप्ति के योग बनते हैं.

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गीता उत्पत्ति वर्णन

हिंदू धर्म के सबसे बड़े ग्रंथ के जन्म दिवस को ‘गीता जयंती’ कहा जाता है. भगवद् गीता का हिंदू समाज में सबसे ऊपर स्थान माना जाता है. इसे सबसे पवित्र ग्रंथ माना जाता है. भगवद् गीता स्वयं श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई थी. कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन अपने सगे संबंधियों को दुश्मन के रूप में सामने देखकर, विचलित हो जाते हैं, और वह शस्त्र उठाने से इनकार कर देते हैं। तब स्वयं भगवान कृष्ण ने अर्जुन को मनुष्य धर्म एवं कर्म का उपदेश दिया. यही उपदेश गीता में लिखा हुआ है, जिसमें मनुष्य जाति के सभी धर्मों एवं कर्मों का समावेश है. कुरुक्षेत्र का मैदान गीता की उत्पत्ति का स्थान है. कहा जाता है कि कलियुग के प्रारंभ के महज 30 वर्षों पहले ही गीता का जन्म हुआ, जिसे जन्म स्वयं श्रीकृष्ण ने नंदीघोष रथ के सारथी के रूप में दिया था. गीता का जन्म आज से लगभग 5140 वर्ष पूर्व हुआ था.

हिंदू सभ्यता की मार्गदर्शक गीता

गीता केवल हिंदू सभ्यता को मार्गदर्शन ही नहीं देती, यह जातिवाद से कहीं ऊपर मानवता का ज्ञान देती है. गीता के अठारह अध्यायों में मनुष्य के सभी धर्म एवं कर्म का ब्यौरा है. इसमें सतयुग से कलियुग तक मनुष्य के कर्म एवं धर्म का ज्ञान है. गीता के श्लोकों में मनुष्य जाति का आधार छिपा है. मनुष्य के लिए क्या कर्म है, उसका क्या धर्म है, इसका विस्तार स्वयं कृष्ण ने अपने मुख से कुरुक्षेत्र की उस धरती पर किया था. उसी ज्ञान को गीता के पन्नों में लिखा गया है. यह सबसे पवित्र और मानव जाति का उद्धार करने वाला ग्रंथ है.

गीता का वचन एवं उद्देश्य

कुरुक्षेत्र का भयानक युद्ध, जिसमें भाई ही भाई के सामने शस्त्र लिए खड़ा था, वह युद्ध धर्म की स्थापना के लिए था. उस युद्ध के दौरान अर्जुन ने जब अपने ही दादा, भाई एवं गुरुओं को सामने दुश्मन के रूप में देखा तो उनका गांडीव धनुष उनके हाथों से छूटने लगा, उनके पैर कांपने लगे उसका पूरा शरीर ठंडा पड़ गया. उन्होंने युद्ध करने में अपने आप को असमर्थ पाया. तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया. इस प्रकार गीता का जन्म हुआ. श्रीकृष्ण ने अर्जुन को धर्म की सही परिभाषा समझाई. उसे निभाने की ताकत दी. एक मनुष्य-रूप में अर्जुन के मन में उठने वाले सभी प्रश्नों का उत्तर श्रीकृष्ण ने स्वयं उसे दिया. उसी का विस्तार भगवद् गीता में समाहित है, जो आज मनुष्य जाति को उसके कर्त्तव्य एवं अधिकार का बोध कराता है.

कैसे मनाते हैं गीता जयंती

गीता जयंती के दिन भगवद् गीता का पाठ किया जाता है. देशभर के इस्कॉन मंदिर में भगवान कृष्ण एवं गीता की पूजा की जाती है. भजन एवं आरती की जाती है. महाविद्वान इस दिन गीता का सार कहते हैं. कई वाद-विवाद का आयोजन होता है, जिसके जरिए मनुष्य जाति को इसका ज्ञान मिलता है. इस दिन कई लोग उपवास आदि भी रखते हैं. गीता के उपदेश पढ़े एवं सुने जाते हैं.

महत्त्व

गीता का जन्म मनुष्य को धर्म का सही अर्थ समझाने की दृष्टि से किया गया. जब गीता का वाचन स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने किया, उस वक्त कलियुग का प्रारंभ हो चुका था. कलियुग ऐसा दौर है, जिसमें गुरु एवं ईश्वर स्वयं धरती पर मौजूद नहीं हैं, जो भटकते अर्जुन को सही राह दिखा पाएं. ऐसे में गीता के उपदेश मनुष्य जाति की राह प्रशस्त करते हैं. इसी कारण महाभारत काल में गीता की उत्पत्ति की गई. हिंदू धर्म ही एक ऐसा धर्म है, जिसमें किसी ग्रंथ की जयंती मनाई जाती है, इसका उद्देश्य मनुष्य में गीता के महत्त्व को जगाए रखना है. कलियुग में गीता ही एक ऐसा ग्रंथ है, जो मनुष्य को सही-गलत का बोध करा सकता है. इस दिन विधिपूर्वक पूजन व उपवास करने पर हर तरह के मोह से मोक्ष मिलता है. यही वजह है कि इसका नाम मोक्षदा भी रखा गया है. गीता जयंती का मूल उद्देश्य यही है कि गीता के संदेश का हम अपनी जिंदगी में किस तरह से पालन करें और आगे बढ़ें. गीता का ज्ञान हमें धैर्य, दुख, लोभ व अज्ञानता से बाहर निकालने की प्रेरणा देता है. गीता मात्र एक ग्रंथ नहीं है, बल्कि वह अपने आप में एक संपूर्ण जीवन है. इसमें पुरुषार्थ व कर्त्तव्य के पालन की सीख है.

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