Flashback :यमुना में बाढ़ की 45 साल पुरानी यादें आज भी करतीं हैं पीछा, 1978 के पीड़ितों ने बयां की दास्तान – Flashback: 45 Years Old Memories Of Flood In Yamuna Haunt Even Today, Victims Told The Story

अतीत की बात…
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
‘यमुना के बढ़ते जलस्तर के कारण दो दिन पहले अजीब सी बेचैनी थी। वर्ष 1978 की बाढ़ का मंजर अंदर तक हिला रहा था। उस समय छह दिन तक घर में कैद रहना पड़ा था। खाना-पानी तक नहीं मिला था। नहाने की तो कोई सोच भी नहीं सकता था। इन बुरी यादों से चैन तब मिला जब बृहस्पतिवार रात पानी घटने की खबर मिली। ऐसे में दो दिन बाद सुकून की नींद आई।’
रोशन कंसल जब यह बातें कह रहे थे, तो उनकी आंखों में 45 साल पहले की बाढ़ का खौफ साफ नजर आ रहा था। उन्होंने बताया कि उत्तरी दिल्ली के आदर्श नगर के मकान की पहली मंजिल पर पूरे परिवार के साथ कैद रहना पड़ा था। उस समय उनकी उम्र 15 साल की थी, लेकिन उनकी यादें मौजूदा बाढ़ ने ताजी कर दीं। यह कहानी सिर्फ रोशन की नहीं, उत्तरी व उत्तर पश्चिमी दिल्ली की दर्जनों कालोनियों में रहने वाले उन लोगों की है, जिन्होंने 1978 की बाढ़ का दर्द सहा था।
तुलनात्मक रूप से सुरक्षित होने के बावजूद उफनती यमुना 45 साल पुराने खौफनाक मंजर की याद दिला रही थी। खासतौर से उस वक्त जब बृहस्पतिवार सुबह बुराड़ी पुश्ते में दरारें आने की सूचना मिली। एकबारगी लगा कि कहीं 1978 के शाह आलम बांध की तरह इस बार भी बुराड़ी पुश्ता ढह न जाए। ऐसा होने की सूरत में इस बार आबादी घनी होने से उत्तरी व पश्चिमी दिल्ली के हालात बेहद खतरनाक होते।
इंदिरा पहुंचीं नाव से घर तक
मॉडल टाउन निवासी जगमोहन गोटेवाल ने बताया कि 45 साल पुरानी बाढ़ के कारण पूरा परिवार तीन दिन तक पहली मंजिल पर कैद था। ग्राउंड फ्लोर पर तीन-चार फीट पानी भरा हुआ था। मकान थोड़ा बड़ा होने से पड़ोस के कुछ परिवार भी आ गए थे। पानी में डूबने से समसपुर गांव में लगी हमारी दाल की फैक्ट्री बर्बाद हो गई थी। इस बार बाढ़ आने पर पुरानी बातें तो घर में चर्चा-ए-आम रहीं हीं, एक और बात जो याद की जाती है वह यह है कि उस दौरान नाव पर बैठकर घर तक दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी आई थीं। उन्होंने एक-एक सदस्य से कुशलक्षेम पूछी थी।
गांव बन गया था टापू
ढांसा गांव निवासी नारायण सिंह डागर ने बताया कि 1978 में पूरा गांव टापू बना हुआ था। कहीं किसी से संपर्क नहीं था। हर वक्त घर में पानी घुसने की चिंता सताती रहती थी। सेना से खाने-पीने का सामान मिल जाता था। इस बार की बाढ़ से हालांकि गांव सुरक्षित है, लेकिन गांव में हम बुजर्गों के बीच बीते एक हफ्ते से चर्चा यमुना की बाढ़ पर ही है।
तब और अब
- 1978 में यमुना का लोहे का पुल, वजीराबाद पुल, आईटीओ पुल और ओखला पुल 48 घंटों के लिए बंद थे। शाह आलम बांध टूटने से उत्तरी दिल्ली में 30 गांव बाढ़ की चपेट में थे।
- इस बार कालिंदी के अलावा सभी पुल बंद थे। बांध सुरक्षित होने से इस बार अंदर तक पानी नहीं भरा। यमुना के तटीय इलाकों में ही पानी भरा।

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