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बासित अली:यूसीसी ना शरीयत के खिलाफ है, ना ही मुसलमानों के, विपक्षियों के बहकावे में ना आए मुस्लिम समाज – Interview Of Kunwar Basit Ali


interview of kunwar basit ali

कुंवर बासित अली
– फोटो : सोशल मीडिया

विस्तार

सपा हो या कांग्रेस सभी पार्टियों ने सिर्फ वोट के लिए मुसलमानों का इस्तेमाल किया है। उनको शिक्षित नहीं होने दिया। उनकी इमेज दंगाई की बना दी गई। कहीं पर कोई प्रगतिशील काम होता दिखता है तो हमेशा ही ऐसा होगा कि मुसलमान सड़क पर उसका विरोध करता दिखे। यूनीफॉर्म सिविल कोड का अभी बिल नहीं आया है। इस बिल पर राय मांगी जा रही है। पर मुसलमान अभी से विरोध करते दिखने लगे हैं। जब विरोध करने की बात होगी तो मुसलमान राय देने लगेंगे। यह बात यूपी अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष कुंवर बासित अली ने कही। अमर उजाला डिजिटल से विशेष बातचीत में उन्होंने यूनीफॉर्म सिविल कोड, मुसलमानों की राजनीति, बीजेपी के साथ उनकी असहजता और बाकी पार्टियों के मुसलमानों के प्रति रवैये पर विस्तार से बात की। आइए पढ़ते हैं बातचीत के प्रमुख अंश…

यूनीफॉर्म सिविल कोड क्या मुसलमानों को डराने के लिए? 

नहीं, मुसलमानों को ना तो इससे डरना चाहिए और ना ही यह बिल डराने के लिए लाया जा रहा है। जब देश आजाद हुआ था तब भी इस बारे में देश के उस दौर के रहनुमाओं ने यह बात कही थी कि देश में सभी लोगों के लिए एक तरह का कानून होना चाहिए। देश में एक कॉमन सिविल कोड हो इसकी मांग सदैव से रही है। यह सरकार इस बिल को किसी के ऊपर थोप नहीं रही है। सरकार चाहती है कि इस विषय पर आप खुले मन से अपनी राय रखें। अपराधिक मामलों में तो एकरूपता पहले से ही रही है। मोदी सरकार चाहती है कि सिविल के मामलों खासकार विवाह, उत्तराधिकार और संपत्ति के मामलों में भी एकरूपता रहे। इस देश के हर नागरिक के अधिकार एक जैसे हों इसमें दिक्कत क्या आ रही है। 

क्या यूसीसी शरीयत के खिलाफ खड़ा हुआ है? 

यूसीसी का ड्रॉफ्ट अभी नहीं आया है। सरकार ऐसा कुछ नहीं करेगी जो किसी की धार्मिक आस्थाओं के खिलाफ हो। यदि यूसीसी बेटियों को हक देने की बात कहती है तो इसमें शरीयत की खिलाफत कहां से हो गयी। अगर सरकार चाहती है कि  महिलाओं के नाम घर, जमीन, गाडियां हों तो क्या यह धर्म के खिलाफ है। मुसलमानों को यह सोचना चाहिए कि उनकी बेटियों और बहुओं को संपत्ति में अधिकार मिलेगा तो इससे एक तरह की बराबरी आएगी। शरीयत मुसलमान महिलाओं के दमन करने की बात नहीं कहता है। 

ट्रिपल तलाक के बाद यूसीसी, क्या बीजेपी की निगाह मुसलमान महिला वोटरों पर है? 

बीजेपी की निगाह बराबरी पर है। समाज के हर तबके को हक मिले बीजेपी यही चाहती है। सबका साथ सबका विकास नारे का अर्थ ही यही है कि योजनाओं में लाभ देते समय यह ना देखा जाए कि कौन किस मजहब या जेंडर से ताल्लुक रखता है। चाहे आवास की बात हो या राशन कार्ड की, मुसलमानों की जितनी संख्या है उससे ज्यादा उनको भागीदारी दी गई है। हज के लिए हमेशा से एक नियम था। कोई महिला अकेली हज यात्रा नहीं कर सकती थी। उसे अपने साथ किसी ना किसी रिश्तेदार(महरम) को ले जाना ही होता था। मोदी सरकार ने यह व्यवस्था खत्म की है। अब अकेली मुसलमान महिला हज के लिए जा सकती है। ट्रिपल तलाक खत्म होने के बाद महिलाओं पर विवाह के नाम पर चली आ रही असुरक्षा खत्म हुई। अब उन्हें यह लगता है कि कोई भी तीन बार तलाक बोलकर नहीं जा सकता। सरकार इसे मुसलमान महिलाओं की जिंदगी को बेहतर करने से जोड़ती है उनके वोट बैंक से नहीं। 

सब कुछ बेहतरी  के लिए है तो मुसलमानों का विरोध क्यों है? 

आजादी के बाद से पहले कांग्रेस बाद में दूसरी पार्टियों ने मुसलमानों को एक टूल्स की तरह यूज किया है। यह कौम बहुत शिक्षित और जागरूक ना हो जाए इसके लिए मुल्ला-मौलवियों का सहारा लिया जाता रहा है। यह मौलवी पार्टियों से जुड़े हुए होते हैं। इनके हाथ में कुछ कट्टर मुसलमान होते हैं। वह किसी भी मुद्दे पर मुसलमानों को भड़काकर उनका उपयोग करते हैं। एनआरसी के मामले में भी यही हुआ। पर्दे के पीछे विपक्षी पार्टियों की फंडिंग थी। तमाम तरह की अफवाहें फैलाई गईं। मकसद एक ही था कि कैसे एक ऐसा माहौल बनाया जाए कि दुनिया भर में ऐसी इमेज बने कि मोदी सरकार मुसलमानों का दमन कर रही है। सारा विरोध प्रायोजित था। मौलाना इसकी कड़ी थे। 

फिर भी बीजेपी से छिटका हुआ क्यों है मुसलमान? 

मुसलमानों के अंदर तेजी से इस बात का इल्म हो रहा है कि कौन पार्टी उनके साथ खड़ी है। लेकिन ज्यादातर मुसलमान अभी भी पढ़े लिखे नहीं हैं। उन्हें आसानी से बहकाया जा सकता है। समझदार मुसलमानों को यह सोचना चाहिए कि बाकी पार्टियों ने क्या किया और बीजेपी ने क्या किया। यूपी में मुसलमान की आबादी मोटे तौर पर 19 फीसदी है। उन्हें सरकारी योजनाओं में करीब-करीब 30 फीसदी की हिस्सेदारी दी गई है। चाहे राशन कार्ड हों, घर हों या शौचालय हों सभी में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व उनकी आबादी से ज्यादा मिला है। अब यह मुसलमानों को सोचना चाहिए कि वह बीजेपी को वोट क्यों ना दें? 

पर एक मुसलमान के अंदर डर किस बात का है?

मुसलमान के अंदर डर विपक्षी पार्टियों ने पैदा किया है। जो कौम सिर्फ अल्लाह से डरती है विपक्षी पार्टियों ने उसे बीजेपी से डरना सिखाया। मुसलमानों के लिए कुछ किया जाए इससे बेहतर यह है कि उन्हें बीजेपी का डर दिखा दिया जाए। सपा और कांग्रेस दोनों ने ही मुसलमानों के अदंर एक डर बैठाने का किया है। कब्रिस्तान की दीवारों की ऊंचाई बढ़ाने के अलावा सपा एक काम बता दे जो उसने मुसलमानों की बेहतरी के लिए किया हो? मुलायम सिंह यादव ने एक बार कहा था कि हर थाने में अनिवार्य रुप से एक मुसलमान पुलिसकर्मी होगा। सरकार आने पर क्या ऐसा हुआ? यह सिर्फ डर दिखाने की बात थी। ताकि मुसलमान डरकर उन्हें वोट करता रहे।  

 



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