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ashok stambh hory in hindi | अशोक स्‍तम्‍भ का इतिहास क्‍या है

अशोक स्‍तम्‍भ का इतिहास क्‍या है। इस लेख में हम आपको अशाेक स्‍तम्‍भ के इतिहास (ashok stambh hory in hindi) के बारे में विस्‍तार से बताने वाले है।11 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने सेंट्रल विस्‍टा प्रोजेक्‍ट के तहत बनने वाली नई संसद भवन की छत पर नये अशोक स्‍तम्‍भ (ashok Stambh -Laat) का अनावरण किया। जिसके बाद से ही नये अशोक स्‍तम्‍भ के डिजाइन को लेकर एक नया विवाद छिड़ गया है। देश के कई बड़े इतिहासकारो और विपक्ष के कई नेताओ का मानना है कि नये अशोक स्‍तम्‍भ जो तीन शेर दहाड़ते हुए नजर आ रहे हैं वो मूल अशोक स्‍तम्‍भ के शेरो से काफी अलग दिखाई दे रहे है। इस पूरे वाद विवाद ने अशोक स्‍तम्‍भ को लोगो की चर्चाओं के केन्‍द्र में लाकर खड़ा कर दिया है। अगर आप भी अशोक स्‍तम्‍भ और उसके इतिहास को जानना चाहते है तो ये लेख खास आपके लिए है। इस लेख में हम आपको अशोक स्‍तम्‍भ और उसके उसके के बारे मे विस्‍तार से बताने वाले है।Ashok stamph hory in hindi: ashok stamph details in hindi अशोक स्‍तम्‍भ का इतिहास ईसा से भी 250 साल पुराना है जिसकी नींव भारत के सम्राट अशोक ने रखी थी। सम्राट अशोक ने अपने समय में अपने सम्राज्‍य के कई इलाको में अपने राज्‍य के प्रतीक के तौर पर अशोक स्‍तम्‍भ लगवाये थे। भारतीय गणराज्‍य के तौर पर जिस अशोक स्‍तम्‍भ को राष्‍ट्रीय प्रतीक के तौर पर लिया गया है। वो सारनाथ में है। इस अशोक स्‍तम्‍भ को सम्राट अशोक ने वाराणसी में लगवाया था जो कि उसके सम्राज्‍य के लिए एक राष्‍ट्रीय प्रतीक के तौर पर था।सम्राट अशोक अपनी जिन्‍दगी के आखिरी कालखंंड में गौतम बुद्ध से काफी ज्‍यादा प्रभावित हो गये थे। गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश भी सारनाथ में ही दिया था। गौतम बुद्ध से प्रभावित होने की वजह से ही सम्राट अशोक ने सारनाथ में एक ऐसा अशोक स्‍तम्‍भ लगवाया जो धर्म चक्र परिवर्तन की घटना से प्रेरित था। इस स्‍तम्‍भ की स्‍थापना अशोक ने दुनिया भर को अहिंसा का पाठ पढ़ाने के लिए की थी। सारनाथ के इस अशोक स्‍तम्‍भ को बलुआ पत्‍थर के लगभग 45 फुट लंबे प्रस्‍तर खंड पर बनाया था। इस अशोक स्‍तम्‍भ के जमीन के अंदर घंसे हुए आधार को छोड़कर इसके बाकी का शेप गोलाकार आकार में है जो ऊपर तरफ जाते ही पतला होता जाता है। इसका दंड गोलाकार है। इस दंड के ऊपर इसका कंठ और कंठ के ऊपर शीर्ष है और इसके कंठ के नीचे एक उल्‍टा कमल बना हुआ है। अशोक स्‍तम्‍भ का ये गोलाकार कंठ इसके चक्र से चार भागो में बटा हुआ है जिनमे हाथी, घोड़ा, सांड और सिंह की सजीव आकृतियां बनी हुई है। इस कंठ के ऊपर शीर्ष में चार सिंह की मूर्तिया बनी हुई है जो एक दूसरे की तरफ पीठ किये हुये है। इन चारो सिंहो के बीच में एक छोटा सा दंड है जो 32 तिल्लियों वाले धर्म चक्र को प्रर्दशित करता है। इस धर्मचक्र को भगवान बुद्ध के 32 महापुरूष वाले गुणों का प्रतीक माना जाता हैं। अशोक स्‍तम्‍भ अपनी बनावट की वजह को लेकर भी काफी अद्भुत है। इस वक्‍त इस अशोक स्‍तम्‍भ का निचला भाग तो अपने मूल स्‍थान पर है लेकिन इसके शेष भाग को सारनाथ में ही एक संंग्रहालय में रख दिया गया है।राष्‍ट्रीय चिन्‍ह का मतलब क्‍या है भारत ने सारनाथ के अशोक स्‍तम्‍भ के ऊपरी जिस हिस्‍सो को राष्‍ट्रीय चिन्‍ह के रूप में अपनाया है उसके केवल तीन शेर ही एक दूसरे की तरफ पीठ करते हुए दिखाई दे रहे है। बौद्ध धर्म के अनुसार ये शेर विश्‍वगुरू और तथागत बुद्ध माने गये है। पालि गाथाओ के अनुसार भगवान बुद्ध शाक्‍यसिंह और नरसिंह भी माने गये है। बुद्ध ने वर्षावास समाप्ति पर मृगदाव में  भिक्षुओं को चारों दिशाओं में जाकर लोक कल्याण हेतु बहुजन हिताय बहुजन सुखाय का प्रचार करने को कहा था. यही जगह आज सारनाथ (Sarnath) के नाम से मशहूर है. इसलिए यहां पर मौर्य साम्राज्य (Maurya Empire) के तीसरे सम्राट व सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के पौत्र चक्रवर्ती अशोक महान ने चारों दिशाओं में सिंह गर्जना करते हुए शेरों का निर्माण करवाया था. चक्रवर्ती सम्राट अशोक महान का यह चौमुखी सिंह स्तंभ विश्वगुरू तथागत बुद्ध के धर्म चक्र प्रवर्तन तथा उनके लोक कल्याणकारी धर्म के प्रतीक के रूप में स्थापित है.  कलिंग युद्ध के बाद बदला था सम्राट अशोक का दिलदेश के राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह कोई मामूली प्रतीक नहीं है. ये एक क्रूर सम्राट के हृदय परिवर्तन की घटना को भी बयां करता है. आज से पहले 273 ईसा पूर्व के कालखंड में पीछे चला जाए तो भारतवर्ष में मौर्य वंश तीसरे राजा अशोक (Emperor Ashoka) का राज था. वह एक क्रूर शासक माने जाते थे. कंलिगा युद्ध के नरसंहार ने इसे क्रूर शासक का ऐसा हृदय परिवर्तन किया कि उसने अपना जीवन बौद्ध धर्म को समर्पित कर दिया. इसी बौद्ध धर्म ( Buddha Dharma) के प्रचार में उनका पूरा परिवार शामिल हो गया और उन्होंने सारनाथ में अशोक स्तंभ (Ashok Stambh) का निर्माण करवाया. यहां भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था और इसे सिंह गर्जना के तौर पर भी जाना जाता है.  भारत की आजादी के बाद देश का भी कायाकल्प हुआ शायद इसलिए देश के संविधान निर्माताओं ने इसे राष्ट्रीय प्रतीक के तौर पर मान्यता दी.सत्य की हमेशा विजय होती हैभारत का राष्ट्रीय प्रतीक अपने आप में अनोखा और अद्वितीय है. अशोक स्तंभ में चार शेर हैं, लेकिन तीन ही शेर दिखाई पड़ते हैं. इसकी गोलाकार आकृति की वजह से आप किसी भी तरफ से देखें तो आपको केवल तीन ही शेर दिखाई पड़ते हैं. एक शेर हमेशा नहीं दिखाई पड़ता. इसके नीचे एक सांड और एक घोड़े की आकृतियों के बीच में एक चक्र हैं. इसे हमारे राष्ट्रीय झंडे में स्थान दिया गया है. इसके साथ ही अशोक स्तंभ के नीचे मुण्डकोपनिषद का सूत्र “सत्यमेव जयते-Satyamev Jayate” लिखा हुआ है. इसका मतलब है कि सच हमेशा जीतता है. यूं ही नहीं इस्तेमाल कर सकते प्रतीक चिन्हइसकी ताकत इतनी है कि ये एक साधारण से  कागज़ पर लग जाए तो उसका महत्व बढ़ा देता है, क्योंकि यह संवैधानिक पद और संविधान की ताकत को प्रदर्शित करता है.अशोक की लाट वाले इस राष्ट्रीय प्रतीक (National Emblem)का इस्तेमाल हर कोई नहीं कर सकता है. केवल संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्ति ही इसका इस्तेमाल कर सकते हैं. इनमें देश राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री,राज्यपाल,उप राज्यपाल, न्यायपालिका और सरकारी संस्थाओं के उच्च अधिकारी जैसे लोग आते हैं. हालांकि रिटायर होने के बाद कोई भी मंत्री, सांसद, विधायक और अधिकारी बगैर अधिकार के इसका इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं. इतना सब होने के बाद भी इस प्रतीक का बेजा इस्तेमाल होने पर भारतीय राष्ट्रीय चिन्ह (दुरुपयोग की रोकथाम) एक्ट 2005 बनाया गया. साल 2007 में इसमें सुधार कर अपडेट किया गया. इसके तहत बगैर अधिकार कोई भी इसका इस्तेमाल करता है तो उसे दो साल की कैद और पांच हजार रुपये तक का जुर्माना हो सकता है.ये भी पढ़े- क्‍या महाराष्‍ट्र में ठाकरे सरकार की उल्‍टी गिनती शुरू हो गई हैHardik Patel Biography in hindi | हार्दिक पटेल का राजनीति सफरuniform civil code kya hai | समान नागरिक संहिता क्‍या हैइशात जैदी एक लेखक है। इन्‍होने पत्रकारिता की पढाई की है। इशात जैदी पिछले कई सालों से पत्रकारिता कर रहे है। पत्रकारिता के अलावा इनकी साहित्‍य में भी गहरी रूचि है।Related

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