Bhilwara Angel Of Cricket Living In Village Needs Help Kavita Bhil Fast Bowling Surprised Everyone – Bhilwara News
राज्य और केंद्र सरकारें लगातार ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के साथ-साथ खेल को बढ़ावा देने की बात कर रही हैं। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। भीलवाड़ा संसदीय क्षेत्र के आसींद विधानसभा के बदनोर उपखंड के खड़ेला गांव की रहने वाली 13 वर्षीय बालिका कविता भील इसका एक जीता-जागता उदाहरण है। महज 13 साल की उम्र में अपनी तेज गेंदबाजी से मिचेल स्टार्क जैसी गेंदबाजी शैली को अपनाते हुए कविता ने क्रिकेट के मैदान पर अपनी अलग पहचान बनाई है। फिर भी आज तक उसे किसी प्रकार की सरकारी या गैर-सरकारी मदद नहीं मिली है।
कविता वर्तमान में राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय खड़ेला में कक्षा आठ की छात्रा है। वह पिछले तीन वर्षों से लगातार क्रिकेट की प्रैक्टिस कर रही है और अब तक दो बार राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में भाग ले चुकी है। साल 2024 में उसने आरसीए (राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन) कैंप में भी प्रशिक्षण प्राप्त किया है। उसकी तेज गेंदबाजी की रफ्तार इतनी अधिक है कि सामने वाला बल्लेबाज समझ ही नहीं पाता कि कब गेंद उसकी विकेट उड़ा ले गई।
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कोच ने छोड़ी विदेश की नौकरी, अब दे रहे हैं निशुल्क प्रशिक्षण
कविता की प्रतिभा को पहचान कर उसके कोच मनोज सुनारिया ने दुबई में अपनी नौकरी छोड़ दी है और अब गांव लौटकर कविता को निशुल्क प्रशिक्षण दे रहे हैं। मनोज बताते हैं, कविता की गेंदबाजी में जबरदस्त क्षमता है। यह बालिका सही मार्गदर्शन और संसाधन मिले तो आने वाले समय में राज्य ही नहीं, देश का नाम रोशन कर सकती है।
वे बताते हैं कि कविता दिन में जंगल में बकरियां चराती हैं और फिर अपने गांव कुंडा का थाक स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय के परिसर में दिन में चार से छह घंटे तक कड़ा अभ्यास करती हैं। कविता के पास आज भी क्रिकेट खेलने के लिए उचित साधन नहीं हैं। उसके जूते फटे हुए हैं, गेंदें पुरानी हैं और नेट की जगह फटी हुई झालियों को जोड़कर जुगाड़ किया गया है।
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परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति बनी बाधा
कविता के परिवार में माता-पिता के अलावा तीन भाई-बहन हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण वह क्रिकेट की किट तक नहीं खरीद पा रही। कविता कहती है, सरकार और शिक्षा विभाग की ओर से कोई मदद नहीं मिली है। गांव में कोई खेल मैदान नहीं है। ऐसे में प्रैक्टिस करने में काफी मुश्किल होती है।
सरकारी उपेक्षा बनी चिंता का विषय
13 साल की इस होनहार बालिका को आज तक किसी भी विभाग ने खेल सामग्री, वित्तीय सहायता या प्रोत्साहन नहीं दिया है। न तो शिक्षा विभाग ने ध्यान दिया और न ही खेल विभाग के किसी अधिकारी ने उसकी प्रतिभा को गंभीरता से लिया है। कोच मनोज कहते हैं कि यदि सरकार समय रहते इस बालिका की मदद करे, तो यह निश्चित ही देश के लिए एक बड़ी संपत्ति बन सकती है।
ग्रामीण क्षेत्रों की प्रतिभाएं चाहती हैं मौका
यह मामला न केवल कविता की कहानी है, बल्कि यह राज्य के उन सैकड़ों ग्रामीण बच्चों की कहानी है जो प्रतिभावान हैं, लेकिन संसाधनों और सरकारी उपेक्षा के कारण वे उभर नहीं पा रहे। सरकार का यह दायित्व बनता है कि ऐसे होनहार खिलाड़ियों की पहचान कर उन्हें उचित अवसर, प्रशिक्षण और सुविधाएं दी जाएं।
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कविता की कहानी प्रेरणादायक जरूर है, लेकिन साथ ही यह हमारे सिस्टम की उस विफलता को भी उजागर करती है जो ग्रामीण प्रतिभाओं को अवसर देने में असफल रहा है। सरकार और समाज दोनों को मिलकर कविता जैसे खिलाड़ियों की मदद करनी चाहिए, ताकि आने वाले समय में वे देश का नाम रोशन कर सकें।
