Bihar: Governor Vishwanath Arlekar On Lord Buddha And Guru Padmasambhava, Nava Nalanda Mahavihara – Amar Ujala Hindi News Live

पालि-हिंदी शब्दकोश के नवीन खंड का लोकार्पण करते राज्यपाल और मंचासीन अतिथि
– फोटो : अमर उजाला
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‘गुरु पद्मसम्भव के जीवन और जीवंत विरासत की खोज’ विषयक दो दिवसीय संगोष्ठी नव नालंदा महाविहार और इंटरनेशनल बुद्धिस्ट कन्फेडेरेशन (आईबीसी) के संयुक्त तत्त्वावधान में नव नालंदा महाविहार परिसर, नालंदा में आरंभ हुई। उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर रहे।
इस अवसर पर आईबीसी के महासचिव शास्त्रे खेन्सुर जांग्चुप चौडेन रिनपोछे ने कहा कि यह आयोजन मनुष्यता के प्रेरक गुरु पद्मसम्भव पर केंद्रित है जो मिथकीय किंवदंती हैं। वज्रयान के एक शिखर पुरुष। सभी जानते हैं कि नालंदा एक महत्त्वपूर्ण स्थल है। दलाई लामा का कहना है कि वे नालंदा परंपरा से आते हैं। इस गोष्ठी में हम ज्ञान के स्रोत में प्रवेश करेंगे।
आईबीसी के महानिदेशक अभिजित हालदार ने कहा कि मानव मन को समझने का उत्कृष्ट प्रयत्न उस समय गुरु पद्मसम्भव ने किया। वे वज्रयान व तंत्र के विशेषज्ञ थे। उन्होंने यह जानने का यत्न किया कि हम क्या हैं।
विशिष्ट अतिथि रॉयल भूटान टेम्पल के सचिव तथा मुख्य भिक्षु खोन्पो उगेन नामग्याल ने कहा कि गुरु पद्मसम्भव तान्त्रिकता के विशेषज्ञ थे। भविष्य की पीढ़ी के वे निर्माता थे। वे तान्त्रिक दृष्टि परंपरा के सृजकों में एक थे। भूटान को नई आध्यात्मिकता और नए विचारों से उन्होंने समृद्ध किया। अपनी शिक्षाओं से उन्होंने यहां की सांस्कृतिक अस्मिता को गहरा आधार दिया।
विशिष्ट अतिथि लुम्बिनी डेवलपमेंट ट्रस्ट के उपाध्यक्ष भिक्षु खेन्पो चिमेड ने कहा कि गुरु पद्मसम्भव बुद्ध धर्म की उत्कृष्ट उपलब्धियों में से एक थे। उनमें पवित्रता, गहनता तथा ज्ञान के प्रति जिज्ञासा थी। वे ध्यान के अभ्यासी थे। अपनी शिक्षा में उन्होंने बुद्ध के सत्य स्वरूप का उद्घाटन किया। उन्होंने जो शिक्षा दी, वह आज भी हमारी प्रेरणा का स्रोत है। उनकी शिक्षाएं समय को अतिक्रांत करने वाली हैं। अगर उनको देख और समझ लिया जाए तो हम बुद्ध की वास्तविकता के और करीब हो सकते हैं।
वहीं, मुख्य अतिथि बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने कहा कि गुरु पद्मसंभव ने केवल भौगोलिक रूप से भ्रमण नहीं किया, बल्कि सांस्कृतिक यात्रा भी की। बुद्ध इस भूमि के उपहार थे। वे ‘दैवी विभूति के अंश’ थे। भगवान बुद्ध और गुरु पद्मसम्भव ने दूसरों के लिए किया और जीया। तिब्बत में उन्होंने बुद्ध शिक्षाओं को प्रसारित किया। आज विश्व में युद्ध जैसी परिस्थिति के बीच बुद्ध और गुरु पद्मसम्भव की शिक्षाएं भविष्य का रास्ता दिखाती हैं। इस दुनिया का अस्तित्व शांति पर आधारित है, यह बुद्ध और पद्मसम्भव बताते हैं। गुरु पद्मसम्भव एक यथार्थ थे, मिथक नहीं। अगर पद्मसम्भव उस समय मनुष्यता व ध्यान का अभ्यास कर सकते हैं तो आज हम क्यों नहीं? आज उनके विचारों को आगे बढ़ाने की आवश्यता है। ‘यह मेरा काम है, मुझे ऐसा सोचना और संकल्प लेना है’, आज यह दृष्टि होनी चाहिए। दो दिवसीय इस विमर्श से अवश्य नवनीत निकलेगा।
वहीं, नव नालंदा महाविहार के कुलपति प्रो. राजेश रंजन ने धन्यवाद ज्ञापन किया। उन्होंने आगत अतिथियों का धन्यवाद तथा आभार प्रकट किया। उन्होंने कहा कि गुरु पद्मसंभव 8वीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध बौद्ध रहस्यवादी थे, जिनको तांत्रिक बौद्ध धर्म को तिब्बत ले जाने और वहां प्रथम बौद्ध मठ की स्थापना का श्रेय भी दिया जाता है।
इस अवसर पर ‘पालि-हिंदी शब्दकोश’ के नवीन खंड का लोकार्पण राज्यपाल और मंचासीन अतिथियों द्वारा किया गया। आरंभ में मंगल-पाठ डॉ. धम्मज्योति, भिक्षुगण और प्रो. विजय कर्ण द्वारा किया गया। कार्यक्रम में नव नालंदा महाविहार के पूर्व निदेशक आशीष भावे और डॉ. रवींद्र पंत के अतिरिक्त आईबीसी द्वारा आमंत्रित आगंतुक प्रतिभागी, नव नालंदा महाविहार के आचार्य, स्टाफ तथा शोध छात्र आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम में ‘सेक्रेड जर्नी ऑफ होली रेलिक्स फ्रॉम इंडिया टू थाइलैंड’ और नव नालंदा महाविहार पर आधारित फिल्में दिखाई गईं। कार्यक्रम के आयोजन में नव नालंदा महाविहार के प्रो. दीपंकर लामा, डॉ. मीता और डॉ. अरुण कुमार की विशिष्ट भूमिका है। गुरु पद्मसम्भव पर केंद्रित यह विचार-विमर्श का कार्यक्रम दो दिन चलेगा।

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