ऐप पर पढ़ें
पुरुषोत्तम एकादशी यानी शनिवार को है। इस बार इस एकादशी पर 19 साल बाद जेष्ठा नक्षत्र और ब्रह्म योग बन रहा है। यही नहीं यह अधिकमास की पहली एकादशी है। उस पर शनिवार को एकादशी व्रत है, इसलिए कई मायनों में यह एकादशी खास है। दान-पुण्य से लेकर व्रत तक इस दिन उत्तम योग है। आपको बता दें कि एकादशी तिथि का आरंभ शुक्रवार को सुबह 9:28 से हो गया जो 29 जुलाई को 8: 23 मिनट तक रहेगा। यह एकादशी अधिकमास और सावन के बीच पड़ रही है, इसलिए शिवजी और विष्णु भगवान की पूजा विशेष फलदायी रहेगी। इस दिन शिवजी पर बिल्वपत्र अर्पित करें, वहीं विष्णु भगवान और शनिदेव के लिए पीपल के पेड़ पर जल अर्पित करें। विष्णु भगवान को प्रसन्न करने के लिए शाम को तुलसी का पूजन करें। चातुर्मास के चलते सावन और अधिक मास का संयोग होने से भगवान विष्णु की पूजा और व्रत का पुण्य फल और बढ़ जाएगा।
पद्मिनी एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार त्रेता युग में एक पराक्रमी राजा कृतवीर्य थे, राजा ने कई शादियां कर रखी थीं, लेकिन फिरभी वे निसंतान थे। वे संतान की कामना के लिए बहुत दुखी थे और कठोर तपस्या भी करते थे, रानियां भी संतान की चाह के लिए तपस्या में कोई कमी नहीं छोड़ती थीं। लेकिन उन्हें उनकी तपस्या का फल नहीं मिल रहा था। ऐसे में राजा की एक रानी, जिनका नाम पद्मिनी था उन्होंने माता अनुसूया से इस समस्या का समाधान पूछा। तब अनुसूया माता ने उन्हें राजा सहित मलमास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत के महत्व को समझाया और इस व्रत को करने की सलाह दी।
माता अनुसूया ने रानी पद्मिनी से कहा कि मलमास हर 3 साल में एक बार आता है। मलमास के शुक्ल पक्ष की पद्मिनी एकादशी को जागरण करके व्रत रखने से मनोकामना जल्द ही पूर्ण होती है और भगवान विष्णु प्रसन्न होकर पुत्र प्राप्ति का वरदान देते हैं।
फिर जब मलमास आया तो रानी ने पद्मिनी एकादशी का व्रत रखा। दिन में कुछ भी नहीं खाया और रात्रि में जागरण किया। रानी पद्मिनी के इस व्रत से प्रसन्न होकर श्रीहरि विष्णु ने रानी को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। भगवान विष्णु के आशीर्वाद से रानी गर्भवती हुई और 9 माह बाद एक पुत्र को जन्म दिया। वह पुत्र काफी बलवान और पराक्रमी था। तीनों लोकों में उसके पराक्रम का परचम लहरा रहा था। ऐसे में पद्मिनी एकादशी का व्रत करने से संतान की प्राप्ति होती है और व्यक्ति को बैकुंठ प्राप्त होता है।

Comments are closed.