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Exclusive Interview Of Singer Ila Arun Who Arrived To Participate In International Film Festival – Amar Ujala Hindi News Live – Interview:प्रख्यात गायिका इला अरुण बोलीं


Exclusive interview of singer Ila Arun who arrived to participate in International Film Festival

गायिका व अभिनेत्री इला अरुण
– फोटो : अमर उजाला

विस्तार


प्रख्यात गायिका व अभिनेत्री इला अरुण देहरादून में अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में हिस्सा लेने पहुंची थीं, अमर उजाला की संवाददाता खुशी रावत ने उनसे विशेष बातचीत की। प्रस्तुत हैं, बातचीत के प्रमुख अंश।

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सवाल- रघुनाथ के साथ साइकिल पर स्कूल जाते हुए राजस्थानी लोक गायन की शिक्षा लेने से लेकर विश्व पटल पर राजस्थानी लोक कला का प्रतिनिधित्व करने के अपने सफर को आप कैसे देखती हैं?

अच्छा सफर है, संगीतमय सफर है, रेतीला सफर है। राजस्थान में इस कदर कलाएं मौजूद हैं कि इससे प्रभावित हुए बिना शायद ही कोई रह सकता है। मुझे भगवान का ही आशीर्वाद रहा कि मैं उन लोगों को सुन पाई। भगवान ने मुझे अच्छे कान दिए, आवाज का पता नहीं। अच्छा सफर रहा, जैसे राजस्थान की जो आंधी होती है वह रेतीली होती है। मैं उन आंधियों में से हूं, जो संगीत के एक झोंके की तरह आई और उस समय अपना असर छोड़ गई। क्योंकि जो लोक संगीत है वह मुझे बहुत प्रिय है और मैंने उसको जिया है।

सवाल- अपनी पहली फिल्म मंडी के सीन में प्रसव पीड़ा से रोने वाली इला को क्या वह सीन करते वक्त रविंद्र मंच की भीड़ में पहली बार रोती हुई बच्ची का किरदार निभाने वाली इला याद आई?

बिल्कुल याद आई। अगर रविंद्र मंच के रंगमंच ने मुझे वह मौका ना दिया होता,विभिन्न पात्रों को मैंने जिया ना होता, मुझे उस मंच ने तराशा ना होता, अपने आप को अभिव्यक्त करने का मौका नहीं दिया होता तो कुछ नहीं हो पाता। जब प्रसव पीड़ा वाला दृश्य हुआ तो वह पीड़ा जीने के लिए जरूरी नहीं कि आपकी शादी हुई हो या आपके बच्चे हो। एक बिन ब्याही महिला होते हुए भी वह पात्र निभाना रंगमंच की वजह से ही संभव हो पाया।

सवाल- उत्तराखंड की लोक संस्कृति और लोकगीत बहुत संपन्न हैं। उत्तराखंड के लोकगीतों को भी फिल्म जगत में और बड़ा मंच मिले इसके लिए क्या किया जाना चाहिए?

फिल्म फेस्टिवल के उद्घाटन के मौके पर मौजूद उत्तराखंड के दो कैबिनेट मंत्रियों ने कहा, उत्तराखंड सरकार ने अपनी फिल्म नीति को बदला है। ऐसा रास्ता बनाया है, जो फिल्म निर्माता और कलाकारों के लिए सुविधाजनक है। लोगों का कहना है कि सरकार हमारे लिए कुछ नहीं करती। मैं सरकार का हिस्सा नहीं हूं। अगर अच्छी स्क्रिप्ट होगी, अच्छा निर्देशक होगा, अच्छा विषय होगा तो मुझे नहीं लगता कि सरकार आपको प्रोत्साहन नहीं देगी। सरकार को यह जरूर देखना पड़ेगा कि अगर इतनी सुविधाएं हैं तो एक ऐसा विभाग बनाया जाए, जो स्थानीय लोगों की प्रतिभा को पहचान सके और उन्हें मौका दिया जाए। उत्तराखंड का साहित्य,यहां के लोग और यहां की लोक संस्कृति बहुत समृद्ध और सशक्त है, कई ऐसे विषय हैं, जिन पर अच्छा काम हो सकता है।

सवाल- आप राजस्थान से निकल कर मुंबई तक पहुंचीं। आपका उत्तराखंड के स्थानीय कलाकारों के लिए क्या संदेश है?

मैं अपनी बात बताऊं तो मैंने सबसे पहले चिल्ड्रन फिल्म सोसाइटी के लिए काम करने की सोची कि मैं बाल विवाह पर फिल्म बनाऊं। जिसका नाम मैंने घेरा रखा था। मैंने अपनी आंखों के सामने टोकरियों में बच्चों का बाल विवाह होते हुए देखा है। मैं परंपराओं के घेरे की बात कर रही थी, लेकिन किन्हीं कारणवश नौकरशाही के घेरे में आ गई। बाद में उसी कहानी पर बालिका वधु जैसा धारावाहिक बना और बहुत पसंद भी किया गया। उत्तराखंड के किसी एक व्यक्ति को खेत वैसा ही दिखेगा जैसा किसी दूसरे को। लेकिन आप विषय को कितना पकड़ पाते हैं यह मायने रखता है। दो लोगों की विषय वस्तु उसे अलग-अलग तरह से प्रस्तुत करती है। इसलिए तमाम मुुश्किलों के बाद भी आप अपना काम करते रहें और आगे बढ़ते रहें।

सवाल- उत्तराखंड में फिल्मों के विकास के लिए बाहरी फिल्म निर्माताओं को कैसे आकर्षित किया जाए?

ताली दोनों हाथों से बजती है। अगर फिल्मकार के पास बेहतर विषयवस्तु है, जिससे राज्य में फिल्म निर्माण को बढ़ावा मिलता है तो स्थानीय फिल्म निर्माताओं को सरकार के पास प्रस्ताव लेकर जाना चाहिए। सिनेमा बनाने के लिए कौशल की जरूरत होती है। यदि आपके पास वह कौशल वह क्षमता है तो आगे बढ़िए। आपका अच्छा काम किसी को भी आकर्षित कर सकता है।

सवाल- आपने राजस्थान को कितना कुछ दिया है, क्या मानती हैं..?

जब आप अपने राज्य की लोक संस्कृति, लोकगीत को आगे बढ़ाते हैं तो कई अवरोध भी आते हैं। शुरूआत में लोगों ने बोला कि इला अरुण वैसे नहीं गाती, जैसा राजस्थान में रहने वाली ग्रामीण महिला गाती है। लेकिन मैंने राजस्थान की लोकसंस्कृति को विश्वपटल पर लाकर रख दिया है और तीन पीढियां उन गानों पर नाच रही हैं, जो मैंने गाएं हैं। यह मेरा मेरे प्रांत के लिए योगदान है और यही मेरी सफलता है।

सवाल- नोएडा में बनी फिल्म सिटी को वह माहौल नहीं मिला जो मुंबई फिल्म सिटी को मिला। इसे आप कैसे देखती है? उत्तराखंड में फिल्म निर्माण की संभावनाओं को लेकर फिल्म निर्माता क्या सोचते हैं?

यह तो ऐसा कहने जैसा है कि दादाजी को एक्सपोजर मिला मगर नवजात को नहीं मिल रहा है। लेकिन वक्त रहते उसे भी वो एक्सपोजर जरूर मिलेगा। लोग नोएडा फिल्म सिटी में जाकर काम कर रहे हैं। मुंबई के लोग कम बजट में काम करने के लिए नोएडा फिल्म सिटी जाकर काम कर रहें हैं। अभी यूपी में भी एक फिल्म सिटी बन रही है और उत्तराखंड में भी जरूर बनेगी। बाहर के लोगों की बातों में आकर आप भ्रमित न हों। जितना मुंबई या बाहर के लोग यहां आएंगे उतना ही यहां की प्रतिभाओं को भी मौका मिलेगा। अब सब ग्लोबल हो रहा है, इसलिए घबराएं नहीं। मैंने इतने लोक गीत गाएं हैं कि आज लोग राजस्थान आकर वहां के लोगों को सुनते हैं। जबकि पहले ऐसा नहीं होता था। हमारे लोगों को नहीं सुना जाता था। मैं अपने शो में स्थानीय लोगों को जरूर शामिल करती हूं। आप सभी लोग अपने काम में अपनी लोक संस्कृति को जरूर शामिल करें।

सवाल- आपने कभी उत्तराखंड के लोकगीतों की प्रस्तुति की…?

कई साल पहले शरद उत्सव में मैं नैनीताल आई थी और वहां 18 हजार से ज्यादा लोगों की भीड़ थी। वहां उस भीड़ पर काबू पाने के लिए वहां की डीएम ने लाठियां चलाईं। मैंने पहली बार डीएम को लाठी चलाते देखा और मैं बहुत खुश हुई। जब मैंने भीड़ का उस कदर पागलपन देखा तो मैंने अनुरोध किया कि मुझे यहां का एक स्थानीय गीत गाना है। मैंने वहां के पारंपरिक परिधान और नथ पहन कर वहा का स्थनीय गाना बेड़ु पाको बारामासा, गाना गाया। लोगों ने इसे खूब पसंद किया और मैं इस बात को कभी नहीं भूल सकती।



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