पहली मान्यता- पुराणों और हिंदू शास्त्रों के अनुसार, भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को भगवान श्री गणेश का जन्म हुआ था। शिव पुराण के अनुसार, माता पार्वती ने अपने शरीर पर लगे। हल्दी के उपटन से गणेश जी की मूर्ति बनाई। उसमें प्राण डाल दिए। फिर उस बालक को द्वार पर पहरा देने के लिए कहा। जब शिवजी माता पार्वती के स्नान स्थान पर प्रवेश करने लगे।
तब गणेश जी ने उन्हें रोक दिया। इस पर क्रोधित होकर, शिव जी ने त्रिशूल से उस बालक का सिर धड़ से, अलग कर दिया। तब माता पार्वती के क्रोधित होने पर, शिव जी ने उस बालक के शरीर पर, नवजात हाथी का सर लगा दिया। तभी से उन्हें गजानन कहा जाने लगा। तब से उनके जन्मोत्सव का त्यौहार, बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
दूसरी मान्यता- एक समय माता पार्वती और भगवान भोलेनाथ नर्मदा नदी के किनारे बैठे थे। तभी माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ से, समय व्यतीत करने के लिए, चौपड़ खेलने को कहा। भगवान महादेव चौपड़ खेलने के लिए, माता पार्वती के साथ तैयार हो गए। लेकिन इस खेल में वहाँ हार-जीत का फैसला करने वाला कोई अन्य नही था। इसलिए, भगवान शंकर ने नर्मदा के पास तिनके से, एक पुतले को बनाया। फिर इसकी प्राण प्रतिष्ठा कर, उससे कहा तुम चौपड़ में, हमारी हार-जीत का फैसला करना।
जब चौपड़ का खेल शुरू हुआ। तो संयोगवश, इस खेल में तीन बार माता पार्वती ही जीती। खेल समाप्त होने पर, जब बालक से परिणाम पूछा गया। तब बालक ने महादेव को ही विजयी बताया। यह सुनकर, माता पार्वती ने क्रोधित होकर। उस बालक को एक श्राप दे दिया। उन्होंने कहा तुम्हारा एक पैर टूट जाएगा और तुम कीचड़ में ही पड़े रहोगे। तब बालक ने अज्ञानता वश हुई भूल की माफी मांगी।
इस पर माता ने कहा। जब गणेश पूजन के लिए, नागकन्या आएंगी। तो उनके कहे अनुसार, तुम भी गणेश जी का पूजन करो। ऐसा करने से, तुम मुझे प्राप्त करोगे। यह कहकर, माता पार्वती भगवान भोलेनाथ के साथ कैलाश पर्वत पर चली गई। जब नागकन्याएं आई। तो बालक ने उनके बताए अनुसार, पूजन किया। जिससे प्रसन्न होकर श्री गणेश जी ने बालक से मनवांछित फल मांगने को कहा। फिर बालक ठीक होकर कैलाश पर्वत पहुंचा। लेकिन पार्वती जी उस समय भोलेनाथ से भी मुक्ति विमुख थी।
बालक ने महादेव को अपने ठीक होने की कथा सुनाई। तब भोलेनाथ ने माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए। 11 दिन तक श्री गणेश जी की पूजा की। तो इसके प्रभाव से, पार्वती जी वापस आ गई। महादेव ने माता पार्वती को, उन्हें मनाने के लिए किया गया, उपाय बताया। तो फिर माता पार्वती ने भी अपने रुष्ट पुत्र कार्तिकेय से मिलने के लिए यही उपाय किया। उन्होंने 11 दिनों तक श्री गणेश जी का पूजन किया। इसके प्रभाव से कार्तिकेय जी भी वापस आ गए।
कार्तिकेय जी ने यह व्रत विश्वामित्र जी को बताया। विश्वामित्र जी ने 11 दिन तक, गणेश जी को प्रसन्न किया। उन्होंने जन्म से मुक्त होकर, गणेश जी से ब्रह्म ऋषि होने का वरदान मांगा। गणेश जी ने उनकी यह मनोकामना पूर्ण की। इस प्रकार गणेश चतुर्थी का व्रत सभी मनोकामनाओ को पूर्ण करने वाला, व्रत भी कहा जाता है।

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