
केदारनाथ मार्ग
– फोटो : अमर उजाला
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गौरीकुंड-केदारनाथ पैदल मार्ग पर पग-पग पर खतरा बना है। कैंचीदार मोड़ और तीखी चढ़ाई के बीच भूस्खलन की दृष्टि से काफी संवेदनशील है। गौरीकुंड घोड़ा पड़ाव से छानी कैंप तक करीब 13 किमी मार्ग पर ऊपरी तरफ खड़ी पहाड़ी और नीचे की तरफ गहरी खाई और मंदाकिनी नदी बह रही है। यहां हल्की चूक जीवन पर भारी पड़ती है, बावजूद शासन-प्रशासन द्वारा सुरक्षा कार्य तो दूर योजना तक नहीं बनाई गई।
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केदारनाथ पहुंचने के लिए गौरीकुंड से 16 किमी की पैदल दूरी तय करनी होती है। गौरीकुंड घोड़ा पड़ाव पूरा चट्टानी है। चीरबासा पूरा भूस्खलन जोन है। जंगलचट्टी से भीमबली तक दो किमी का क्षेत्र जंगल से घिरा है, जिसमें ऊपरी तरफ से पहाड़ी भाग से पत्थर व मलबा गिरने का खतरा बना है। गौरीकुंड से भीमबली तक का रास्ता पुराना है, जो आपदा के बाद से काफी संवेदनशील है।
भूस्खलन और एवलांच जोन में होने के कारण यहां भू-धंसाव का खतरा बना है, बावजूद सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं है। यही नहीं लिनचोली से छानी कैंप के बीच तीन किमी क्षेत्र में पहाड़ी से पत्थर गिरने से बीते वर्षों में कई यात्रियों की मौत भी हो चुकी है। रामबाड़ा से बड़ी लिनचोली तक कैंचीदार मोड़ वाली चढ़ाई है। नए रास्ते के छह किमी क्षेत्र में छह हिमखंड जोन हैं, जो अलग से परेशानी का सबब बने हैं।
टीएफटी चट्टी, हथनी गदेरा, कुबेर गदेरा, भैरव गदेरा आदि हिमखंड जोन यात्रा के पहले पूरी तरह से सक्रिय हैं, जिससे आवाजाही में दिक्कत होती है। हैरत की बात यह है कि करोड़ों रुपये से केदारनाथ में पुनर्निर्माण कार्य किए जा रहे हैं, लेकिन पैदल मार्ग की सुरक्षा तो दूर आज तक शासन-प्रशासन स्तर से इसके लिए कार्ययोजना तक नहीं बन पाई है।
रुद्रा प्वाइंट से हेलिपैड तक भी नहीं सुरक्षित
पैदल मार्ग रुद्रा प्वाइंट से एमआई-26 हेलिपैड तक सीधा है। लगभग ढाई किमी इस हिस्से में घोड़ा पड़ाव भी है, लेकिन यह पूरा हिस्सा दो तरफा खतरे से घिरे हुआ है। निचली तरफ मंदाकिनी नदी के तेज बहाव से भू-कटाव हो रहा है, वहीं ऊपरी तरफ से लगी पहाड़ी का अधिकांश हिस्सा भूस्खलन की जद में है।

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