Ibhas Deputy Ms Dr Om Prakash Said Children Are Trapped In Maze Of Stress, Anxiety And Fear – Amar Ujala Hindi News Live

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बच्चों का बचपन हठ, तनाव, चिंता और डर के चक्रव्यूह में फंसा हुआ है। उनकी उल-जलूल की मांगों पर जिद बढ़ रही है। इसने छोटी उम्र में ही उनको तनाव व चिंता में डाल दिया है। हालात यह हैं कि सवाल पूछने के डर से वह स्कूल जाने में भी आना-कानी करते हैं। इसका खुलासा इबहास की टेलीमानस हेल्पलाइन पर आने वाली कॉलों के विश्लेषण से हुआ है। हर दिन तीन से चार कॉल बच्चों में इसी तरह के लक्षणों से जुड़ीं होती हैं। चिकित्सकों का कहना है कि घर के परिवेश में थोड़े बदलाव और सलाहकार की मदद से शुरुआती दौर में ही बच्चों को परेशानी से उबारना संभव है।
विशेषज्ञों की माने तो बच्चे के आसपास का वातावरण, परवरिश, खान-पान, देख-रेख, परिवार के सदस्यों के साथ तालमेल सहित दूसरे कारण बच्चों के व्यवहार में बदलाव लाते हैं। मेट्रो सिटी में रहने वाले बच्चों में इनके लक्षण ज्यादा है। हालांकि कुछ सालों से यह समस्या ग्रामीण क्षेत्रों में भी पैर पसार रही है। मानव व्यवहार और संबद्ध विज्ञान संस्थान (इबहास) के डिप्टी एमएस डॉ. ओम प्रकाश का कहना है कि पिछले ढाई साल से ऐसे बच्चों की कॉल आने की संख्या बढ़ी है। हर साल एक हजार से अधिक ऐसे कॉल आ रहे हैं। इन कॉल में अभिभावक मांग को लेकर बच्चों की जिद, पूरी न होने पर चिंता व तनाव और स्कूल जाने का डर की बात करते हैं।
ऐसे अभिभावकों को समझाया जाता है कि बच्चों के साथ सख्ती समस्या को बढ़ा सकती है। ऐसे में बच्चों की मनोदशा को जांच कर उसके अनुसार ही व्यवहार करना चाहिए। यदि समस्या फिर भी हाथ में नहीं आती तो चिकित्सक के पास सलाह व जांच के लिए आ सकते हैं। शुरुआती दौर में ही यदि बच्चों की समस्या को सुलझा लिया जाता है तो भविष्य में होने वाली मनोरोग की समस्या से बचा जा सकता है।
उम्र के अनुसार बच्चों में लक्षण
12 साल तक के बच्चे
– स्कूल जाने में आना-कानी करना
– पढ़ने में ध्यान न देना, किसी भी बात के लिए जिद करना
– मंदबुद्धि जैसा व्यवहार करना
12 से 14 साल के बच्चे
– छोटी-छोटी बात पर झगड़ा करना
– किसी भी वस्तु या बात के लिए जिद करना
– माता-पिता को परेशान करना
14 से 16 साल के बच्चे
– तनाव में होना
– किसी बात को लेकर चिंता करना
– खुद पर विश्वास न कर पाना
– माता और पिता से उलझ जाना
16 से 18 साल की उम्र
– ब्रेकअप होना
– गलत व्यवहार करना
अभिभावकों को दी जाती है ये सलाह
– बच्चों से प्यार से करें बात
– बच्चों को करें प्रोत्साहित
– सख्ती से न आए पेश

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