Kota Chambal Became Life-giving River For Crocodiles On Verge Of Extinction Positive Progress Seen In Breeding – Kota News
घड़ियालों का पसंदीदा ठिकाना बनी चंबल
विश्वभर में घड़ियालों की संख्या महज़ 2500 के आसपास रह गई है, जिनमें से करीब 80 प्रतिशत भारत में पाए जाते हैं। खासकर राजस्थान के कोटा जिले की चंबल नदी इनके लिए सबसे मुफीद स्थान मानी जाती है। मगरमच्छों से तुलना के बावजूद, घड़ियालों की जैविक संरचना, व्यवहार और प्रजनन प्रक्रिया बिलकुल अलग होती है। यह भी एक तथ्य है कि इनकी उपस्थिति अब अत्यंत दुर्लभ हो चुकी है।
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मार्च में शुरू होता है प्रजनन, नदी किनारे बने 25 घरौंदे
इटावा रेंज के नाका प्रभारी बुधराम जाट के अनुसार, मादा घड़ियाल मार्च माह में प्रजनन करती है। पहले मिट्टी का सुरक्षित घरौंदा बनाकर वह उसमें अंडे देती है, जिन्हें करीब दो माह तक उसी घरौंदे में छिपाकर रखा जाता है। इस बार चंबल नदी किनारे करीब 15 मादा घड़ियालों ने 25 घरौंदे बनाए हैं। हर मादा घड़ियाल 30 से 50 अंडे देती है। इनमें से 40 से 45 अंडों से बच्चे निकल चुके हैं और नदी में तैरते भी देखे जा चुके हैं।
मादा घड़ियाल अपने अंडों की सुरक्षा के लिए मिट्टी और रेत के मिश्रण से टापू जैसी संरचना भी बनाती है, ताकि जंगली जानवर इन अंडों को नुकसान न पहुंचा सकें। यह जैविक सजगता इस प्रजाति के लिए एक अनोखा संरक्षण व्यवहार है।
चंबल-पार्वती संगम बना घड़ियालों का संरक्षित क्षेत्र
इटावा रेंज में चंबल और पार्वती नदियों का संगम होता है, जहां चंबल घड़ियाल सेंक्चुरी स्थित है। पिछले कुछ वर्षों में यहां घड़ियालों की संख्या स्थिर या घटती हुई दिखाई दी थी, जिससे इनकी प्रजाति के अस्तित्व पर संकट गहराता जा रहा था। लेकिन इस साल प्रजनन में आई तेजी ने उम्मीदें फिर से जगा दी हैं।
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वन विभाग ने इन नन्हें घड़ियालों की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए नदी किनारे तारबंदी की है और उनकी निगरानी लगातार की जा रही है। यह कदम यह सुनिश्चित करता है कि कोई शिकारी या प्राकृतिक संकट इन बच्चों को नुकसान न पहुंचा सके।
रेड लिस्ट में दर्ज, संरक्षण की सख्त जरूरत
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) ने घड़ियाल को रेड लिस्ट में शामिल किया है, जिसमें उन प्रजातियों को रखा जाता है जो विलुप्ति के गंभीर खतरे में हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, घड़ियाल अब केवल भारत और नेपाल में ही पाए जाते हैं। भारत में भी राजस्थान का कोटा और मध्यप्रदेश जैसे सीमावर्ती इलाके, जहां चंबल बहती है, इनके प्रमुख आवास स्थल रह गए हैं। इसीलिए चंबल नदी का संरक्षण सिर्फ एक पारिस्थितिक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि घड़ियालों के अस्तित्व की अंतिम उम्मीद बन गया है।

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