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महाराष्ट्र चुनाव 2024
– फोटो : अमर उजाला ग्राफिक्स
विस्तार
महाराष्ट्र में वोट जिहाद बनाम धर्मयुद्ध…एक हैं तो सेफ हैं…और जाति गणना के नारे-वादे के बीच जंगी मुकाबला है। महाराष्ट्र की सियासत किस करवट बैठेगी, इस चुनाव में कौन सा फैक्टर काम करेगा…किन जातीय समीकरणों का गणित चलेगा…मराठवाड़ा में क्या होगा…क्या कांग्रेस विदर्भ में फिर कमाल करेगी…मुंबई की जंग कौन जीतेगा…इसका फैसला जनता बुधवार को विधानसभा चुनाव के लिए होने वाले मतदान में कर देगी। 23 नवंबर को वोटों की गिनती के साथ पता चलेगा कि सियासत का बाजीगर कौन है। वैसे, महाराष्ट्र का चुनाव जातीय समीकरण के इर्द-गिर्द सिमटा रहा है, जो सत्ता बनाने और बिगाड़ने में निर्णायक साबित होगा। यह चुनाव दोनों शिवसेना और दोनों एनसीपी की अग्निपरीक्षा है, तो दोनों गठबंधन महायुति और महा विकास आघाड़ी (एमवीए) की मुख्य धुरी बनी भाजपा और कांग्रेस की राजनीतिक साख का भी सवाल है। इसलिए दोनों में सबसे बड़ा दल बनकर उभरने की होड़ है।
महाराष्ट्र छह क्षेत्र में बंटा है और हर क्षेत्र का अपना अलग सियासी मिजाज है। छह महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में विपक्षी गठबंधन महाविकास आघाडी ने संविधान बदलने का अचूक बाण चलाया था, जिससे भाजपानीत सत्ताधारी गठबंधन महायुति मूर्छित हो गई थी। उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र में भाजपा को तगड़ा झटका लगा था। हालांकि हरियाणा की जीत से भाजपा जोश से सराबोर है, तो कांग्रेस वहां की हार का हिसाब महाराष्ट्र से चुकाना चाहती है। हरियाणा में कांग्रेस अकेली थी, लेकिन महाराष्ट्र में शरद पवार के रुप में मराठा छत्रप है, तो उद्धव ठाकरे की शिवसेना भी है। वहीं, भाजपा के साथ शिवसेना (शिंदे) और एनसीपी (अजीत गुट) है। दोनों ही गठबंधनों ने चुनाव के अखाड़े में जमकर अभ्यास किया है और एक-दूसरे को पटक देने का दावा कर रहे हैं।
योद्धा पुराने, चुनौतियां नई
महाराष्ट्र में योद्धा पुराने हैं, लेकिन चुनौतियां नई हैं। महायुति और आघाड़ी के कई दिग्गज नेता चुनाव की दिशा का रुख मोड़ने का माद्दा रखते हैं, लेकिन चुनौतियां भी कम नही हैं। केंद्र में तीसरी बार सत्ता मिलने के बाद भाजपा शत प्रतिशत सफलता का मंत्र जप रही है, लेकिन जातीय समीकरण साधने की बड़ी चुनौती है। वहीं, बंटी हुई शिवसेना और एनसीपी के सामने अस्तित्व बचाने की लड़ाई है। बुजुर्ग शरद पवार फिर किंगमेकर बनने का ख्वाब देख रहे है, लेकिन भतीजे अजीत पवार ने भी पूरा जोर लगाया है। शिवसेना के लिए कोकण व मुंबई सबसे अहम है, जहां एकनाथ शिंदे ने उद्धव के खिलाफ धोबी पछाड़ वाला दांव चला है। करीब 47 सीटों पर दोनो शिवसेना आमने-सामने हैं।
288 विधानसभा क्षेत्रों में किसके कितने उम्मीदवार
महायुति
भाजपा 149
शिवसेना (शिंदे) 81
एनसीपी (अजीत) 59
महाविकास आघाड़ी
कांग्रेस 101
शिवसेना (उद्धव) 95
एनसीपी (शरद) 86
विदर्भ : हाथी की चाल और वंचित की धार पर निगाहें
संघ मुख्यालय नागपुर और पूरे विदर्भ पर सबकी निगाहें हैं। एमवीए खासतौर से कांग्रेस को विदर्भ में लोकसभा के नतीजे दोहराने की उम्मीद है। लेकिन हाथी की चाल और प्रकाश आंबेडकर की वंचित विकास आघाड़ी खेल बिगाड़ सकती है। विदर्भ की तकरीबन सभी सीटों पर बसपा ने प्रत्याशी उतारे हैं। वहीं, प्रकाश आंबेडकर के उम्मीदवार भी कांग्रेसी वोटबैंक में सेंध लगाएंगे। भाजपा ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री से लेकर संगठन मंत्री तक सभी को विदर्भ के मैदान में उतारा है। यहां मुख्य लड़ाई भाजपा और कांग्रेस के बीच है, जहां से उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का राजनीतिक भविष्य तय होगा। लेकिन, विदर्भ में जातिगत समीकरण साधने वाली पार्टी ही मुंबई की ओर प्रस्थान कर सकेगी।
पश्चिम महाराष्ट्र : महायुति का दम और पवार की पावर
समृद्ध पश्चिम महाराष्ट्र भारत के कुल चीनी उत्पादन में 32 प्रतिशत यानी करीब एक तिहाई का योगदान देता है। यहां की राजनीति शुगर लॉबी के इर्द गिर्द घूमती है, जिसमें भाजपा ने सेंधमारी की है। एमवीए शरद पवार के भरोसे है, जबकि महायुति लाडकी बहना योजना से चमत्कार की उम्मीद कर रही है। वहीं, एक हैं तो सेफ हैं और बंटेंगे तो कटेंगे के नारे का भी असर है। मराठा वर्चस्व वाले इस क्षेत्र में मराठा, धनगर, मुस्लिम और दलित मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक हैं। पुणे पश्चिम महाराष्ट्र का सबसे बड़ा जिला है, जहां विस की 21 सीटें हैं। पवार परिवार की राजनीति का गढ़ भी है। सतारा में पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण और सांगली में वसंतदादा पटिल के परिवार के रसूख की भी लड़ाई है।
उ. महाराष्ट्र : रुख बदल सकता है माधव फैक्टर
अंगूर, प्याज, गन्ना व कपास के लिए प्रसिद्ध उत्तर महाराष्ट्र में महायुति और खासतौर से भाजपा का वर्चस्व है। एनसीपी के छगन भुजबल से लेकर भाजपा के गिरीश महाजन, राधाकृष्ण विखे पाटिल व विजय कुमार गावित महायुति के बड़े नेता हैं। इस क्षेत्र में माली, धनगर और बंजारा यानि माधव समीकरण सर्वाधिक प्रभावी है, जो भाजपा का वोटबैंक माना जाता है। यह समीकरण रुख बदलने का माद्दा रखता है। लेकिन, मनोज जरांगे पाटील का मराठा फैक्टर भी कम प्रभावी नहीं है। वहीं, बागियों व निर्दलीयों ने दिग्गजों की नाक में दम कर रखा है। यहां 292 निर्दल प्रत्याशी मैदान में हैं। उत्तर महाराष्ट्र की 47 विधानसभा सीटों पर एमवीए और महायुति दोनों में कांटे की लड़ाई है।
मुंबई : दांव पर ठाकरे की प्रतिष्ठा, धारावी बना मुद्दा
देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के रण में शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे और उनके चचेरे भाई मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे की प्रतिष्ठा दांव पर है। उद्धव के पुत्र आदित्य ठाकरे दक्षिण मुंबई के वरली और राज ठाकरे के पुत्र अमित ठाकरे मराठी व मुस्लिम बहुल सीट माहिम से मैदान में हैं। आदित्य ठाकरे के सामने शिवसेना (शिंदे) ने राज्यसभा सांसद मिलिंद देवड़ा को मैदान में उतारकर उनकी चुनावी राह में कांटा बो दिया है। वहीं, राज ठाकरे के पुत्र अमित ठाकरे दोनों शिवसेना के बीच त्रिकोणीय लड़ाई में फंसे है। धारावी झुग्गी बस्ती पुनर्विकास प्रोजेक्ट चुनावी मुद्दा बन गया है। इस मुद्दे पर राहुल गांधी ने भी उद्धव के सुर में सुर मिलाया है।
मराठवाड़ा : महिला और मराठा तय करेंगे भविष्य
यूरोप के कई देशों के क्षेत्रफल से बड़ा मराठवाड़ा सबसे अहम क्षेत्र है, जहां मराठा फैक्टर की अनदेखी नहीं की जा सकती। एमवीए मनोज जरांगे पाटील के मराठा आंदोलन के दम पर यहां की लोकसभा की 8 में से 7 सीटें जीत चुकी है। वहीं, 46 विधानसभा सीटों पर इसके प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता। इसलिए, एमवीए मराठवाड़ा में अपनी जीत पक्की मान रही है। लेकिन महायुति ने भी पिछड़ी जातियों की गोलबंदी और लाडकी बहना के दम पर एमवीए को मात देने की रणनीति को अंजाम तक पहुंचाया है।
मराठवाड़ा में सबसे अधिक राजनीतिक घेरेबंदी लातूर में है, जहां कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे पूर्व सीएम विलासराव देशमुख, पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल और पूर्व सीएम संभाजी निलंगेकर परिवार की प्रतिष्ठा दांव पर है। वहीं, बीड में मुंडे परिवार और जालना में रावसाहेब दानवे का कुनबा जमीन बचाने की लड़ाई लड़ रहा हैं। औरंगाबाद में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने वजूद कायम रखने के लिए पूरी ताकत झोंकी है।
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