Mp High Court Trade Union Kept Its Name In English Hc Admitted There Is Possibility Of Cheating Public Members – Jabalpur News

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट, जबलपुर
– फोटो : अमर उजाला
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मध्यप्रदेश हाईकोर्ट जस्टिस जीएस अहलुवालिया की एकलपीठ ने माना कि ट्रेड यूनियन के मिलते जुलते नाम से जनता व सदस्यों को धोखा की संभावना है। रजिस्ट्रार को इस बात पर विचार करना चाहिए था कि दो नामों के बीच समानता के कारण कौन से व्यक्ति भ्रमित हो सकते हैं और उनके नाम में समानता है। एलकपीठ ने रजिस्ट्रार को निर्देशित किया है कि एमपी वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के पंजीयन पर पुनर्विचार करें।
मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया था कि रजिस्टार ट्रेड यूनियन ने एमपी वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के पंजीयन को मान्यता प्रदान की है। जो उनके संगठन का अंग्रेजी अनुवाद है। वर्ष 1998 में कुछ व्यक्तियों ने वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के नाम से एक बैठक बुलाने का प्रयास किया था, जिस पर सिविल कोर्ट द्वारा अस्थायी रूप से रोक लगा दी थी। याचिकाकर्ता द्वारा आपत्ति पेश करने पर रजिस्ट्रार द्वारा वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन का पंजीकरण खारिज कर दिया गया था।
इसके बाद पुनः एमपी वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के नाम से रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन किया गया था। याकिचाकर्ता की आपत्ति के बावजूद भी रजिस्टार ने यूनियन के नाम को पंजीकृत करने के आदेश जारी कर दिए, जिसके कारण उक्त याचिका दायर की गयी है। एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन रजिस्टार के आदेश को निरस्त करते हुए कहा है कि पुनर्विचार के आदेश जारी किये हैं। एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि याचिकाकर्ता संगठन के सदस्यों के साथ रजिस्टार बैठक कर उनकी आपत्तियों पर विचार करें। याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता संजय वर्मा ने पैरवी की।
नया मास्टर प्लान लागू नहीं किये जाने को चुनौती
तीन साल का समय गुजर जाने के बावजूद भी जबलपुर में नया मास्टर प्लान लागू नहीं किये जाने को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गयी थी। हाईकोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा व जस्टिस विनय सराफ की युगलपीठ ने याचिका की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। युगलपीठ ने तीन से लंबित मास्टर प्लान की स्टेटस रिपोर्ट भी तलब की है।
नागरिक उपभोक्ता मार्ग दर्शक मंच के अध्यक्ष डॉ. पीजी नाजपांडे व रजत भार्गव की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि जबलपुर का पुराना मास्टर प्लान 2021 में समाप्त हो चुका है। शहर के लिए नया मास्टर प्लान तैयार कने में राज्य सरकार गंभीर नहीं है। नगर तथा ग्राम निवेश की धारा 18,19 में मास्टर प्लान का प्रावधान दिया है। पुराने मास्टर प्लान को समाप्त हुए तीन वर्षो से अधिक का समय गुजर गया है, परंतु राज्य सरकार ने नया मास्टर प्लान लागू नहीं किया। साल 2014 में 62 ग्राम जो कि ग्रामीण क्षेत्र में आते थे, उन्हें नगर निगम की सीमा में शामिल किया गया है। नगर निगम के शामिल किये गये 62 गांव के लिए कोई भी मास्टर प्लान नहीं है। दलील दी गई कि सरकार मास्टर प्लान को लेकर हीला हवाली कर रही है।
सरकार की तरफ से युगलपीठ को बताया गया कि नया मास्टर प्लान पब्लिश हो चुका है और लोगों से आपत्तियां आमंत्रित की गई है, जिस पर न्यायालय ने मामले की स्टेटस रिपोर्ट पेश करने के साथ ही अनावेदकों को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने के निर्देश दिये हैं।
टेलीकाम फैक्ट्री की जमीन को ग्रीन बेल्ट में किया जाये शामिल
याचिकाकर्ता ने मास्टर प्लान के साथ-साथ हाईकोर्ट से यह भी मांग की है कि जबलपुर की टेलीकॉम फैक्ट्री जो कि करीब 70 एकड़ में फैली है, जिसके बंद होने के बाद यह जमीन जंगल से भरा गया है। यहां पर छोटे-छोटे जीव जंतु सहित कई प्रजाति के पक्षी भी है। बीच शहर में स्थित जंगल की हरियाली देखते ही बनती है। यही कारण है कि लोग सुबह-शाम यहां घूमने आते है। स्थानीय लोगों ने 20 हजार पेड़ों वाले जंगल को बचाने के लिए आंदोलन भी किया। याचिका में कहा कि टेलीकॉम फैक्ट्री की जमीन को मास्टर प्लान के ग्रीन बेल्ट में शामिल किया जाये। जिस पर युगलपीठ ने टेलीकॉम फैक्ट्री की जमीन को ग्रीन बेल्ट में शामिल करने को लेकर सुझाव पर विचार करने के निर्देश दिए है। याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता दिनेष उपाध्याय ने पैरवी की।
हाईकोर्ट ने स्टेट्स रिपोर्ट के साथ ही सरकार से मांगा जवाब
तीन साल का समय गुजर जाने के बावजूद भी जबलपुर में नया मास्टर प्लान लागू नहीं किये जाने को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गयी थी। हाईकोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा व जस्टिस विनय सराफ की युगलपीठ ने याचिका की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। युगलपीठ ने तीन से लंबित मास्टर प्लान की स्टेटस रिपोर्ट भी तलब की है।
नागरिक उपभोक्ता मार्ग दर्शक मंच के अध्यक्ष डॉ. पीजी नाजपांडे व रजत भार्गव की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि जबलपुर का पुराना मास्टर प्लान 2021 में समाप्त हो चुका है। षहर के लिए नया मास्टर प्लान तैयार कने में राज्य सरकार गंभीर नहीं है। नगर तथा ग्राम निवेश की धारा 18,19 में मास्टर प्लान का प्रावधान दिया है। पुराने मास्टर प्लान को समाप्त हुए तीन वर्षो से अधिक का समय गुजर गया है परंतु राज्य सरकार ने नया मास्टर प्लान लागू नहीं किया। साल 2014 में 62 ग्राम जो कि ग्रामीण क्षेत्र में आते थे,उन्हें नगर निगम की सीमा में शामिल किया गया है। नगर निगम कें षामिल किये गये 62 गांव के लिए कोई भी मास्टर प्लान नहीं है। दलील दी गई कि सरकार मास्टर प्लान को लेकर हीला हवाली कर रही है।
सरकार की की तरफ से युगलपीठ को बताया गया कि नया मास्टर प्लान पब्लिश हो चुका है और लोगों से आपत्तियां आमंत्रित की गई है। जिस पर न्यायालय ने मामले की स्टेटस रिपोर्ट पेश करने के साथ ही अनावेदकों को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने के निर्देश दिये है।
हाईकोर्ट ने तलब की स्टेट्स रिपोर्ट
बरगी बांध से रीवा तक पानी पहुॅचाने के लिए टनल का निर्माण किया जाना था। जिसके लिए साल 2008 में टनल निर्माण का टेंडर जारी किया गया था। टेंडर षर्तो के अनुसार अनुसार टनल का निर्माण 40 माह में पूरा होना था। डेढ दषक गुजर जाने के बावजूद भी टनल का निर्माण पूर्ण नहीं हो पाया है। हाईकोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस संचीव सचदेवा तथा जस्टिस विनय सराफ की युगलपीठ ने नोटिस जारी करते हुए स्टेट्स रिपोर्ट पेष करने के निर्देष जारी किये है।
कटनी निवासी दिव्यांशु मिश्रा की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने वर्ष 2008 में बरगी परियोजना की दायीं तट नहर में स्लीमनाबाद के समीप लगभग 12 किलोमीटर लंबाई की टनल बनाने का प्रस्ताव पारित किया। प्राधिकरण ने टेंडर में यह शर्त रखी कि इसका निर्माण 40 माह यानि 25 जुलाई 2011 में पूरा करना है। आवेदक की ओर से कहा गया कि पंद्रह साल का लंबा समय बीतने के बावजूद टनल का काम अभी भी अधूरा है। वर्तमान में करीब 2 किमी की टनल बनाना शेष है। आवेदक की ओर से कहा गया कि पूर्व में टनल का यह प्रोजेक्ट 8 सौ करोड़ रुपए का था। इस मुद्दे को विधानसभा में उठाया गया।
विधानसभा में मुख्यमंत्री ने अपने जवाब में बताया कि अभी तक इस प्रोजेक्ट के तहत ठेकेदार को साढ़े चौदह करोड़ का भुगतान किया जा चुका है। इतना ही नहीं इन वर्षों में प्रोजेक्ट के तहत कई अन्य टेंडर जारी कर अतिरिक्त भुगतान भी किया गया, जोकि अनुचित है। सुनवाई पश्चात् न्यायालय ने मामले को गंभीरता से लेते हुए चार सप्ताह में स्टेट्स रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिये है। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता वरुण तन्खा ने पक्ष रखा।

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