Navratri 2024: Maa Chhinnamastika Temple Built In Muzaffarpur On Lines Of Rajrappa In Jharkhand – Amar Ujala Hindi News Live

मां छिन्नमस्तिका देवी मंदिर मुजफ्फरपुर
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
मुजफ्फरपुर जिले में स्थित मां छिन्नमस्तिका मंदिर, झारखंड के रामगढ़ जिले में स्थित प्रसिद्ध रजरप्पा छिन्नमस्तिका मंदिर की तर्ज पर बना है। यह मंदिर न केवल आस्था का एक प्रमुख केंद्र है, बल्कि तंत्र और विज्ञान पद्धति पर आधारित एक अद्वितीय मंदिर भी है। साल भर यहां भक्तों का तांता लगा रहता है और विशेषकर नवरात्र के अवसर पर यहां श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है। मुजफ्फरपुर जिले के कांटी प्रखंड में स्थित इस शक्तिपीठ को राज्य का पहला और देश का दूसरा छिन्नमस्तिका मंदिर माना जाता है।
मंदिर का इतिहास और निर्माण
जानकारी के मुताबिक, यह मंदिर 2003 में प्राण-प्रतिष्ठा के साथ स्थापित किया गया था, जिसके निर्माण की प्रेरणा महात्मा आनंद प्रियदर्शी को माता छिन्नमस्तिका से मिली। उनके दीर्घकालीन तप और साधना के बाद माता ने उन्हें यह मंदिर बनाने की प्रेरणा दी, ताकि उत्तर बिहार के लोग बिना झारखंड स्थित रजरप्पा गए भी मां के दर्शन कर सकें। 11 जून 2000 को इस मंदिर की भूमि पूजन की शुरुआत हुई और तीन वर्षों में यह भव्य मंदिर बनकर तैयार हो गया। मंदिर में रजरप्पा से लाया गया त्रिशूल भी स्थापित है, जिसका दर्शन विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
तंत्र और विज्ञान पर आधारित अनोखा मंदिर
कहा जाता है कि मां छिन्नमस्तिका का यह मंदिर पूरी तरह तंत्र और विज्ञान पद्धति पर आधारित है। मंदिर का आंतरिक और बाह्य ढांचा नवग्रहों और पंच तत्वों के प्रतीकात्मक आधार पर बनाया गया है। मंदिर के गुंबद नवग्रहों का प्रतीक हैं, जबकि इसके ऊपर की आठ सीढ़ियां पंच तत्वों और तीन गुणों की प्रतीक मानी जाती हैं। तंत्र और साधना में रुचि रखने वाले साधक यहां विशेष साधना और तंत्र सिद्धि के लिए आते हैं।
विशेष पूजा और नारियल का चढ़ावा
यहां देवी का वाम स्वरूप और बलिप्रधान होने के बावजूद वैष्णव पद्धति से पूजा की जाती है। सबसे खास बात यह है कि इस शक्तिपीठ में किसी प्रकार की बलि नहीं दी जाती। माता को चढ़ावे के रूप में नारियल अर्पित किया जाता है, जो यहां की विशिष्ट परंपरा है। मंदिर में साल भर भक्तों का आगमन होता रहता है और नवरात्रि के दौरान यहां भव्य मेला लगता है।
दश महाविद्या में प्रमुख मां छिन्नमस्तिका का स्वरूप
हिंदू देवी शास्त्रों के अनुसार, मां छिन्नमस्तिका दश महाविद्याओं में प्रमुख हैं। मान्यता है कि सृष्टि की उत्पत्ति के समय देवी ने अपना सिर काटकर दोनों योगिनियों को खून पिलाया, जिससे संसार को एक महान विनाश से बचाया जा सका। यही कारण है कि महर्षि यमदाग्नि, शुक्राचार्य और परशुराम जैसे महान उपासक मां छिन्नमस्तिका के अनुयायी रहे हैं। मंदिर में हर अमावस्या को विशेष निशा पूजा का आयोजन किया जाता है, जिसका धार्मिक महत्व है।
मंदिर के प्रधान पुजारी मुकेश प्रियदर्शी ने बताया कि इस मंदिर की स्थापना महात्मा आनंद प्रियदर्शी द्वारा की गई थी, जिन्होंने मां छिन्नमस्तिका की दीर्घकालीन साधना के बाद यह स्थान चुना। पुजारी ने बताया कि माता की प्रेरणा से इस मंदिर का निर्माण किया गया, ताकि बिहार के भक्तों को रजरप्पा जाने की आवश्यकता न हो। आज यह शक्तिपीठ पूरे उत्तर बिहार में आस्था का केंद्र बना हुआ है और यहां आने वाले श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए मां छिन्नमस्तिका का दर्शन और पूजन करते हैं।
आस्था और परंपरा का प्रतीक
यह शक्तिपीठ न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके तंत्र साधना और विशेष पूजा-पद्धति ने इसे अन्य मंदिरों से अलग पहचान दिलाई है। श्रद्धालुओं की मान्यता है कि यहां मां छिन्नमस्तिका के दर्शन मात्र से ही उनके जीवन के बड़े से बड़े कष्ट समाप्त हो जाते हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

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