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Problem Of Stubble Will Be Solved By Microbes In Haryana – Amar Ujala Hindi News Live


problem of stubble will be solved by microbes In Haryana

खेतों में जलाई जा रही पराली
– फोटो : अमर उजाला

विस्तार


पराली को खेत में ही डी कंपोज करने की दिशा में माइक्रोबायोलॉजी अहम भूमिका निभाएगी। फिलहाल बाजार में उपलब्ध डी कंपोजर इसे पूरी तरह से खाद में नहीं बदल पाता और इस प्रक्रिया में 3 से 4 सप्ताह का समय लगता है। माइक्रोबायोलाॅजिस्ट अब इसका पूरा समाधान निकालने का प्रयास कर रहे हैं। पराली को खाद बनाने की प्रक्रिया एक सप्ताह से दो सप्ताह के बीच पूरी हो जाए, इस पर भी काम चल रहा है।

फफूंदी और जीवाणु के मिश्रण का उपयोग कर डी कंपोजर बनाया जा रहा है। बाजार में इस समय उपलब्ध डी कंपोजर पराली के दो तत्वों को ही नष्ट कर पाता है। तीसरे सबसे ठोस हिस्से लिग्निन को नहीं तोड़ पाता। माइक्रोबायोलाॅजिस्ट अब ऐसे सूक्ष्म जीवों की पहचान का प्रयास कर रहे हैं जो लिग्निन को तोड़ सके। ऐसे सूक्ष्म जीव की पहचान के बाद उसे डी कंपोजर में डाला जाएगा। इसके बाद इसे किसानों के लिए उपलब्ध कराया जाएा। हिसार के जीजेयू में चल रहे माइक्रोबायोलाॅजी की तीन दिवसीय इंटरनेशनल काॅन्फ्रेंस में पराली प्रबंधन पर भी मंथन हुआ।

एकेडमी ऑफ माइक्रोबायोलाॅजिकल साइंसेज के अध्यक्ष प्रो. आरसी कुहाड़ ने कहा कि हरियाणा, पंजाब, उत्तरप्रदेश के बड़े हिस्से में पराली एक बहुत बड़ी समस्या बनी हुई है। केंद्र सरकार पराली प्रबंधन के लिए हर साल करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। इसके बाद भी किसानों को इसका पूरा समाधान नहीं मिल पा रहा। पराली को उठाकर उसे खेत से हटाना या किसी दूसरे स्थान पर भेजना व्यावहारिक नहीं होता। ऐसा करना किसानों के लिए आर्थिक तौर पर भी काफी महंगा पड़ जाता है।

किसानों की पराली को अगर खेत में ही नष्ट कर मिट्टी में मिलाकर उसे खाद का रूप दे दिया जाए तो यह सबसे अच्छा विकल्प हो सकता है। पराली में तीन मुख्य भाग होते हैं। इसमें सैलो, लैनी सैलो और लिग्निन होते हैं। फिलहाल किसानों को उपलब्ध कराया जा रहा डी कंपोजर सैलो, लैनी सैलो को नष्ट करता है लेकिन लिग्निन पर उतना प्रभावी नहीं हो पाता। इसीलिए माइक्रो बायोलाॅजिस्ट शोध कर रहे हैं।

लिग्निन को तोड़ने वाले सूक्ष्म जीवों की पहचान कर उसे डी कंपोजर में डाला जाए। उन्होंने बताया कि भारतीय कृषि विज्ञान अनुसंधान के सूक्ष्म जीव विभाग की मुख्य वैज्ञानिक डॉ. लवलीन शुक्ला इस पर काम कर रहीं हैं। जल्द ही इसकेअच्छे परिणाम मिलने की संभावना है।

90 फीसदी सूक्ष्म जीव हमारे शोध से बाहर

प्रो. आरसी कुहाड़ ने कहा कि धरती पर करीब एक ट्रिलियन माइक्रो वेब हैं। वैज्ञानिक इनमें से 10 प्रतिशत पर ही शोध कर पाए हैं। हमें 90 प्रतिशत दूसरे सूक्ष्म जीवों पर काम करने की जरूरत है। शरीर के हर हिस्से में माइक्रोबायोलाॅजी काम करती है। सूक्ष्म जीव हमें बीमार भी करते हैं और हमें बीमारियों से बचाने वाले भी सूक्ष्म जीव हैं। सूक्ष्म जीव के बिना पृथ्वी पर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। हमारे मुंह में भी हर समय लाखों सूक्ष्म जीव रहते हैं। नए युवा वैज्ञानिकों को शोध के क्षेत्र में अधिक काम करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।

 



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