Sanjauli Masjid Case Decision Came After 14 Years, 38 Notices 46 Hearings Know Everything In Detail – Amar Ujala Hindi News Live

शिमला के संजौली में मस्जिद के रास्ते पर की गई बैरिकेडिंग और तैनात पुलिस जवान।
– फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
विस्तार
संजौली मस्जिद में अवैध निर्माण से जुड़े मामले पर करीब 14 साल बाद शनिवार को नगर निगम आयुक्त कोर्ट ने फैसला सुनाया। साल 2010 से शुरू हुए इस मामले में अवैध निर्माण रोकने को लेकर कुल 38 नोटिस नगर निगम ने जारी किए।
इनमें 27 नोटिस अकेले सलीम नाम के व्यक्ति को भेजे गए, जो साल 2016 तक नगर निगम की सुनवाई में आता रहा। फिर अचानक गायब हो गया। सुनवाई में न आने पर 15 जून 2016 को कोर्ट ने इसे एक्स पार्टी घोषित कर दिया। वहीं, वक्फ बोर्ड को भी इस मामले में 11 नोटिस जारी किए गए। साल 2010 से लेकर 2024 तक इस मामले में कुल 45 पेशियां हुईं। अब 46वीं पेशी में कोर्ट ने अवैध निर्माण गिराने का आदेश सुना दिया।
मस्जिद में अवैध निर्माण होने की शिकायत 31 मार्च 2010 को नगर निगम को मिली थी। इस पर 3 मई 2010 को निगम ने पहला नोटिस जारी कर काम रोकने के आदेश दिए। यह नोटिस सलीम को जारी किया गया था। वहीं, दो सितंबर 2010 को वक्फ बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी को भी नोटिस जारी हुआ था। 2011 में भी कई नोटिस जारी किए गए। 2012 तक दो मंजिला मस्जिद बनी थी। कमेटी ने यहां और निर्माण के लिए नक्शा पास करने के लिए आवेदन किया। लेकिन खामियों के चलते नगर निगम ने यह नक्शा लौटा दिया। इसके बाद कमेटी ने बिना नक्शा पास करवाए ही साल 2018 तक यहां पांच मंजिला मस्जिद खड़ी कर दी।
चार पेशियों में ही आयुक्त अत्री ने सुनाया फैसला
इस मामले में कुल 46 बार आयुक्त कोर्ट में सुनवाई हुई। हर बार फैसला आगे टलता गया। वहीं, नगर निगम के वर्तमान आयुक्त भूपेंद्र अत्री के पास पिछले एक साल की अवधि में इस मामले पर कुल चार बार ही सुनवाई हुई। चौथी ही सुनवाई में आयुक्त ने सभी पहलुओं को जानने के बाद अवैध निर्माण गिराने का फैसला सुना दिया। इस फैसले से मस्जिद कमेटी समेत अन्य पक्ष भी संतुष्ट हैं। अत्री की तैनाती के बाद शहर में अवैध निर्माण से जुड़े करीब 1400 मामलों की सुनवाई में तेजी आई है। इससे अवैध निर्माण के मामलों में भी कमी आई है।
मस्जिद की जमीन पर भी अपने-अपने दावे
संजौली मस्जिद जिस जमीन पर बनी है, उस पर भी अलग-अलग दावे हो रहे हैं। शनिवार को आयुक्त कोर्ट में सुनवाई के दौरान रेजीडेंट वेलफेयर सोसायटी ने रिकॉर्ड पेश करते हुए दावा किया कि जिस जगह मस्जिद बनी है, वह सरकारी जमीन है और कब्जा अहल-ए-इस्लाम है। अहल-ए-इस्लाम का मतलब यह नहीं है कि यह प्रापर्टी वक्फ बोर्ड की हो गई। जिस खसरा नंबर 66 पर वक्फ बोर्ड मस्जिद होने का दावा कर रहा है, उस पर कोई मस्जिद रिकॉर्ड में नहीं है। कहा कि संजौली में वक्फ बोर्ड की करीब 156 बीघा जमीन है, लेकिन वह दूसरी है। जहां मस्जिद बनी है, वह सरकारी जमीन है। दूसरी ओर वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता ने दावा किया कि यह बोर्ड की जमीन है। इसका राजस्व रिकॉर्ड भी उनके पास है। हालांकि, आयुक्त ने कहा कि इस कोर्ट में मामला अवैध निर्माण पर चल रहा है। भूमि किसके नाम है, इस पर बहस नहीं होगी। मस्जिद के भीतर होने वाली अन्य गतिविधियों पर भी कोर्ट में बहस नहीं हो सकती।

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