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जदयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय कुमार झा से बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर अमर उजाला से खास बातचीत की। इस एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में संजय कुमार झा ने खुलासा किया कि इस बार टिकट की साझेदारी और बंटवारे में नीतीश कुमार की मुख्य भूमिका रहेगी, जो पिछली बार के चुनाव में नहीं थी। तभी चुनाव बिखर गया था और जदयू तीसरे नंबर पर आ गई थी।  आखिर फिर से एनडीए की सरकार क्यों बनेगी? नीतीश कुमार की तबीयत कैसी है? इस बार का चुनाव खास क्यों है? आगे निशांत कुमार की भूमिका क्या होगी? नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ना और सीएम फेस घोषित करने के बीच के अंतर पर संजय कुमार झा का क्या कहना रहा? पढ़िए अमर उजाला के सवालों पर संजय झा के जवाब…

इस बार चुनाव में सीधी टक्कर होगी या मुकाबला बिखरा हुआ रहेगा?

मुझे लगता है कि इस बार भी मुकाबला सीधा होगा। आज का मतदाता बहुत समझदार है, वो अपना वोट यूं ही बर्बाद नहीं करता। अब लोग या तो सरकार के पक्ष में वोट देते हैं या विपक्ष के साथ जाते हैं।

पिछली बार JDU तीसरे नंबर पर रह गई थी, इस बार क्या तैयारी है?

हां, ये सही है कि पिछले चुनाव में हम तीसरे नंबर पर रहे थे। इसके दो बड़े कारण थे। पहला, हमारे सहयोगी दल के कुछ उम्मीदवार कई सीटों पर खड़े हो गए थे, जिससे जनता में गलत संदेश गया और लोग कन्फ्यूज हो गए। जबकि हमने अच्छे से काम किया था। दूसरा, उस बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने टिकट बांटने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं ली थी, ये शायद पहली बार हुआ। पिछली बार नीतीश जी ने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया था, लेकिन इस बार वो पूरी तरह सजग हैं। लोकसभा चुनाव में भी सीटों का बंटवारा बहुत सहज तरीके से हुआ था, लोगों को भनक भी नहीं लगी। इस बार भी ऐसा ही होगा। इस बार का चुनाव परिणाम 2010 से भी बेहतर होगा। जनता डबल इंजन सरकार के काम से संतुष्ट है और हमें पूरा भरोसा है कि NDA को मजबूत जनादेश मिलेगा।

ये भी पढ़ें: बिहटा में बन रहे SDRF मुख्यालय का CM नीतीश ने किया निरीक्षण, निर्माण कार्य में तेजी लाने के दिए निर्देश

लोकसभा चुनाव के बाद क्या माहौल बदल गया है?

लोकसभा चुनाव की तुलना में अब माहौल हमारे पक्ष में बेहतर है। उस वक्त विपक्ष ने यह प्रचार किया था कि संविधान खतरे में है। लेकिन आप खुद बताइए—पिछले 11 वर्षों से नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं, क्या संविधान कहीं खतरे में दिखा? विपक्ष ने जानबूझकर ऐसा नैरेटिव बनाया जिससे लोगों में भ्रम की स्थिति बन गई थी। लेकिन अब वो भ्रम दूर हो गया है। इस वजह से हम अब ज्यादा मजबूत स्थिति में हैं। जहां तक विशेष राज्य की मांग का सवाल है, अब वो मुद्दा पीछे छूट गया है। लेकिन पिछले दो बजट में बिहार को अतिरिक्त आर्थिक मदद मिली है। आज बिहार के हर गांव में 100 प्रतिशत बिजली पहुंच चुकी है। ये बिहार का ‘गोल्डन पीरियड’ है। अब यहां निवेश का माहौल बन चुका है। केंद्र सरकार से भी हमें लगातार सहयोग मिल रहा है। इसका सीधा फायदा हमें इस बार के विधानसभा चुनाव में मिलेगा। 

मिथिलांचल को लेकर नीतीश कुमार की क्या योजना है?

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पूरे बिहार को एक भाव से देखते हैं। उनके लिए मिथिलांचल हो या सीमांचल—सब बराबर हैं। अगर आप देखेंगे तो पूरे क्षेत्र में सड़कों का नेटवर्क मजबूत हुआ है। कॉलेज और अस्पताल खुले हैं। गया में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था की गई है। बेहटा में एयरपोर्ट बन रहा है, और पूर्णिया का एयरपोर्ट अगस्त तक शुरू हो जाएगा। ये सब दिखाता है कि विकास सिर्फ किसी एक इलाके में नहीं, बल्कि पूरे बिहार में हो रहा है।

इस बार JDU किन मुद्दों पर चुनाव लड़ेगी?

हमारा मुख्य मुद्दा विकास होगा। जब नीतीश कुमार ने बिहार की बागडोर संभाली थी, तब राज्य की हालत बहुत खराब थी। खासकर ग्रामीण इलाकों में सड़कों की स्थिति बेहद खराब थी। महिलाओं की भागीदारी भी कम थी। लेकिन अब देखिए—नीतीश कुमार के शासन में प्रति व्यक्ति आय ₹7,000 से बढ़कर ₹65,000 हो गई है। राज्य का बजट भी कई गुना बढ़ा है। कानून व्यवस्था में भी सुधार हुआ है। अब यहां निवेश का माहौल बन चुका है। हमें यह समझना होगा कि सरकारी नौकरियों की सीमा होती है, इसलिए अब प्राइवेट सेक्टर को बढ़ावा देना जरूरी है। आने वाले समय में बिहार में बड़े पैमाने पर इंडस्ट्री और इन्वेस्टमेंट देखने को मिलेगा।

क्या आने वाले समय में बिहार से पलायन कम होगा?

एक समय था जब बड़े-बड़े व्यापारी और डॉक्टर बिहार से पलायन कर गए थे, खासकर अपहरण जैसी घटनाओं के डर से। लोगों को वह दौर याद करना चाहिए। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। कानून व्यवस्था में सुधार हुआ है और निवेश के लिए माहौल बना है। इस कारण आने वाले वर्षों में पलायन भी कम होगा।

बिहार में इंडस्ट्री आने में इतना समय क्यों लग रहा है?

अगर किसी जगह पर इंडस्ट्री लगानी होती है तो उसके लिए बुनियादी सुविधाएं जरूरी होती हैं—जैसे बिजली, सड़क और कच्चे माल की आवाजाही के लिए अच्छी ट्रांसपोर्ट व्यवस्था। बिहार एक लैंडलॉक राज्य है, यानी समुद्र से नहीं जुड़ा है, इसलिए हमें इंडस्ट्री के लिए पहले सारी तैयारी करनी होती है। अब हाल ही में अमेरिका ने बांग्लादेश पर टैरिफ (शुल्क) लगाया है। इसका सीधा फायदा बिहार को मिल सकता है, खासकर टेक्सटाइल इंडस्ट्री के क्षेत्र में। यहां पर कपड़ा उद्योग को बढ़ावा देने का एक अच्छा मौका है। मुझे भरोसा है कि आने वाले समय में लोगों को ₹5,000, ₹10,000 या ₹20,000 कमाने के लिए बिहार छोड़ने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। यहीं रोजगार मिलेगा।

आने वाले समय में JDU का क्या ब्लूप्रिंट होगा?

इस पार्टी को नीतीश कुमार ने अपने खून-पसीने से खड़ा किया है। वे हमारे सर्वमान्य नेता हैं और हर बड़ा फैसला उन्हीं से सलाह लेकर होता है। हमारी पार्टी की यही सबसे बड़ी खासियत है कि यहां परिवारवाद नहीं है। हमारे यहां ऐसा नहीं है कि किसी एक परिवार को पहले से ही 10 सीटें तय कर दी जाएं और बाकी लोगों को बाद में मौका मिले। अगर कोई मेहनत करता है और पार्टी के लिए काम करता है तो नीतीश कुमार उसे जरूर मौका देते हैं। लेकिन हर अहम फैसले में नीतीश जी की सहमति जरूरी होती है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सेहत को लेकर उठ रहे सवालों का क्या? 

ऐसे सवाल बहुत हल्के और गैरजरूरी हैं। लोगों को असली मुद्दों पर बात करनी चाहिए। नीतीश कुमार इस उम्र में भी दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। मैं दावे से कह सकता हूं कि आज के समय में कोई युवा भी इतना काम नहीं करता जितना वो करते हैं। इसलिए मुझे नहीं लगता कि इस मुद्दे पर कुछ कहने की जरूरत है। 

मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर स्थिति साफ क्यों नहीं है?

बीजेपी खुद कह चुकी है कि वो नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ेगी। इससे ज्यादा स्पष्ट और क्या हो सकता है? वे ही गठबंधन के नेता हैं और उन्हीं के नेतृत्व में हम चुनाव लड़ रहे हैं। विपक्ष को खुद की चिंता करनी चाहिए, आजकल उन्हें हमारी पार्टी की ही फिक्र ज्यादा हो गई है। पिछले चुनाव में जब JDU को 45 सीटें मिली थीं, तब भी नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री मोदी से कहा था कि आप चाहें तो कोई और मुख्यमंत्री बना लीजिए। लेकिन प्रधानमंत्री ने साफ कहा कि ये चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा गया है, इसलिए वही मुख्यमंत्री रहेंगे।

नीतीश कुमार का उत्तराधिकारी कौन होगा?

ये कोई पारिवारिक पार्टी नहीं है, जहां उत्तराधिकारी पहले से तय कर दिया जाए। राजा-महाराजा वाला दौर अब चला गया है। हमारी पार्टी पूरी तरह लोकतांत्रिक है। यहां नेता जनता की पसंद से तय होते हैं, परिवार से नहीं। आगे क्या होगा, ये जनता और पार्टी तय करेगी।

क्या निशांत (नीतीश कुमार के बेटे) राजनीति में आएंगे? उनका भविष्य क्या होगा?

यह पार्टी नीतीश कुमार ने खड़ी की है और हम 2025 का चुनाव उन्हीं के नेतृत्व में लड़ रहे हैं। फिलहाल हमारा पूरा फोकस चुनाव पर है। अभी इससे ज्यादा कुछ कहने की जरूरत नहीं है।

5 कारण क्यों JDU फिर से सत्ता में आएगी? 

1. राज्य सरकार और केंद्र की डबल इंजन सरकार ने जो काम किए हैं, वे आज जमीन पर साफ नजर आते हैं। लोगों ने विकास को अपनी आंखों से देखा है– सड़कें, पुल, बिजली, पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं पहले से कहीं बेहतर हुई हैं।

2. बिहार की जनता जानती है कि नीतीश कुमार ने जो वादा किया, उसे पूरा किया। लोगों को विश्वास है कि अगर वही सरकार रही, तो जो योजनाएं अभी चल रही हैं, वे सफलतापूर्वक पूरी भी होंगी।

3. इस बार का युवा मतदाता बहुत जागरूक है। उन्होंने देखा है कि सरकार ने शिक्षकों की बड़ी बहाली करवाई, नौकरी के अवसर बढ़ाए। नीतीश कुमार और NDA पर युवाओं का भरोसा बना है।

4. राज्य में कई बड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर तेज़ी से काम हो रहा है – सड़क, पुल, जल जीवन मिशन, बिजली, हर घर नल योजना जैसे कामों का असर आम लोगों की जिंदगी में दिख रहा है।

5. मुख्यमंत्री द्वारा एक बटन दबाकर करोड़ों लोगों के खाते में पैसा भेजा गया। खासकर बुजुर्गों, किसानों और गरीबों को इसका सीधा लाभ मिला है। लोगों को लगता है कि यह सरकार उनका साथ देती है और सम्मान भी देती है।

महागठबंधन की वापसी की कितनी संभावना?

मुझे नहीं लगता कि महागठबंधन की कोई वापसी की संभावना है। बिहार से जो पलायन हुआ, उसकी जिम्मेदारी सिर्फ राजद की नहीं, बल्कि कांग्रेस भी है। जब वो केंद्र में थे, तब भी बिहार को किसी तरह की मदद नहीं दी गई थी। अब बिहार की जनता पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहती।

प्रशांत किशोर, तेजस्वी यादव  और कन्हैया कुमार क्या? 

इस चुनाव में प्रशांत किशोर की कोई भूमिका या भविष्य नहीं दिखता है। जमीन पर उनकी कोई प्रभावी मौजूदगी नहीं है।

राजनीति में किसी को कम नहीं आंकना चाहिए, लेकिन इस चुनाव में तेजस्वी यादव का कोई भविष्य नहीं दिख रहा है। अभी जनता का भरोसा उनके साथ नहीं है।

कन्हैया कुमार एक युवा नेता हैं, लेकिन उनकी खुद की पार्टी ही उन्हें वह सम्मान नहीं देती जिसकी उन्हें जरूरत है। ऐसे में उनकी भूमिका भी सीमित है।



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