इंडियन इकोनॉमी के लिए अच्छी खबर आई है। रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ने भारत की जीडीपी ग्रोथ का अनुमान बढ़ा दिया है। एजेंसी ने सामान्य मानसून, कच्चे तेल की कम कीमतों और मौद्रिक नरमी को देखते हुए एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने चालू वित्त वर्ष 2025-26 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के अनुमान को बढ़ाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया। एसएंडपी ने पिछले महीने वैश्विक अनिश्चितताओं और अमेरिकी शुल्क झटकों का हवाला देते हुए भारत के वित्त वर्ष 2025-26 के वृद्धि अनुमान घटाकर 6.3 प्रतिशत कर दिया था। रेटिंग एजेंसी ने मंगलवार को जारी एशिया प्रशांत आर्थिक परिदृश्य में कहा कि हम वित्त वर्ष 2025-26 (31 मार्च 2026 को समाप्त होने वाले) में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत पर स्थिर रहने की उम्मीद करते हैं।
पश्चिम एशिया में तनाव से बढ़ा ग्लोबल रिस्क
रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ने चेतावनी दी है कि पश्चिम एशिया में जारी अस्थिरता के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए जोखिम बढ़ सकते हैं। अगर तेल की कीमतें लंबे समय तक ऊंची बनी रहती हैं, तो इससे वैश्विक ग्रोथ पर असर पड़ेगा, खासकर शुद्ध ऊर्जा आयातकों के लिए। एसएंडपी ने कहा कि महंगे तेल से एशिया-प्रशांत क्षेत्र की अर्थव्यवस्थाओं पर तीनतरफा दबाव पड़ सकता है— चालू खाते में घाटा बढ़ेगा, मूल्य स्तर ऊपर जाएगा और उत्पादन लागत भी बढ़ेगी। यह स्थिति क्षेत्र में आर्थिक सुस्ती का कारण बन सकती है। हालांकि, एसएंडपी का मानना है कि फिलहाल वैश्विक ऊर्जा बाजार में आपूर्ति पर्याप्त है। इस वजह से, तेल की कीमतों में लंबी अवधि की तेज़ी की संभावना कम है। मौजूदा हालात से संकेत मिलते हैं कि कीमतों पर स्थायी दबाव की आशंका नहीं है।
रुपये, महंगाई पर खास दबाव नहीं पड़ेगा
एसएंडपी ने कहा कि मौजूदा भू-राजनीतिक तनाव से रुपये या मुद्रास्फीति पर ‘‘काफी दबाव’’ पड़ने के आसार नहीं है, क्योंकि वैश्विक ऊर्जा कीमतें पिछले साल की तुलना में कम हैं जिससे चालू खाता निकासी और घरेलू ऊर्जा मूल्य दबाव सीमित हो जाएगा। एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स की अर्थशास्त्री विश्रुत राणा ने कहा कि भारत के लिए एक बड़ी राहत वाला कारक यह है कि ऊर्जा की कीमतें अब भी पिछले वर्ष की तुलना में कम हैं। एक वर्ष पहले ब्रेंट कच्चे तेल का भाव करीब 85 डॉलर प्रति बैरल था और वर्तमान कीमतें अब भी कम हैं। राणा ने कहा, इससे चालू खाते से धन निकासी और घरेलू ऊर्जा मूल्य दबाव दोनों को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी। ऊर्जा की कीमतों में मामूली वृद्धि हो सकती है, लेकिन खाद्य कीमतों के बढ़ने से महंगाई पर अधिक प्रभाव पड़ेगा। कुल मिलाकर, हमें भारतीय रुपये या महगाई पर कोई खास दबाव पड़ने के आसार नजर नहीं आते।
