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Special On Narmada Jayanti, How Narmada River Is Benefiting Four States, Helping With Electricity And Water. – Amar Ujala Hindi News Live


Special on Narmada Jayanti, how Narmada river is benefiting four states, helping with electricity and water.

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नर्मदा जयंती आज
– फोटो : अमर उजाला

आज नर्मदा जयंती है। माघ माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को नर्मदा जयंती का पर्व मनाया जाता है। नर्मदा नदी मध्य प्रदेश की जीवन रेखा मानी जाती है। मप्र के विकास में अहम योगदान इस नदी का माना जाता है। प्रदेश की जीवनदायनी नर्मदा नदी तीन हजार किलोमीटर लंबाई में बहती है और हरियाली के साथ  आसपास के क्षेत्रों की समृद्धि और विकास की फैलाती है। नर्मदा नदी इंदौर, जबलपुर, भोपाल सहित कई शहरों और गांवों की प्यास बुझा रही है। 

नर्मदा मप्र में 1077 किलोमीटर, महाराष्ट्र में 32 किलोमीटर, महाराष्ट्र-गुजरात में 42 किलोमीटर एवं गुजरात में 161 किलोमीटर प्रवाहित होकर कुल 1312 किलोमीटर पश्चात् अंतत: गुजरात में भडूच के निकट खंभात की खाड़ी के अरब सागर में समाहित होती है। मध्य प्रदेश और गुजरात की जीवनदायिनी नर्मदा का उद्गम स्थल अनूपपुर जिले के अमरकंटक में है। इस नदी पर गांधी सागर, ओंकारेश्वर बांध, सरदार सरोवर जैसे बड़े बांध इस नदी पर बने हैं। 

इंदौर की प्यास बुझाने के लिए नर्मदा 47 सालों से हर रोज कर रही 70 किलोमीटर की यात्रा

प्रदेश के सबसे बड़े शहर इंदौर की प्यास नर्मदा नदी 47 सालों से बुझा रही है। 1978 में नर्मदा का पहले चरण के कदम इंदौर में पड़े थे। इसके बाद दो चरण और तैयार हुए। अब चौथे चरण को लाने की तैयारी हो रही है। हर दिन तटबंधों को लांघ कर मां नर्मदा 70 किलोमीटर की यात्रा करती है। 540 एमएलडी पानी हर दिन इंदौर की 40 लाख की आबादी की प्यास बुझाता है। 

 




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– फोटो : अमर उजाला

नर्मदा को लाने के लिए इंदौर में आंदोलन

इंदौर में 60 के दशक में सूखा पड़ गया था। यशवंत सागर, बिलावली जैसे जल स्त्रोत सूख गए थे। इंदौर शहर फैल रहा था, लेकिन शहर के पास कोई बड़ी जलराशि नहीं थी। तब शहर के लोगों ने नर्मदा को इंदौर लाने की मांग उठाई। इस महंगी योजना को अमला में लाना सरकार के लिए आसान नहीं था। तब इंदौर में दो माह से भी ज्यादा समय तक लंबा आंदोलन चला। सभी दल एकजुट हो गए। आखिरकार सरकार को झुकना पड़ा और नर्मदा को इंदौर लाने की घोषणा हुई। आंदोलन से जुड़े अभ्यास मंडल के शिवाजी मोहिते बताते हैं कि यदि नर्मदा जल इंदौर नहीं आता तो इंदौर वैसा विकसित नहीं होता, जैसा आज है। लोग पलायन करने लगते, बड़े उद्योग नहीं आते। पीथमपुर जैसे इंडस्ट्रियल क्षेत्र को नर्मदा का पानी पहुंचाया जा रहा है। 

सिंहस्थ में नर्मदा-शिप्रा जल में लगाते हैं लोग डुबकी

12 वर्षों में एक बार लगने वाले सिंहस्थ महाकुंभ में श्रद्धालु शिप्रा नदी में स्नान करने आते हैं। शिप्रा नदी प्रदूषित हो चुकी है। दस साल पहले नर्मदा नदी का जल शिप्रा में मिलाया गया। शिप्रा नदी के उद्गम स्थल उज्जैनी में बड़वाह से 60 किलोमीटर लंबी लाइन बिछाकर नर्मदा जल छोड़ा गया। इससे शिप्रा नदी अपने उद्गम स्थल से पुर्नजीवित हुई। पिछले सिंहस्थ में नर्मदा जल में ही लाखों भक्तों ने स्नान किया था। नर्मदा नदी के किनारे ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग और महेश्वर धार्मिक नगरी भी बसी हुई है। नर्मदा नदी से गंभीर नदी को भी लिंक किया गया है। इंदौर के अलावा उज्जैन और देवास शहर की प्यास मां नर्मदा बुझाती है।

 


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नर्मदा चार राज्यों को पहुंचा रही फायदा

नर्मदा नदी पर इंदिरा सरोवर (खंडवा), सरदार सरोवर (नवेगाव, गुजरात), महेश्वर परियोजना (महेश्वर) बरगी परियोजना (बरगी, जबलपुर), ओमकरेश्वर परियोजना बांध निर्मित हैं। सरदार सरोवर बांध के बन जाने के बाद कई राज्यों को सीधा फायदा हुआ है। इसके पानी से गुजरात के खेतों सिंचाई में बड़ी मदद मिली है। लंबी-लंबी नहरें बनाकर गुजरात की 800,000 हेक्टेयर भूमि सिंचित की जा रही है। वहीं राजस्थान की 2,46,000 हेक्टेयर भूमि नर्मदा के पानी से सिंचित हो रही है। गुजरात में 485 किमी की नहरें तो राजस्थान में 75 किमी लंबी नहरों से नर्मदा का पानी पहुंच रहा है। वहीं सरदार सरोवर बांध से उत्पन्न बिजली भी तीन राज्यों को रोशन करने में मदद कर रही है। बिजली उत्पादन का 57 प्रतिशत महाराष्ट्र को, 27 प्रतिशत मध्य प्रदेश तो गुजरात को 16% दिया जा रहा है। 

नर्मदा का धार्मिक महत्व

नर्मदा भारत की प्रमुख नदियों में से एक है। नर्मदा भारत की पांचवी बड़ी नदी मानी जाती है। पर्वतराज मैखल की पुत्री नर्मदा को रेवा के नाम से भी जाना जाता है। इसका वर्णन रामायण, महाभारत आदि अनेक धर्म ग्रंथों में भी मिलता है। भारत में चार नदियों को चार वेदों के रूप में माना गया है। गंगा को ऋग्वेद, यमुना को यजुर्वेद, सरस्वती को अथर्ववेद और नर्मदा को सामदेव। सामदेव कलाओं का प्रतीक है।  




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